पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३४८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

६ और बडे बडे दो तीन दॉत मुंह के बाहर निकले हुए थे काली साडी पहिने हुए यह औरत पूरी राक्षसी मालूम होती थी। यद्यपि कमला ऐयारा और बहुत दिलेर थी मगर इसकी सूरत देखते ही थर थर कांपने लगी। उसने चाहा किं करिस्तान के बाहर निकल कर भाग जाय मगर वह इतना डर गई थी कि पैरन उठा सकी। देखते देखते वह भयकर मूर्ति कमला के सामन आ कर खडी हो गयी ओर कमला को डर के मारे कॉपर्त देख कर बोली 'डरो मत होश ठिकाने कर और जो कुछ मैं कहती हूँ ध्यान देकर सुन। सातवॉ बयान रोहतासगढ फतह होने की खबर लेकर भैरोसिंह चुनार पहुंचे और उसके दो ही तीन दिए याद राजा दिग्विजयसिइ की घेईमानी की खबर लिए हुए कई सवार भीजा पहुँचे। इस समाचार के पहुँचते ही चुनारगढ़ में खलबली मच गई।फौज के साथ ही साथ रिआया भी राजा वीरेन्द्रसिह और उनके खानदान को दिल से चाहती थी क्योंकि उनके जमाने में अमीर और गरीब सभी खुश थे। आलिम और कारीगरों की कदर की जाती थी, अदना से अदना भी अपनी फरियाद राजा के कानों तक पहुंचा सकता था उद्योगियों और व्यापारियों को दर्वार समदद मिलती थी, ऐयार और सासूस लोग छिपछिपे रिआया के दुय सुख का हाल मालूम करते और राजा को हर तरह की यवर पहुँचाते थे। शादी ब्याह में इज्जत के माफिया हर को मदद मिलती थी। और इसी से रिआया भी तन मन धन राजा के लिए अर्पण करने को तैयार मिलती थी। राजा वीरेन्द्रसिह कैद हो गये इस खबर को सुनते ही रिआया जोश में आ गई और इस फिक्र में हुई कि जिस तरह हो राजा को छुडाना चाहिए । रोहतासगढ के बारे में क्या करना चाहिए ओस्दुश्मनों पर क्योकर फतह पानी चाहिए यह सब सोचने विधारने के पहिले महाराज सुरेन्द्रसिह और जीतसिह ने भैरोसिह रामनारायण और चुन्नीलाल को हुक्म दिया कि तुम लोग तुरन्त रोहतासगढ जाओ और जिस तरह हो सके अपने को किले के अन्दर पहुँचा कर राजा बीरेन्द्रसिह को रिहा करो हम दोनों में से भी कोई आदमी मदद लेकर शीघ्र पहुंचेगा। हुक्म पाते ही तीनों ऐयार तेज और मजबूत घोडों पर सवार हो रोहतासगढ की तरफ रवाना हुए और दूसरे दिन शाम को अपनी फौज में पहुँचे। राजा वीरेन्दसिंह की आधी फौज अर्थात पचीस हजार फौज तो पहाड़ी के नीचे किले के दजे की तरफ खडी हुई थी और बाकी आधी फौज पहाडी के चारों तरफ इसलिए फैला दी गयी थी कि राजा दिग्विजयसिंह को बाहर से किसी तरह की मदद न पहुंचने पाये। पाँच पाँच सात सात सौ यहादुरोंको लेकर नाहरसिंह कई दफे पहाड़ी पर चढा और किले के दाजे तक पहुंचना चाहा मगर किले के युों पर से आए हुए तोप के गोलों ने उन्हें वहाँ तक पहुँचने न दिया और हर दफे लौटना पड़ा। जाहिर में तो वे लोग सामने की तरफ अडे हुए थे और घड़ी घड़ी हमला करते थे, मगर नाहरसिंह के हुक्म से पाँच पाँच सात सात करके जगल ही जगल रात के समय छिपे हुए रास्तों से बहुत से सिपाही जासूस और सुरगयोदने वाले पहाड पर चढगये थे तथा घरावर बढे चले जाते थे और उम्मीद पाई जाती थी कि दोही तीन दिन में हजार दो हजार आदमी पहाड के ऊपर हो जायेंगे। तब नाहरसिह हिप कर अकेला पहाड़ पर चढ जायेगा और अपने आदमियों को बटार कर किले के दर्वाजे पर हमला करेगा। पहाड़ पर पहुंच कर सुरग खोदने पाले सुराग खोद कर वारूद के जोर से किले का फाटक तोड़ने की धुन में लगे हुए थे और इन बातों की खबर राजा दिग्विजयसिंह को बिल्कुल न थी। भैरोसिह ने पहुँच कर यह सब हाल सुना और खुश होकर सेनापतियों की तारीफाकी तथा कहा कि यद्यपि पहाड़ के ऊपर का घना जगल ऐसा वेढंग है कि मुसाफिरों को जल्दी रास्ता नहीं मिल सकता तथापि हमारे आदमी यदि ऊंचाई की तरफ ध्यान न देकर चढना शुरू करेंगे तो लुढ़कते पुडकते किले के पास पहुँच ही जायेंगे। और आप लोग जिस काम में लगे हुए हैं लगे रहिए हम तीनों ऐयार पहाड पर जाते है और किसी तरह किले के अदर पहुंचन का बन्दोबस्त करते है। पहर रात बीत गई थी जब भैरोसिह रामनारायण और चुन्नीलाल पहाड़ी के ऊपर चदने लगे। भैरोसिह कई दफे उस पहाडी पर जा चुके थे और उस जगल में अच्छी तरह घूम चुके थे इसलिए इन्हें भूलने और धोखा याने का डर न था। ये लोग वेधड़क पहाड पर चले गय और रोहतासगढ के रास्ते वाले कब्रिस्तान में ठीक उस समय पहुँचे जिस समय कमला धडकते हुए कलेजे के साथ उस राक्षसी के सामने खड़ी थी जिसके हाथ में बिजली की तरह चमकता हुआ नेजा था। जिस समय यह नेजा चमकता था देखने वाले की आँख चौधिया जाती थी। भैरोसिह ने दूर से चमकते हुए नेजे को देखा और उसके साथी दोनों ऐयार भी डर कर खड़े हो गये। भैरोसिह चाहते थे कि जब वह औरत वहाँ से चली जाय तो कब्रिस्तान में जायँ मगर वे ऐसा न कर सके क्योंकि नेजे की चमक में उन्होंने कमला की सूरत देखी थी जो उस समय जान से हाथ धो कर उस राक्षसी के सामने खड़ी थी। देवकीनन्दन खत्री समग्र ३२४