पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३६२

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चन्द्रकान्ता सन्तति छठवा भाग पहिला बयान वे दोनों साधुजो सन्दूक के अन्दर झाक न मालूम क्या देख कर बेहोश हो गये थे थोड़ी देर बाद होश में आए और चीख चीख कर राने लगे। एक ने कहा हाय इन्द्रजीतसिह तुम्हें क्या हो गया। तुमन तो किसी के साथ बुराई न की थी फिर किस कमवख्त ने तुम्हारे साथ बदी की ? प्यारे कुमार तुमने बडा बुरा धोखा दिया हम लोगों को छोड़ कर चले गये क्या दोस्ती का हक इसी तरह अदा करते है ? हाय अब हम लोग जी कर क्या करेंगे अपना काला मुह ले कर कहाँ जायेंगे ? हमको अपने भाई से बढ़कर मानने वाला अब दुनिया में कौन रह गया। तुम हमें किसके सुपुर्द करके चले गधे । दूसरा बोला- प्यारे कुमार कुछ तो चोलो जरा अपने दुश्मन का नाम तो बताओ कुछ कहा तो सही कि फिस घेईमान ने तुम्हें मार कर इस सन्दूक में डाल दिया? हाय अब हम तुम्हारी मा बेचारी चन्द्रकान्ता के पास कौन मुह लेकर जाएग? किस मुह से कहेंगे कि तुम्हारे प्यारे होनहार लडके को किसी ने मार डाला। नहीं नहीं ऐसा न होगा हम लाग जीत जी लोट कर घर न जायेंगे इसी जगह जान दे देंगे? नहीं नहीं अभी तो हमें उसस बदला लेना है जिसने हमारा सर्वनाश कर डाला। प्यारे कुमार जरा तो मुँह से बोलो जरा आँखें खोल कर देखो तो सही तुम्हारे पास कोन खडा रा रहा है। क्या तुम हमें भूल गए? हाय यह यकायक कहाँ से गजब आकर टूट पड़ा। अब तो पाठक समझ गए होगा कि इस सन्दूक में कुँअर इन्द्रजीतसिह की लाश थी और य दोनों साधु उनक दोस्त भैरोसिह और तारासिह थे। इन दोनों के रोन से कामिनी असल यात समझ गई झट कोठरी के बाहर निकल आई ओर भोमक्ती की रोशनी में कुमार की लाश देख कर जोर जोर से रोने लगी। किशोरी इस तहखाने के बगल वाली कोठरी में थी। उसन जो कुँअर इन्द्रजीतसिह का नाम ले लेकर रोने की आवाज सुनी तो उसकी अजब हालत हो गई। उसका पका हुआ दिल इस लायक न था कि इतनी ठेस सम्हाल सके बस एक दर्फ 'हाय की आवाज तो उसके मुह से निकली मगर फिर तनोबदन की सुध न रही। वह ऐसी जगह न थी कि कोई उसके पास जाय या उसे सम्हाले और देख कि उसकी क्या हालत है। भैरासिह ओर तारासिह ने जो कामिनी को देखा तो ये लोग फूट फूटकर रोने लगे। तहखाने में हाहाकार मच गया। घण्ट भर यही हालत रही। जब कामिनी ने रोकर यह कहा कि इसी के बगल वाली कोठरी में बेचारी किशोरी भी है हाय हम लोगों का रोना सुन कर वेचारी की क्या अवस्था हुई होगी तब तारासिह और भैरोसिह चुप हुए और कामिनी का मुह दखन लगा भैरो-तुम्हें कैसे भालूम हुआ कि यहाँ किशोरी है ? कामिनी में उससे बातें कर चुकी हूँ। तारा-क्या तुम बडी देर से इस तहखाने में हो? कामिनी-देर क्या मै तो कई दिनों से भूखी प्यासी इस तहखाने में कैद हूँ। (उस आदमी की तरफ इशारा करक) यह मरा पहरा दता था। भैरो-खेर जो होना था सा हो गया अब हम लोग अगर रोने धोन में लगे रहेंग ता इनके दुश्मन का पता न लगा सकेंगे और न उससे बदला ही ले सकेंगे। या तो जन्म भर राना है । परन्तु जब इनके दुश्मन से बदला ले लेंगे तो कलज में कुछ ठण्डक पडेमी। तुम यहाँ कैस आई और इन दुष्टों के हाथ क्योंकर फेंसी,खुलासा कहो तो शायद कुछ पता लगे। कामिनी ने अपना खुलासा हाल कहा और इसके बाद पूछा तुम दोनों का आना कैसे हुआ ? भैरो-कमला ने इस तहखाने का पता देकर हम लाग को भेजवाया है थोड़ी ही देर में राजा वीरेन्द्रसिह और कुँअर आनन्दसिह भी बहुत से आदमियों को साथ लिए आया ही चाहते हैं कमला भी उनके साथ होगी हम लोग कुँअर इन्द्रजीतसिह को छुड़ाने के लिए किसी दूसरी जगह जाने वाले थे मगर हाय यह क्या खबर थी कि रास्ते में ही हम लोगों पर यह पहाड टूट पडेगा। हाय जय महाराज यहाँ आएगे तो हम किस मुह से कहेंगे कि तुम्हारे प्यारे लडक की लाश इस तहखाने में पाई गई। इसके बाद भैरोसिह ने इस तहखाने में आने का पूरा हाल कहा तथा यह भी बताया कि जब खडहर के बाहर कर पर हम दोनों आदमी बैठे थे तभी तीन आदमियों की बातचीत से मालूम हो गया कि तुमको उन लोगों ने कैद कर लिया है परन्तु यह आशा न थी कि तुम्हे इस अवस्थामें देखेंगे। उन लोगों ने मुझे देखा तो पहिचान कर डरे और भाग गये मगर मुझ यह न मालूम हुआ कि वे लोग कौन हैं और उन्होंने मुझे कैसे पहिचाना? देवकीनन्दन खत्री समग्र