पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

Gr! को अदब के साथ सलान किया और उसके बाद जसवन्तसिह को भी सलाम किया । सर्दार चेतसिह ने एक सिपाही से पूछा 'दीवान साहब अभी दार में आये या नहीं? जिसके जवाब में उस सिपाही ने कहा, अभी नहीं आये मगर आते ही होंगे, वक्त हो गया है, लेकिन आप उनके आन की राह न दखें क्योकि हमलागों को महारानी साहया का हुक्म है कि सर्दार साहब जिस वक्त आवे फौरन मीधे हमारे पास पहुच दर्वाजे पर अटकने न पावें.मा आप दीवान साहब की राह न देखिये । इतना कह वह सिपाही इनके साथ चलने पर मुस्तैद हो गया। सर्दार चेतसिह ने इतना सुन फिर दीवान साहब के आने की राह न देखी और सिपाही के कहे मुताबिक जसवन्तसिह को साथ लिये महल की तरफ रवाना हुए। फाटक के अन्दर थोडी दूर जाने पर एक निहायत खूबसूरत दीवानखाने में पहुचे जिसके बगल में एक दर्वाजा जनाने महल के अन्दर जाने के लिए था । यह दर्वाजा बहुत बडा तो न था मगर इस लायक था कि पालकी अन्दर चली जाये। इस दर्वाजे पर कई औरत सिपाहियाना भेष किये ढाल तलवार लगाये रुआ के साथ पहरा देती नजर आई जिन्होंने सर्दार चेतसिह को झुक कर सलाम किया। एक सिपाही ओरत इन्हें देखते ही विना कुछ पूछे अन्दर चली गई और थाड़ी ही देर के बाद लौट आकर सर्दार चेतसिह से बाली "चलिये. महारानी न बुलाया है।' जसवन्तसिह को साथ लिये हुए सर्दार चेतसिह उसी औरत के पीछे पीछे महल के अन्दर गए जमवन्तसिह न भीतर जाकर एक नेहायत खूबसूरत और हरा भरा छाटा सा वाग देखा जिसके पश्चिम तरफ एक कमरा और सजा हुआ दालान, पूरब तरफ बारहदरी दक्खिन तरफ खाली दीवार, और उत्तर तरफ एक मकान और हम्माम नजर आ रहा था। बहुत सी लोडियाँ अच्छे अच्छे कपडे ओर गहने पहरे इधर उधर घूम रही थीं। औरत के पीछे पीछे ये दानों पश्चिम तरफ वाले उस दालान में पहुचे जिसके गद कमरा था। कमरे के दाजों मे दोहरी चिकें पड़ी हुई थीं तथा दालान में फर्श बिछा हुआ था। सर्दार ने चिक की तरफ झुककर सलाम किया और इसी तरह जसवन्तसिह ने भी सर्दार की देखा देखी सलाम किया। इसके बाद एक लौडी ने बैठने के लिये कहा और ये दोनों उसी फर्श पर बैठ गए। चारों तरफ से बहुत सी लौडिया आकर उसी जगह खड़ी हो गई और जसवन्तसिह को ताज्जुब की निगाह से देखने लगीं। चिक के अन्दर से मीठी मगर गम्भीर आवाज आई 'क्यों चेतसिह, क्या हुआ और यह तुम्हारे साथ कौन है?' चेत-एक सवार की जुबानी ताबेदार ने कुछ हाल कहला भेजा था। आवाज हों हॉ, मालूम हुआ था कि जिनको लाने के लिए तुम गए थे उन्हें कोई दुश्मन ले गया और यह हाल तुम्हें एक साधु से मालूम हुआ। वह साधु कहाँ है ? और यह तुम्हारे साथ कौन है ? इनका नाम जसवन्तसिह तो नहीं है ? चैत–जी हॉ इनका नाम जसवन्तसिह ही है उनकी जुदाई में ये ही साधु बने घूम रहे थे और हमलोगों को मिले थे। आवाज-इनसे और रनवीरसिह से तो बड़ी दोस्ती है, फिर सग कैसे छूटा? इसके जबाव में सर्दार चेतसिह ने वह पूरा हाल कह सुनाया जो.जसवन्तसिह से सुना और अपनी आखों देखा था। जसवन्तसिह अपने दोस्त की जुदाई में तो परेशान और दुखी हो हीरहे थेदूसरे इन ताज्जुव भरी वातो और घटनाओं ने उन्हें और भी परेशान कर दिया। पहिले तो यही ताज्जुब था कि सर्दार चेतसिह ने मेरा नाम सुनते ही कैसे पहिचान लिया कि मैं रनवीरसिह का दोस्त हूँ अब उससे भी बढ के यह बात हुई कि यहा पर्दे के अन्दर से महारानी ने बिना नाम पूछे ही पहचान लिया कि यह जसवन्त है और रनबीर मिहका पक्का दोस्त है। क्या मामला है सो समझ में ही आता. इन लोगों को हमारे रनवीरसिह से क्या मतलब है और इनका इरादा क्या है ? इन बातों को नीचे सिर किये हुए जसवन्तसिह सोच रहे थे कि इतने में चिक के अन्दर से फिर आवाज आई- 'अच्छा चेतसिह, जसवन्तसिह के तो हमारी लौडियों के हवाले करो, वे सब इनके नहलाने धुलाने खाने पीने का सामान कर देंगी और इन्हें यहा आराम के साथ रक्खेंगी, और इनको भी समझा दो कि यहाइन्हें किसी तरह की तकलीफ न होगी आराम के साथ रहे और हमारे दीवान साहब को कहला दो कि शाम के वक्त जासूसों के जमादार को साथ लेकर यहाँ आवें, इस वक्त मैदरबार न करूगी। आज दर्बार के वक्त किसी के आने की जरूरत नहीं है और किसी तरह की दर्खास्त भी आज न ली जायगी।' यह हुक्म पाकर सर्दार चेतसिह उठ खडे हुए और पर्दे की तरफ झुककर सलाम करने के बाद बाहर रवाना हो गए। हमारे जसवन्तसिह बेचारे चुपचाप ज्यो के त्या हक्का बक्का बैठे रहे, मगर थोड़ी देर बाद कई लौडियों ने अन्दर से आकर उनसे कहा, 'आप उठिये और नहाने धोने की फिक्र कीजिये क्योंकि आज ही आपको हनलोगों के साथ रनबीरसिह की खोज में जाना होगा । हमलोग उनके दुश्मन को जानते हैं आप किसी तरह की चिन्ता न करें।' कुसुम कुमारी १०४५