पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३४७

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Gre JA औरत (अपने कमर सखजर निकाल कर) हम लोग अपना परिचय नहीं द सकर्ती और न हमें यही पूछने से मतलय है कि तुम कौन हा आदमी-(हँसकर) क्या तू समझती है कि मै तुझे नहीं पहिचानता? मुझे खूब मालूम है कि तेरा नाम गौहर है मै तेरी सात पुश्त को जानता हूँ मगर आजमाने के लिए पूछता था कि देखूतू अपना सच्चा हाल मुझे कहती है या नहीं। क्या कोई अपने का भूतनाथ से छिपा सकता है? भूतनाथ' नाम सुनते ही वह औरत घबडा गई डर से बदन कॉपने लगा और खजर उसके हाथ से गिर पडा। उसने मुश्किल से अपने को सम्हाला और हाथ जोड़ कर बोली' बेशक मेरा नाम गौहर है मगर भूत-तू यहाँ क्यों घूम रही है ? शायद इस फिक्र में है कि इस किले में पहुँच कर आनन्दसिह से अपना बदला ले। गौहर-(डरी हुइ आवाज से) जी हाँ। भूत-पहिले भी तो तू उन्हें फंसा चुकी थी मगर उनका ऐयार देवीसिह उन्हें छुड़ा ले गया। हॉ तेरी छोटी बहिन कहाँ गौहर-वह तो गया की रानी माधवी के हाथ से मारी गई। भूत-कवी गौहर--जर वह इन्दजीतसिह को फंसाने के लिए चुनारगढ के जगल में गई थी तो मैं भी अपनी छोटी बहिन को साथ लेकर आनन्दसिह की धुन में उसी जगल में गई थी। दुष्टा माधवी न व्यर्थ ही मेरी बहिन को मार डाला। जब वह जगल काटा गया तो वीरेन्द्रसिह के आदमी लोग उसकी लाश उठा कर चुनार ले गए थे मगर ( अपनी साथिन की तरफ इशारा करके ) बडी चालाकी से वह ऐयारा उस लाश का उटा लाई थी, भूत-हॉ ठीक है अच्छा तो तू इस किले में घूसा चाहती है और आनन्दसिह की जान लिया चाहती है। गौहर-यदि आप अप्रसन्न न होता। 1 भूत-मैं क्यों अप्रसन्न होने लगा। मुझे क्या गरज पडी है कि मना करूँ ?जो तेरा जी चाहे कर। अच्छा पब मै जाता हूँ लेकिन एक दफे फिर तुझसे मिलूँगा। वह आदमी तुरत चला गया और दखते देखते नजरों से गायब होगया। इसके बाद दोनों औरतों में बातचीत होन लगी। गौहर-गिल्लन इसकी सूरत देखते ही मेरी जान निकल गई थी, न मालूम यह कम्बखत कहाँ से आ गया। गिल्लन-तुम्हारी तो बात ही दूसरी है मै ऐयारा होकर अपने को सम्हाल न सकी देखो अभी तक कलेज घड घड करता है। गौहर--मुझको तो यही डर लगा हुआ था कि कहीं वह मुझे आनन्दसिंह से बदला लेने के बारे में मना न करे। गिल्लन-सा तो उसनन किया मगर एक दफे मिलन के लिए कह गया है अच्छा अब यहाँ ठहरना मुनासिब नहीं। वे दोनों औरतें अर्थात् गौहर तथा गिल्लन वहाँ से चली गई और कमला ने भी एक तरफ कारास्ता लिया। दो घण्टे क. याद कमला उस कब्रिस्तान में पहुंची जो रोहतासगढ के तहखाने में आने जाने का रास्ता था। इस समय चन्दमा अस्त हा चुका था और कब्रिस्तान में भी सन्नाटा था। कमला बीच वाली कत्र के पास गई और तहखाने में जाने के लिए दजाणेलने लगी मगर खुल न सका। आधे घण्टे तक वह इसी फिक्र में लगी रही पर कोई काम न चला लाचार होकर उठ खडी हुई और कनिस्तान के बाहर की तरफ चली! फाटक के पास पहुंचते ही वह अटकी क्योंकि सामने की तरफ थोडी ही दर पर कोई चमकती हुई चीज उसे दिखाई पड़ी जो इसी तरफ बढी आ रही थी। आगे जाने पर मालूम हुआ कि यह बिजली की तरह चमकने वाली चीज एक नेजा है जो किसी औरत के हाथ में है। वह नेजा कभी तेजी के साथ चमकता है और इस सबब से दूर दूर तक की चीजें दिखाई देती हैं और कनी उसकी चमक विल्कुल ही जाती रहती है और यह मी नहीं म्गलूम होता कि मेजा या नजे को हाथ में रखने वाली औरत कहाँ है। थोड़ी देर में वह औरत इस कविस्तान के बहुत पास आ गई। मेजे की चमक न कमला को उस औरत की शक्ल सूरत अच्छी तरह दिख दी। उस औरत का रग स्याह था. सरत करावी

  • देखिए चन्द्रकान्ता सन्तति पहिला भाग चौथा क्यान।

चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ५ ३२३