पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३५९

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तेरहवॉ बयान -- । तहखाने में बैठी हुई कामिनी का जवकिसी के आने की आहट मालूम हुई तब वह सीढी की तरफ देखने लगी मगर आने वाले अभी छत पर ही थे। उसने समझा कि कमला या शेरसिह आते होंगे मगर जब उसे कई आदमियों के पैर की घमघमाहट मालून हुई तब वह घबराई। उसका खयाल दुश्मनों की तरफ गया और वह अपन बचाव का ढग करने लगी। ऊपर के कमरे से तहखाने में उतरने के लिए जो सीढियाँ थी उसके नीचे एक छोटी कोठरी धनी हुई थी। इसी कोठरी में शेरसिह का असबाब रहा करता था और इस समय भी उनका असवाब इसी के अन्दर था। इसके अन्दर जाने के लिए एक छाटा दर्वाजा था और लोहे का मजबूत मगर हलका पल्ला लगा हुआ था। दर्वाजा बन्द करने के लिए बाहर की तरफ कोई जजीर या कुण्डी न थी मगर भीतर की तरफ एक अडानी लगी हुई थी जो दर्वाजा बन्द करने के लिए काफी थी। दवाज के पल्ले में एक सूराख था जिस पर गौर करने से मालूम हुआ कि वह ताली लगाने की जगह है। कामिनी न तुरन्त चिराग बुझा दिया और अपने विछावन को बगल मे दया कर उसी कोठरी के अन्दर चले जाने बाद भीतर से दर्वाजा चन्द कर लिया। यह काम कामिनी ने बड़ी जल्दी और दव पैर किया। थोड़ी ही देर में कामिनी को मालूम हुआ कि आने वाले अब सीदी उतर रहे है और साथ ही इसके ताली लगाने वाले छेद में से मशाल की रोशनी भी उस कोठरी के अन्दर पहुची जिसमें कामिनी छिपी हुई थी। यह छंद में आँख लगा कर देखने लगी कि कौन आया है और क्या करता है। सिपाहियाना ठाठ के पाँच आदमी ढाल तलवार लगाये हुए दिखाई पडे। एक के हाथ म मशाल थी और चार आदमी एक सन्दूक को उठा कर लाये थे। जमीन पर सन्दूक रख देने बाद पाँचौ आदमी बैठ कर दम लेने और आपस में यो चातचीत करने लगे- मशाल वाला-जहन्नुम में जाय एसी नौकरी दौड़ते दौडते हैरान हो गये ओफ । दूसरा-खैर दौडना और हैरान होता भी सुफल होता अगर कोई नक काम हम लागों के सुपुर्द हाता । तीसरा-भाई चाह जो हो मगर बेगुनाहों का यून नाहक मुझसे तो नहीं किया जाता । चौथा-मुश्किल ला यह है कि हम लाग इनकार भी नहीं कर सकते और भाग भी नहीं सकते। पाँचवां-परसों जो हुक्म हुआ है सो तुमने सुना या नहीं। मशाल-हाँ मुझ मालूम है। तीसरा--मैन नहीं सुना क्योंकि मैं नानक का पता लगान गया था। पाँचवा-परसो यह हुक्म दिया गया है कि जो कोई कामिनी का पकड लायेगा या पता लगा दगा उसे मुंहमांगी चीज इनाम में दी जायगी। तीसरा-हम लागों की ऐसी किस्मत कहाँ कि कामिनी हाथ लगे। दूसरा-(चौक कर ) चुप रहो देखा किसी की आवाज आ रही है। किशारी से बात करत करते जब किसी के आने की आहट मालूम हुइ तो कामिनी चुपकर गई थी। किशोरी को ताज्जुब मालूम हुआ कि यकायक कामिनी चुप क्यों हो गई? थाडी देर तक राह देखती रही कि शायद अब बोले मगर जब दर हो गई ता उसन खुद पुकारा और कहा क्यो बहिन चुप क्यों हो गई? यही आवाज उन पाँचों आदमियों ने सुनी थी। उन लागों न बातें करना छाड दिया और आवाज की तरफ ध्यान लगाया। फिर आयाज आई-बहिन कामिनी कुछ कहो तो सही तुम चुप क्यों हो गई ? क्या ऐसे समय में तुमने भी मुझे छोड दिया। बात करना भी बुरा मालूम होता है। किशोरी की बातें सुन कर पाँचों आदमी ताज्जुब में आ गए और उन लोगों को एक प्रकार की खुशी हुई। एक-उसी किशारी की आवाज है मगर यह कामिनी को क्यों पुकार रही है? क्या कामिनी उसके पास पहुंच गई। - दूसरा-क्या पागलपन की बातें कर रहे हो? कागिनी अपर किशोरी के पास पहुंच जाती तो वह पुकारती क्यों धीरे धीरे आपुस में बात करती या इस तरह उसे लानत देती। तीसरा-अजी यह ता वही है मै समझता हूँ कि कामिनी इस कोठरी में जरूर आई थी दूसरा-आई थी तो गई कहाँ ? चौथा-हम लागो के आने के पहिले ही कही चली गई होगी। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ५