पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३६९

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शिव-बेशक मजबूत है मगर इससे क्या हो सकता है ? रूहा-क्या इस खण्डहर के भीतर घुसकर आप उनका मुकाबला कर सकेंगे? शिव-क्यों नहीं, रूहा-कभी नहीं इसके अन्दर सौ आदमियों से ज्यादे के जाने की जगह नहीं है और इतने आदमियों को धीरेन्द्रसिह के साथी सहज ही में काट गिरावेंगे ! शिव-हमार आदभी दीवारों पर चढ़ कर हमला करेंग और सबसे भारी बात यह है कि वे लोग दा ही तीन दिन में भूख प्यास स तग होकर लाचार बाहर निकलेंगे उस समय उनको मार लना काई बड़ी बात नहीं है। रूहा-सा भी नहीं हो सकता क्योंकि यह खडहर एक छोटा सा तिलिस्म है जिसका रोहतासगढ के तहखाने वाले तिलिस्म स सम्बन्ध है। इसके अन्दर घुसना और दीवारों पर चढना खेल नहीं है। वीरेन्द्रसिह और उनके लड़कों को इस खण्डहर का बहुत कुछ भेद मालूम है और आप कुछ भी नहीं जानते इसी से समझ लीजिए कि आपमें उनमें क्या फक है इसके अतिरिक्त इस खण्डहर में बहुत से तहखान ओर सुरगें भी है जिनसे वे लोग बहुत फायदा उठा सकत है। शिव-(कुछ सोचकर ) आप बडे बुद्धिमान हैं और इस खण्डहर का हाल अच्छी तरह जानते है। अब मैं अपना बिल्कुल काम आप ही की राय पर छोड़ता हूँ, जो आप कहेंग मै वही करूँगा अब आप ही कहिये क्या किया गय? सहा-अच्छा में आपकी मदद करूँगा आर राय दूगा पहिल आप बतायें कि बीरन्दसिह के यहा आने का सबर आप जानते है? शिव-नहीं। रहा-इसका असल हाल मुझे मालूम हो चुका है। (भीमसेन की तरफ दखकर ) उस आदमी का कहना बहुत ठीक 7 भीम-बेशक ऐसा ही है वह आपका शागिर्द होकर आपसे झुठ कभी नहीं बोलेगा। शिक्-क्या बात है? रुहा-हम लोग यहाँ आ रहे थे तो रास्ते में मेरा एक चेला मिला था जिसकी जुबानी बीरेन्द्रसिह के यहाँ आने का सबब हम लोगों को मालूम हो गया। शिव-क्या मालूम हुआ रूहा-इस खण्डहर के तहखाने में कुँअर इन्द्रजीतसिह न मालूम क्योंकर जा फँसे हैं जो किसी तरह निकल नहीं सकते उन्हीं को छुड़ाने के लिये ये लोग आये है। मैं खण्डहर के हर एक तहखाने और उसके रास्ते को जानता हूँ, अगर चाहू तो कुँअर इन्द्रजीतसिह को सहज ही में निकाल लाऊँ। शिव-ओ हो यदि ऐसा हो तो क्या बात है। परन्तु आपको इस खण्डहर में कोई जाने क्या देगा और चिना खण्डहर में गये आप तहखान के अन्दर पहुच नहीं सकते। रहा-नहीं नहीं खण्डहर में जाने की कोई जरूरत नहीं है मैं बाहर ही बाहरे अपना काम कर सकता हूँ। शिव-तो फिर ऐसे काम में क्यों न जल्दी की जाय? रहा-भरी राय है कि आप या आपके लडके भीमसेन पाँच सौ बहादुरों को साथ लेकर मेरे साथ चलें यहाँ से लगभग दो कोस जाने के बाद एक छोटा सा टूटा फूटा मकान मिलेगा पहिले उसे घेर लेना चाहिए। शिव-उसे घेरने से क्या फायदा होगा? सहा-इस खण्डहर में से एक सुरग गई है जो उसी मकान में निकली है ताज्जुब नहीं है कि बीरेन्द्रसिह वगैरह उस राह से भाग जायें इसलिये उस पर कब्जा कर लेना चाहिए। सिवाय इसके एक बात और है। शिव-वह क्या? कहा-उसी मकान में से दूसरी सुरग उस तहखाने में गई है जिसमें कुँअर इन्द्रजीतसिह है। यद्यपि उस सुरग की राह स इस तहखाने तक पहुंचते पहुंचते पाच दर्वाजे लोहे के मिलते हैं जिनका खोलना अति कठिन है परन्तु उनक खोलने की तर्कीब मुझे मालूम है। वहा पहुँच कर मै और भी कई काम करूंगा। शिक्ष-(खुश होकर ) तव तो सबके पहिले हमें वहा पहुंचना चाहिए। सहा-बशक ऐसा ही होना चाहिए पाच सौ सिपाही लेकर आप मेरे साथ चलिए या भीमसेन चलें फिर देखिये में चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ६