पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३५

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अपना ठीक पता नहीं दिया फिर भी उनकी बात चोत से मुझ शक हुआ, नहीं बल्कि निश्चय हो गया कि वे लोग इस पहाड़ी पर जकर पहुचेगे क्योंकि उनके सर्दार ने अपन जेब से एक तस्वीर निकाल कर देखी और कहा, मैं उस दूसरे आदमी की खोज में निकला हु-इससे कोई मतलब नहीं, चलो देरी हाती है। इतना कह साथियों को साथ ले वड़ तेजी से इसी पहाडी की तरफ रवाना हुआ। मुझे यकीन हा गया कि ये लोग जरूर मेर दोस्त को परेशान करेंग इसलिये में भी तुरन्त इसी तरफ लौटा मगर अब क्या हो सकता था वे लोग घोडों पर थे और मैं पैदल, जब तक यहाँ पहुचू वे लोग मेरे प्यारे दोस्त को गिरफ्तार करके ले गये। यहाँ आकर जय मैंने अपने लगोटिय दोस्त को न देखा, जी में बडा दुःख हुआ। यह बाग राक्षस की तरह खाने को दौडनलगा। उसी वक्त पहाड़ी के नीचे उतर गया और जहाँ हमार घोडे मरे पड़े थे वहीं बैठ कर रनवीरसिह के बारे में सोचने लगा आखिर अपने कपड़े उतार कर फेंक दिये और इस फकीरी सूरत में दोस्त को खोजने निकला, दिल में निश्चय कर लिया कि बिना उनसे मिले खुद भी अपने घर न लौटूगा, इसी सूरत में रहूगा। उन्हीं की खोज में फिर उसी गाँव की तरफ जा रहा था कि रास्ते में आप लोगों से मुलाकात हुई। इसके आगे का हाल आप जानते ही है मैं क्या कहू ।' इतना कह जसवन्तसिह दोस्त के गम में ऑसू गिराने लगे यहा तक कि हिचकी बध गई। सरि ने उन्हें बहुत कुछ समझाया युझाया और दिलासा देकर कहा, "आप इतना सोच न कीजिये । हम लोग आपके साथ है जब तक दम है आपके मित्र का पता लगाने में कसर न करेंगे और न उनके दुश्मन से बदला लिए बिना ही छोड़ेंगे। मगर आपका यह सोचना ठीक नहीं कि जब तक दोस्त न मिले तब तक बाबाजी बने रहें आप अकेले ढूँढन्ने निकलते तो जोगी बनना वाजिय था मगर हम लोगों के साथ फकीरी भेष से चलना ठीक नहीं है क्योंकिइसका कोई ठिकाना नहीं कि हमलोगों को कव लडने मिडने का मौका आन पड़े तो क्या आप क्षत्री होकर उस वक्त खडे मुह देखेंगे.?' ऐसी ऐसी बातें करक उस सर्दार ने जिसका नाम चैतसिह था जसवन्तसिह को अपने कपड़े पहिरने और हरब लगाने पर राजी किया और सब कोई वहा से उठ पहाडी के नीचे आये। रनबीरसिह और जसवन्तसिह के दोनों मरे हुए घोडे अभी तक उसी तरह पड़े हुए थे किसी जानवर ने भी नहीं खाया था और उन्हीं के पास ही जसवन्तसिह के कपड़े जहा वे छोड गए थे उसी तरह ज्यों के त्या पडे थे जिस उन्होंने झाड पोछ कर फिर पहिर लिया। सर्दार चेतसिह ने अपनी सवारी का घाडा जसवन्तसिह को दिया और जिस घोडे पर जसवन्तसिह आये थे वह हरीसिह का दे उनका घोडा आप ले लिया। थोडी देर तक यह मण्डली उस पहाडी के नीचे बैठकर यह सोचती रही कि अब क्या करना चाहिए। आखिर सर्दार चेतसिह ने कहा- पहिले महारानी के पास चल कर यह सब हाल कहना चाहिये, शायद उनको पता हो कि उनका दुश्मन कोन है। हमलोग तो कुछ नहीं जानते कि महारानी का दुश्मन भी कोई है और न इसी बात का विश्वास होता है कि ऐसी नेक रहमदिल गरीव परवर और बुद्धिमान महारानी का कोई दुश्मन भी होगा। आखिर यही राय ठीक रही और अपने अपने घोड़ों पर सवार हो सब उसी गाँव की तरफ रवाना हुए। जसवन्तसिह ने सार चेतसिह से बहुत पूछा कि वह महारानी कोन है और रनबीरसिह से उनसे क्या वास्ता परन्तुसार चतसिह ने कुछ भी खुल के न कहा और न उनके इसी सवाल का कोई जवाब दिया कि मै तो लड़कपन से रनवीरसिह के साथ हू उन्हें कमी कहीं आते जाते नहीं देखा, तब महारानी से उनकी जान पहिचान कब हुई ? ये सब के सब सवार जो गिनती में जसवन्तसिह सहित इक्यावन थे उस गाँव में पहुचे जिसका जिक्र ऊपर आ चुका है। यह गाव बहुत छोटा था और इसमें पचास साठ घर से ज्यादा की वस्ती न होगी ! जसवन्तसिह ने पूछा, “यह गाव किसके इलाके में है ?" सर्दार चेतसिह-हमारे ही सकार का है। जसवन्त-इसी राह से वे पाचो सवार आये थे जिन्होंने रनवीरसिह को गिरफ्तार किया है। अगर मुनासिव हो तो यहा के रहने वालों से कुछ पूछिए। चेत नहीं, मेरी समझ में यह बात जाहिर करने लायक नहीं है। जसवन्त-जैसा मुनासिब समझिये। ठीक शाम के वक्त ये लोग एक लम्बे चौडे मैदान में पहुंचे जहाँ पल्टनी सिपाहियों के रहन लायक कई खेमे खडे थे और बहुत से आदमी खाने की चीजें तैयार कर रहे थे, पास ही एक बहुत बडा कूओं भी था। कुसुम कुमारी १०४३