पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३५०

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R नीयत का हाल मालूम हो गया। वह कुँअर आनन्दसिह के प्रेम में अच्छी रगी हुई थी इसलिए उस इस लड़के की चालडाल बहुत ही बुरी मालूम हुई। ऐसी अवस्था में उसने अपने दिल का हाल किसी से कहना मुनासिब न समझा बल्कि इरादा कर लिया कि जहाँ तक जल्द हो सके इस मकान को छोड़ ही देना मुनासिब है और अन्त में लाचार होकर उसने ऐसा ही किया। एक दिन मौका पाकर आधी रात के समय कामिनी उस घर से बाहर निकली और सीधे राहतासगढ़ की तरफ रवा हुई। इस समय वह तरह तरह की बातें सोच रही थी। एक दफे उसके दिल में आया कि बिना कुछ सोच विचारे वीरेन्द्रसिह के लश्कर में चले चलना ठीक होगा मगर साथ ही यह भी सोचा कि यदि कोई सुनगा तो मुझे अवश्य निर्लज्ज कहेगा और आनन्दसिह की आखों में मेरी कुछ इज्जत न रहगी । इसके बाद उसने सोचा कि जिस तरह हो कमला से मुलाकात करनी चाहिए मगर कमला से मुलाकात क्योंकर हो सकती है ? न मालूम अपने काम की धुन में वह कहा घूम रही होगी ? हाँ अब याद आया जब मैं कमला के साथ शरसिह से मिलन के लिए उस तहखाने में गई थी तो शेरसिंह ने उसस कहा था कि मुझस मिलने की जय जरत हा तो इसी तहयान में आना ! अब मुझ भी उसी तहखाने में मलना चाहिए वहा कमला या शेरसिह से जरूर मुलाकात होगी और वहाँ दुश्मनों के हाथ से भी निश्चिन्त रहूंगी। जय तक कमला से मुलाकात हो वहाँ टिके रहने में भी कोई हर्ज नहीं है वहाँ खाने के लिए जगली फल और पीने के लिए पानी की भी कोई कमी नहीं। इन सब बातों को सोचती हुई बेचारी कामिनी उसी तहखाने की तरफ रवाना हुई और अपने को छिपाती हुई जगल ही जगल चल कर तीसरे दिन पहर रात जात जाते वहाँ पहुँची। रास्ते में जगली फल और घर के पानी के सिवाय और कुछ उस न मिला और न उस किसी चीज की इच्छा ही थी। यह खडहर कैसा था और उसके अन्दर तहखाने में जाने के लिए छिपा हुआ रास्ता किस ढंग का यना हुआ था यह पहिले लिखा जा चुका है पुन यही लिखने की कोई आवश्यकता नहीं है। कमला या शेरसिंह से मिलने की उम्मीद में उत्ती खडहर और तहखाने को कामिनी ने अपना घर बनाया और तपस्थिनियों की तरह कुंअर आनन्दसिह के नाम की माला जपती हुई दिन बिताने लगी। यहुत सीजरूरी चीजो के अतिरिक्त ऐयारी के सामान से भरा हुआ एक बॉस का पेटारा शेरसिह का रक्खा हुआ उस तहखाने में मौजूद था जो कामिनी के हाथ लगा । यद्यपि कामिनी कुछ ऐयारो भी जानती थी परन्तु इस समय उसे एयारी के सामान की विशेषजरूर न थी हाँ शेरसिंह की जायदाद में से एक कुप्पी तेल की कामिनी ने बराक खप की क्योंकि चिराग जलाने की नित्य ही आवश्यकता पड़ती थी। कमला और शरसिह से मिलन की उम्मीद में कामिनी ने उस तहखाने में रहना स्वीकार किया परन्तु कई दिन योत जाने पर भी किसी से मुलाकात न हुई। एक दिन सूरत बदल कर कामिनी तहखान से निकली और खडहर के बाहर हो सोचने लगी कि किधर जाय और क्या कर। एकाएक कई आदमियों के बातचीत को आज उसके कानों में पड़ी और मालूम हुआ कि वे लोग आपस में बातचीत करते हुए इसी खडहर की तरफ आ रहे है। थोड़ी ही दर में चार आदमी भी दिखाई पडे। उस समय कामिनी अपने को बचाने के लिये खडहर के अन्दर घुस गई और राह देखने लगी कि वे लोग आगे बढ़ जाय तो फिर निकलूं मगर ऐसा न हुआ क्योंकि बात की याल में वे चारों आदमी एक लाश उठाए हुए इसी खडहर के अन्दर आ पहुंचे। इस खडहर में अभी तक कई कोठरिया मौजूद थी। यद्यपि अवस्था बहुत ही खराब थी किवाड के पल्ले तक उनमें नर्थ जगह जगह पर ककड पत्थर कतवार के देर लगे हुए थे परन्तु मसाल की मजबूती पर ध्यान दे ऑधी पानी अथवा तूफान में भी बहुत आदमी उन कोठरियों में रह कर अपनी जान की हिफाजत कर सकते थे। खडहर के चारो तरफ की दीवार यद्यपि कहीं कहीं से टूटी हुई थी तथापि बहुत ही मजबूत और चौड़ी थी। कामिनी एक कोठरी में घुस गई और छिपकर देखने लगी कि वे चारों आदमी उस खडहर में आकर क्या करते और उस लाश को कहाँ रखते हैं। लाश उठाये हुए चारों आदमी इस खडहर में जाकर इस तरह घूमने लगे जैसे हर एक कोठरी दालान बल्कि यहा की वित्ता बित्ता भर जमीन उन लोगों की दखी हुई हो। चूने पत्थर के देरों में घूमते और रास्ता निकालते हुए वे लोग एक कोठरी के अन्दर घुस गए जो उस खडहर भर में सब कोठरियों से छोटी थी और दो घण्टे तक बाहर न निकल इसके बाद जब वे लोग बाहर आर्य तो खाली हाथ थे अर्थात् लाश न थी शायद उस कोठरी में गाड या रख आये हो । जब वे आदमी खडहर से बाहर ही मैदान की तरफ चले गये बल्कि बहुत दूर निकल गये तब कामिनी भी कोठरी में से निकली और चारांतरफ देखने लगी! उसे आज तक यही विश्वास था कि इस खडहर का हाल शेरसिह कमला मेरे और उस लम्चे आदमी के सिवाय जो शेरसिंह से मिलने के लिए यहाँ आया था किसी पॉच को मालूम नहीं है मगर आज की कैफियत देखकर उसका खयाल बदल गया और वह तरह तरह के सोच विचार में पड़ गई। थोड़ी देर बाद वह उसी कोटरी की तरफ बढी जिसमें वे लोग लाश छोड गये थे मगर उस कोठरी में एसा अधकार था कि अन्दर जाने का साहस न पडा। 7 देवकीनन्दन खत्री समग्र ३२६