पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३७०

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क्या करता हूँ। शिय-अब भीमसन का तकलीफ देना तो में पसद नहीं करता। रुहा-यह बहुत थक गये है और कैद की मुसीवत उठा कर कमजोर भी हो गये है यहा का इन्तजाम इन्हें सुपुर्द कीजिये और आप मेरे साथ चलिये। इसके कुछ देर बाद शिवदत च सौ फौज लेकर कहा के साथ उत्तर यी तरफ रवाना हुआ। इस समय पहर भर रात वाकी थी चाद ने भी अपना चेहरा छिपा लिया था मगर रहमदित तारे डबडराई हुई आयो स दुष्ट शिवदत्त और उसके साथियों की तरफ देख दख अफसोस कर रहे थे। ये पांच सौ लडाके घोड़ों पर सवार थे। रूहा और शिवदत्त अरबी घोड़ों पर सवार सबके आगे आगे जा रहे थे। रूहा केवल एक तलवार कमर में लगाये हुए था मगर शिवदत्त पूरे ठाठ से था। कमर में कटार और तलवार तथा हाथ में भेजा लिये हुए बड़ी खुशी से घुल घुल कर बातें करता जाता था। सड़क पथरीली और ऊँची नीची थी इसलिये ये लोग पूरी तेजी के साथ नहीं जा सकते थे तिस पर भी घटे भर चलन के बाद एक छोटे से टूटे फूट मकान की दीवार पर रूहा की नजर पड़ी और उसने हाथ का इशारा करके शिवदा से कहा, "बस अब हम लोग तिकाने आ पहुँचे यही मकान है।' शिवदत्त के साथी सवारों ने उस मकान को चारों तरफ से घर लिया। यहा-इस मकान में कुछ खजाना भी है जिसका हाल मुझे अच्छी तरह मालूम है। शिव-(खुश होकर ) आजकल मुझे रुपये की जरुरत भी है। सहा-मैं चाहता हूँ कि पहिले केवल आपको इस मकान में ले चल कर दो एक जगह निशान और वहा का कुछ भेद वता दूँ फिर जैसा मुनास्चि होगा वैसा किया जायगा। आप मेरे साथ अकेले चलन के लिये तैयार है, डरते ता नहीं? शिव-(घमण्ड के साथ) क्या तुमने मुझे डरपोक समझ लिया है? और फिर ऐसी अवस्था में जवकि हमारे पाँच सौ सवारों से यह मकान घिरा हुआ है ? रूहा-(हँसकर) नहीं नहीं मैने इसलिए टोका कि शायद इस पुराने मकान में आपको भूत-प्रेत का गुमान पैदा हो। शिव-छि मै ऐसे खयाल का आदमी नहीं हूँ, यस देर न कीजिए चलिए। रूहाने पयरी से आग झाड कर मोमबत्ती जलाई जो उसके पास थी और शिवदत्त को साथ लेकर मकान के अन्दर घुसा। इस समय उस मकान की अवस्था बिल्कुल खराब थी केवल तीन कोठरियाँ बची हुई थीं जिनकी तरफ इशारा करके सहा ने शिवदत्त से कहा, यद्यपि यह मकान बिल्कुल टूट फूट गया है मगर इन तीनों कोठरियों को अभी तक किसी तरह का सदमा नहीं पहुंचा है मुझे केवल इन्हीं कोठरियों से मतलब है। इस मकान की मजबूत दीवारें अभी दो तीन बरसातें सम्हालने की हिम्मत रखती है। शिव- मैं देखता हूँ कि वे तीनों काठरियाँ एक के साथ एक मटी हुयी है और इसका भी कोई सबब जरूर होगा। सहा-जी हाँ मगर इन तीन कोठरियों से इस समय तीन काम निकलेंगे। इसके बाद रूहा एक कोठरी के अन्दर घुसा। इसमें एक तहखाता था और नीचे उतरने के लिए सीढियाँ नजर आती थीं। शिवदत्त ने पूछा 'मालूग होता है इसी सुरग की राह आप मुझे ले चलेंगे? इसके जवाब में रूहा ने कहा 'हाँ इन्दजीतसिह को गिरफ्तार करने के लिए इसी सुरग मे चलना होगा मगर अभी नहीं मै पहिले आपको दूसरी कोठरी में ले चलता हूँ जिसमें खजाना है मेरी तो यही राय है कि पहिले खजाना निकाल लेना चाहिए, आपकी क्या राय है ? शिव-(खुश होकर) हाँ हाँ पहिले खजाना अपने कब्जे में कर लेना चाहिए कहिए तो कुछ आदमियों को अन्दर बुलाऊँ? रूहा-अभी नहीं पहिले आप स्वय चल कर उस खजाने को देख तो लीजिए ! शिव- अच्छा चलिये। अब ये दानों दूसरी काठरी में पहुंचे। इसमें भी एक वैसा ही तहखाना नजर आया जिसमें उतरने के लिए सीडिया मौजूद थीं। शिवदत्त को साथ लिए हुए कहा उस तहखाने में उतर गया। यह ऐसी जगह थी कि यदि सौ आदमी एक साथ मिल कर चिल्लाए तो भी मकान के बाहर आवाज न जाय। शिवदत्त को उम्मीद थी कि अवरुपये और अशर्फियों से भरे हुए हेंग दिखाई देंगे मगर उसके बदले यहाँ दस सिपाही दाल तलवार लिए मुह पर नकाब डाल दिखाई दिये और साथ ही इसके एक सुरग पर भी नजर पड़ी जो मालूम होता था कि अभी खोद कर तैयार की गई है। शिवदत्त एकदम काप उठा उसे निश्चय हो गया कि रहा ने मेरे साथ दगा की, और ये लोग मुझे मार कर इसी गड़हे में दया दंगे। उसने एक लाचारी की निगाह रूहा पर डाली और कुछ कहना चाहा भगर खौफ ने उसका गला ऐसा दबा दिया कि एक शब्द भी मुह से न निकल सका। देवकीनन्दन खत्री समग्र