पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३६

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सदार चर्तासह ने घोडा रोक कर जसवन्तसिह स कहा, यह हन लागों का पडाव (टिकने की जगह) है। हमलोगों के घोडे बहुत थक गए है और हम लोग खुद भी बहुत भूसा प्यासे है। इस वक्त रात को इस जगह खा पीकर आराम करना मुनासिब होगा कल सवर कुछ रात रहते हनलोग फिर रवाना होंग।" जसवन्त सिह ने जवाब दिया,"जो आप बेहतर समझिये वही ठीक हे मुझे ता यह भी नहीं मालूम कि कहा जाना है या क्या करना है और कितनी दूर का सफर बाकी है। सर्दार चेतसिह ने इसका जवाब कुछ न दिया। रामा के पास पहुच कर कुल सवार घोडों पर स उतर पड़! यहाँ पर बहुत से साईस भी मौजूद थे जिन्होंने उसी वक्त आगे बढ कर अपन अपने घोड़े थाम लिय और मलन दलने की फिक्र में लगे। सर्दार चेतसिह जसवन्तसिह को साथ लिय एक खेमे में गये जा बनिस्थत और सनों के छोटा मगर खूबसूरत था और जिसके अन्दर एक सफरी चारपाई और एक युवसूरत पलग विछा हुआ था। सरि चतसिह न पलग की तरफ इशारा करके जसवन्तसिह से कहा रनवीरसिह के लिए यह मसहरी विछाई गई थी। हमलाग साचते थे कि आज उनका अपने स्गय लाकर इसी मैदान में डरा करेंग मगर अफसोस बिल्कुल महनत यर्याद गई। अब आप इस मसहरी पर आराम कीजिये। सर्दार चेतसिह की याते सुन आर मसहरी के पास बैठ रनवीर सिंह का याद कर जसवन्तसिह खूब राय। सर्दार ने उन्हें बहुत कुछ समझाया और हिम्मत दिला कर आसू पोछ हाथ मुह धुलवाया। घण्ट भर बाद खान की तैयारी हुई और सर्दार ने जसवन्तसिह को खाने के लिए कहा। जसवन्तसिह तीन दिन के भूयेथे तिस पर भी खान से इन्कार किया। सर्दार चतसिह के बहुत कहन सुनन और कसम देने पर मुश्किल से दो चार ग्रास खाकर उठ खड़े हुए और हाथ मुह धा सम के अन्दर आ उसी सफरी घारपाई पर लेट रहे जो सर्दार चेतसिह के लिए विछी हुई थी और पड़े पड़े रनवीरसिह की याद में आँसू बहाने लगे। सर्दार ने आकर देखा कि जसवन्तसिह मसहरो छोड उसकी चारपाई पर लेटे है। समझ गये कि इनका रनवीरसिह का गम हद्द स ज्यादे है, उनके वास्ते लगाई मसहरी पर कभी न सावेंग और इसके लिए जिद करना उन्हें दुख देना होगा लाचार दूसरी चारपाई मगवाकर आप उस पर लेट रहे। पाँचवॉ बयान थोड़ी रात वाकी थी जब सर्दार चेतसिह की आँख खुली । उठ कर खेमे के बाहर आये और अपनी जेब से एक छोटा सा विगुल निकाल कर वजाया जिसकी आवाज दूर दूर तक गूज गई इसके बाद फिर खेमे के अन्दर गये और चाहा कि जसवन्तसिह को जगावे मगर वे पहिले ही से जाग रहे थे बल्कि उन्हें ता रात भर नींद ही नहीं आई थी, सर्दार चेतसिह के उठने और बिगुल बजाने से आप भी चारपाई पर से उठ खड़े हुए और पूछा 'क्या चलने की तैयारी हो गई? सार चेतसिह ने जवाब दिया, हॉ अब थोड़ी ही देर में हमारे सवार भी तैयार हो जाते है और घण्टे भर में हम लाग यहाँ से कूच कर देंगे। जसवन्त-अभी कितनी रात बाकी है? चेत-दो घण्टे के करीव चाकी होगी। जसवन्त-हमलोग उस ठिकाने कव तक पहुचेगे जहाँ जाने का इरादा है ? चेत -सूरज निकलते निकलते हमलोग अपने ठिकाने पहुंच जायगे, आप भी जरूरी कामों से छुट्टी पा लीजिये. तय तकमै भी तैयार होता है। जसवन्तसिह और सर्दार चेतसिह जरूरी कामों से निपट हाथ मुह घो और कपडे पहिर तैयार हो गए. इसके बाद सर्दार ने फिर खेमे के बाहर आ एक दफे विगुल बजाया जिसके साथ ही उनके कुल सवार घोडों पर सवार हो रवाने हा गए1 घण्टा भर दिन चढ़ते तक ये लोग एक शहर में पहुचे । यद्यपि यह शहर छोटा ही सा था मगर देखने में नेहायत खूबसूरत था, अभी दुकानें बिल्कुल नहीं खुली थी लेकिन अन्दाज से मालूम होता था कि गुलजार है। एक छोटे किले के पास पहुच सर्दार ने अपने साथी सवारों को कुछ इशारा करके कहीं रवाना कर दिया और खुद जसवन्तसिह को अपने साथ ले दर्वाजे के अन्दर घुसे। इस किले का फाटक बहुत बड़ा था.और यहुत से सिपाही सगीन लिये पहरे पर मुस्तैद थे जिन्होंने सर्दार चेतसिह देवकीनन्दन खत्री समग्र १०४४