पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३६८

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VA पीछे फिर कर देखा और देर तक उसी तरफ देखते रह । दो मशालों की रोशनी जो कुछ दूर पर थी इसी तरफ आती दिखाई पड़ी। वे दोनों मशाल मामूली न थे बल्कि मालूम होता था कि लम्बे नेजे या छोट से बांस के सिरे पर बहुत सा कपड़ा लपट कर मशाल का काम लिया गया है और उस हाथ में लिए बल्कि ऊँचा किए हुए दो सवार घोडा दौडाते इसी तरफ आ रहे है। उन्हीं मशाला को देखकर शिवदरा चौका था। वाकरअली एयार पेड़ से ऊपर चढ़ गया और थोड़ी देर में नीचे उतर कर बोला मशाल लेकर केवल दो सवार ही नही है बल्कि और भी कई सपार उनके साथ मालूम होते है। थोडी देर में शिवदत्त के कई आदमी उन सवारों को अपने साथ लिये हुए वहीं आ पहुंचे जहाँ शिवदत्त वेदा हुआ था। उन सवारों में से एक ने घाड पर से उतरने में शीघ्रता की। शिवदत्त न पहिचान लिया कि वह उसका लडका भीमसेन है। भीमसेन दौड़कर शिवदत्त के कदमों पर गिर पड़ा। शिवदत्त ने प्रेम के साथ उटा कर गले लगा लिया दानों की आँखों में ऑसू भर आये और देर तक मुहय्यत भरी निगाहों से एक दूसरे का दखते रहे। इसके बाद लडके का हाथ थाम हुए शिवदत्त अपनी गददी पर जा बेठा और भीमसेन से बातचीत करने लगा। उन सवारों ने भी कमर खाली जो साथ आये थे। भीम-(गदगद स्वर में ) इन चरणों के दशन की कदापि आशा न थी। शिव-ठीक है केवल मरी ही भूल ने यह सब किया परन्तु आज मुझ पर इश्वर की दया हुई है जिसका सबूत इससे बढ कर और क्या हो सकता है कि वीरेन्दसिह को मैने फॉस लिया और मेरा प्यारा लडका भी मुझसे आ मिला। हाँ यह कहो तुम्हें छुट्टी क्याकर मिली? भीम-(अपने साथियों में से एक की तरफ इशारा करके) केवल इनकी बदौलत मेरी जान बची। भीमसेन ने उस आदमी को जिसकी तरफ इशारा किया था अपने पास बुलाया और बैठने का इशारा किया वह अदय के साथ सलाम करने के यादयैठ गया। उसकी उम्र लगभग चालीस वर्ष के होगी शरीर दुबला और कमजार था। रग यद्यपि गोरा और ऑखे बडी थी परन्तु चेहरे से उदासी और लाचारी पाई जाती थी और यह भी मालूम होता था कि कमजोर हाने पर भी क्रोध ने उसे अपना सेवक बना रक्खा है। भीम--इसी न मरी जान बचाइ है। यद्यपि यह दुबला और कमजोर मालूम होता है परन्तु परले सिरे का दिलावर और बात का धनी है और मै दृढतापूर्वक कह सकता हूँ कि इसके ऐसा चतुर और बुद्धिमान होना आजकल के जमाने में कठिन है। यह ऐयार नहीं है मगर ऐयारों को कोई चीज नहीं समझता। यह राहतासगढ का रहने वाला है धीरेन्द्रसिह के कारिन्दों के हाथ से दुखी हो कर भागा और इसने कसम खा ली है कि जब तक वीरेन्द्रसिह और उनके खानदान का नाम निशान न मिटा दूंगा अन्न न खाऊँमा केवल कन्दमूल खा कर जान बचाऊगा। इसमें कोई सन्देह नहीं कि यह जो कुछ चाहे कर सकता है। रोहतासगढ के तहखाने और (हाथ का इशारा करके ) इस खण्डहर का भेद भी यह बखूबी जानता है जिसमें वीरेन्दसिह वगैरह लाचार और आपक सिपाहियों से घिरे पडे है। इसन मुझे जिस चालाकी से निकाला उसका हाल इस समय कह कर समय नष्ट करना उचित नहीं जान पड़ता क्योंकि आज ही इस थोडी सी बची हुई रात में इसकी मदद से एक भारी काम निकलने की उम्मीद है। अब आप स्वय इससे बातचीत कर लें। भीमसेन की बात जो उस आदमी की तारीफ से भरी हुई थी सुन कर शिवदत्त खुशी के मारे फूल उठा और उससे स्वय बातचीत करने लगा। शिव-सब से पहिले मै आपका नाम सुनना चाहता हूँ। वह-(धीरे से कान की तरफ झुक कर ) मुझे लोग वॉकेसिह कह के पुकारते थे परन्तु अब कुछ दिनों के लिए मैने अपना नाम बदल दिया है। आप मुझे सहा कह कर पुकारा कीजिए जिसमें किसी को मेरा असल नाम मालूम न' शिव-जैसा आपने कहा वैसा ही होगा। इस समय तो हमने वोरेन्द्रसिह को अच्छी तरह घेर लिया है उनके सिपाही भी बहुत कम है जिन्हें हम लोग सहज गिरफ्तार कर लेंगे। आपका प्रण भी अब पूरा हुआ ही चाहता है। सहा-(मुस्कुरा कर ) इस बन्दोवस्त से आप रीरेन्दसिह का कुछ भी नहीं कर सकते। शिव--सो क्यों ? संहा क्या आप इस बात को नहीं जानते कि इस खण्डहर की दीवार बडी मजबूत है ? देवकीनन्दन खत्री समग्र'