पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३६६

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खुल गया ता सोच विचार की कुछजरूरत नहीं यदि न खुल सका तो देखा जायगा। इस बात को सभों ने पसन्द किया और राजा बीरेन्द्रसिह ने कमला कोआगे चलने और तहखान का दरवाजा खोलने के लिए कहा। खडहर में इस समय धूआँ कुछ भी न था सब साफ हो चुका था। कमला सभों को साथ लिए हुए उस दालान में पहुंची जहाँ से तहखाने में जाने का रास्ता था। मोमबत्ती जला कर हाथ में ली और बगलवाली कोठरी में जाकर मोमबत्ती तारासिह के हाथ में दे दी। इस कोठरी में एक आलमारी थी जिसके पल्लों में दो मुळे लगे हुए थे इन्हीं मुट्ठों के घुमाने से दर्वाजा खुल जाता था और फिर एक कोठरी में पहुंच जाने से तहखाने में उतरने के लिए सीढ़ियाँ मिलती थीं। इस समय कमला ने इन्हीं दोनों मुटठों को कई बार घुमाया, वे घूम तो गए पर दर्वाजा नखुला। इसके बाद तारासिह ने और फिर तेजसिहन उद्योग किया मगर कोई कामनचला । तब तो सभों का जी बेचैन हो गया और विश्वास हो गया कि उस बेईमान साधु ने जो कुछ कहा सा किया। इस खडहर में कोई शाहदर्वाजा जर है जिसे साधु ने बन्द कर दिया और जिसके सवय से यह दर्वाजा अब नहीं खुलता। सब लोग उस कोठरी से बाहर निकले और साधु को दूढने लगे। खडहर में और नीम के पेड़ के नीचे आत आदमी वेहोश पड़े हुए थे जा सब इकटठे किए गए। दो आदमी जो घोडा की हिफाजत करने के लिए रह गये थे और बेहोश नहीं हुए थे के तो न मालूम कहाँ भाग ही गए थे अब साधु रह गए सो उनके शरीर का कहीं पता न लगा। चारों तरफ खोज होने लगी। राजा वीरेन्द्रसिह तेजसिंह और तारासिह को साथ लिए हुए कमला उस कोठरी में पहुँची जिसमें दीवार के साथ लगी हुई पत्थर की मूरत थी जिसमें एक दफे रात के समय कामिनी जा चुकी थी और जिसका हाल ऊपर के किसी क्यान मे लिखा जा चुका है। इसी कोठरी में पत्थर की मूरत के पास ही साधु महाशय बेहोश पड़े हुए थे। तेज-( मूरत को अच्छी तरह देख कर ) मालूम होता है कि शाहदर्वाजे से इस मूरत का कोई सम्बन्ध है। वीरेन्द्र-शायद ऐसा ही हो क्योंकि मुझे यह खडहर तिलिस्मी मालूम होता है। हाय, बेचारा लडका इस समय कैसी मुसीबत में पड़ा हुआ है। अब दर्वाजा खुलने की तर्कीब किससे पूछी जाय और उसका पता कैसे लगे? मेरी राय तो यह है कि इस खडहर में जो कुछ मिट्टी चूना पडा है सब बाहर फिकवा कर जगह साफ करा दी जाय और दीवार तथा जमीन भी खोदी जाय। तेज-मेरी भी यही राय है। तारा-जमीन और दीवार खुदने से जहर काम चल जायगा। तहखाने की दीवार खोद कर हम लोग अपना रास्ता निकाल लेंगे बल्कि और भी बहुत सी बातों का पता लग जायगा । वीरेन्द्र-( तेजसिह की तरफ देख के) बहुत जल्द वन्दोवस्त करो और दो आदमी रोहतासगढ भेज कर एक हजार आदमी की फौज बहुत जल्द मॅगवाओ। वह फौज ऐसी हो कि सब काम कर सके अर्थात जमीन खोदने सेंध लगाने सडक बनाने इत्यादि का काम बखूबी जानती हो । तेज-बहुत खूब। राजा वीरेन्दसिह के साथ साथ सौ आदमी आये हुए थे वे सब के सब काम में लग गये। बेहोश दुश्मनों के पैर बाँध दिये गये और उन्हें उठाकर एक दालान में रख देने के बाद सब लोग खडहर की मिट्टी उठा उठा कर बाहर फेकने लगे जल्दी के मारे मालिकों ने भी काम में हाथ लगाया। रात हो गई कई मशाल भी जलाये गये मिट्टी की सफाई बराबर जारी रही मगर तारासिंह का विचित्र हाल था घडी घडी रुलाई आती थी और उसे वे बड़ी मुश्किल से रोकते थे। यद्यपि तारासिह ने कुँअर इन्द्रजीतसिह का हाल बहुत कुछ झूठ सच मिला कर राजा बीरेन्दसिंह से कहा था मगर ये बखूबी जानते थे कि इन्दजीतसिह की अवस्था अच्छी नही है उनकी लाश तो अपनी आँखों से देख ही चुके थे परन्तु साधु की बातों ने उनकी कुछ तसल्ली कर दी थी। वे समझ गये थे कि इन्दजीत सिह मर नहीं बल्कि बेहाश है मगर अफसोस तो यह है कि यह बात केवल तारासिह ही को मालूम है भैरोसिंह को भी यदि इस बात की खबर होती तो तहखाने में बैठे बेठे कुमार को होश में लाने का कुछ उद्योग करते। कहीं ऐसा न हो कि बेहोशी में ही कुमार की जान निकल जाय ऐसी कडी बेहोशी का नतीजा अच्छा नहीं होता है इसके अतिरिक्त कई दिनों से कुमार बेहोशी की अवस्था में पड़े है बेहोशी भी ऐसी है कि जिसने बिल्कुल ही मुर्दा यना दिया क्या जाने जीते भी है या वास्तव में मर ही गये। ऐसी बातों के विचार स तारासिह बहुत ही बेचैन थे मगर अपने दिल का हाल किसी से कहते नहीं थे। यहाँ से थोड़ी दूर पर एक गाव था कई आदमी दौड गये और कुदाल फरसा इत्यादी जमीन खोदने का सामान वहाँ से ले आये और बहुत से मजदूरों का साथ लिवाते आये। रात भर काम लगा रहा और सवेरा होते होते तक खडहर साफ > D हा गया। देवकीनन्दन खत्री समग्र ३४२