पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३५४

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art एक दिन आधी रात के बाद राजा दिग्विजयसिह के पलग पर बैठी हुई गौहर ने इच्छा प्रकट की कि मै तहखाने में चल कर बीरेन्द्रसिह वगैरह को देखा चाहती हूँ। राजा दिग्विजयसिह उनकी मुहब्बत में चूर हो रहे थे दीनदुनिया की खबर भूले हुए थे तहखाने के कायदे पर ध्यान न देकर गौहर को तहखाने में ले चले। अभी पहिला दर्वाजा भी खोला न था कि यकायक भयानक आवाज आई। मालूम हुआ कि मानो हजारों तो एक साथ छूटो है तमाम किला हिल उठा गौहर बदहवास होकर जमीन पर गिर पड़ी दिग्विजयसिह भी खडा न रह सका। जब दिग्विजयसिह को होश आया छत पर चढ गया और शहर की तरफ देखने लगा। शहर में बेहिसाय आग लगी हुइ थी सैकड़ों घर जल रहे थे अग्निदेव ने अपना पूरा दखल जमा लिया था आग के बडे बडे शोले आसमान की तरफ उठ रहे थे। यह हाल देखते ही दिग्विजयसिह ने सर पीटा और कहा यह सब फसाद वीरेन्द्रसिह के ऐयारों का है। बेशक उन लोगों ने मैगजीन में आग लगा दी और वह भयकर आवाज मैगजीन के उडने की ही थी। हाय सैकडौं घर तयाह हो गये होंगे। इस समय वह कम्बख्त साधू अगर मेरे सामने होता तो मैं उसकी दाढी नोंच लेता जिसके बहकाने से वीरेन्द्रसिह वगैरह का कैद किया। दिग्विजयसिह धवडाकर राजमहल के बाहर निकला और तब उसे निश्चय हो गया कि जो कुछ उसने सोचा था ठीक है। नौकरों ने खबर दी कि न मालूम किसने मेगजीन में आग लगा दी जिसके सबब से सैकड़ों घर तबाह हो गए उसी समय शहर में आग लग गई जो अभी तक बुझाए नहीं बुझती। इस खबर के सुनते ही दिग्विजयसिह अपने कमरे में लौट गया और बदहवास होकर गद्दी पर गिर पड़ा। बेशक यह सब काम वीरन्द्रसिह के ऐयारों का था। इस आगलगी में रामनारायण को भी तोपों में कील ठोकने का खूब मौका हाथ लमा। रामानन्द दीवान घबडा कर घर के बाहर निकला और तहकीकात करने के लिए अकेला की शहर की तरफ चला। रास्ते मे चुन्नीलाल ने हाथ पकड लिया और कहा दीवानजी वन्दगी"चेमौके की वन्दगी से रामानन्द कुट उठा और उसने चुन्नीलाल पर तलवार चलाई। चुन्नीलाल उछल कर दूर जा खडा हुआ और उस वार को बचा गया मगर चुन्नीलाल के वार ने रामानन्द का काम तमाम कर दिया उसकी भुजाली रामानन्द की गर्दन पर ऐसी बैठी कि सर कट कर दूर जा गिरा। अब हमका यह भी लिखना चाहिए कि भैरोसिह ने किस तरह मेगजीन में आग लगाई। भैरोसिह ने एक मोमवती एसा तैयार की जो कवल दो घण्ट तक जल सकती थी अर्थात उसमें दो घण्टे से ज्यादे देर तक जलने लायक मोम न था और उस नामवती के बीचोबीच में आतिशबाजी का एक अनार बनाया जिनमें आधी मोमबती जब जल जाय तो आप से आप अनार में आग लगे। जब इस तरह की मामक्ती तैयार हो गई तो उसने अपने दोनों साथियों से कहा कि मैं मेगजीन में Tग लगाने जाता हूँ, अपनी फिक्र आप कर लूंगा। तुम लोग किसी ऐसी जगह जाकर छिपो जहाँ मैदान या किले की मजबूत दीवार हा मगर इसके पहिल शहर में आग लगा दो इसके बाद भैरोसिह मेगजीन के पास पहुंचे और इस फिक्र में लगे कि मौका मिले ता कमन्द लगा कर उसके अन्दर जाय । यह इमारत बहुत बडी ता न थी मगर मजबूत थी दीवार बहुत चौडी और ऊँची थी फाटक बहुत बड़ा और लोहे का या पहरे पर पचास आदमी नगी तलवार लिए हर वक्त मुस्तैद रहते थे। इस मैगजीन के चारों तरफ से कोई आदमी आग लेकर जाने नहीं पाता था। चन्दमा अस्त हो गया और पिछली रात की अन्धेरी चारों तरफ फैल गई निदादेवी की हुकूमत में सभी पडे हुए थे यहाँ तक कि पहरे वालों की आँखे भी झिपी पडती थीं उस समय मौका पाकर भैरोसिह ने मैगजीन के पिछली तरफ कमन्द लगाई। दीवार के ऊपर चढ़ जाने वाद कमन्द खैच ली और फिर उसी के सहारे उतर गए। मेगजीन के अन्दर हजारों थैले वारूद के गजे हुए पडे थे ताप के गोलों का ढर लगा हुआ था बहुत सी तो भी पडी हुई थी! भैरोसिंह ने गह मोमक्ती जलाई और बारूद के थैलों के पास जमीन पर लगा कर खडी कर दी इसके बाद फुर्ती से मेगजीन के बाहर हो गए और जहाँ तक दूर निकल जाते बना निकल गए। उसी के घण्टे भर बाद (जब मोमक्ती का अनार छूटा होगा) चारूद में आग लगी और मेगजीन की इमारत जड बुनियाद से सत्यानाश हो गई हजारों आदमी मरे और सैकडों मकान गिर पड़े बल्कि यों कहना चाहिए कि उसकी आवाज से रोहतासगढ का किला दहल उठा जरूर कई कोस तक इसकी भयानक आवाज गई होगी। पहाडी के नीचे वीरेन्द्रसिह के लश्कर में जब यह आवाज पहुंची तो दोनों सनापति समझ गए कि मेगजीन में आग लगी क्योंकि ऐसी भयानक आवाज सिवाय मैगजीन उड़ने के और किसी तरह की नहीं हो सकती वंशक यह काम भैरोसिह का है। मगजीन उड़ने का निश्चय होते ही दोनों सेनापति बहुत प्रसन्न हुए और समझ गए कि अब रोहतासगढ़ का किला फतह कर लिया क्योंकि जब बासद का खजाना ही उड गया तो किले वाले तोपों के जरिये से हमें क्योंकर रोक सकते हैं। देवकीनन्दन खत्री समग्र ३३०