पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३७३

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art इस लडाई में जो घटे भर स ज्याद देर तक होती रही राजा वीरेन्द्रसिह के दस आदमी मारे गये और वीस जख्मी हुए। शिवदत्त के चालीस मारे गए और साठ जख्मी हुए जिनसे दरियाफ्त करने पर राजा वीरेन्दसिह को भीमसेन और शिवदत्त का खुलासा हाल जैसा कि हम ऊपर लिख आए है मालूम हा गया मगर इसका पता न लगा कि शिवदत्त को किसने किस रीति से गिरफ्तार कर लिया। बीरेन्द्रसिह ने अपने कई आदमी लाशों को हटान और जस्मियों की हिफाजत के लिए तैनात किया और इसके बाद अँअर इन्द्रजीतसिह का छुडाने के लिए खण्डहर के तहखाने में जाने का इरादा किया। जिस तहखाने में कुंअर इन्दजीतसिह थे उसके रास्ते का हाल कई दफे लिखा जा चुका हे पुन लिखने की कोई जरूरत नहीं इसलिए केवल इतना ही लिखा जाता है कि वेदजे जिनका खुलना शाहदवाजा बन्द हो जाने के कारण कठिन हा गया था अब सुगमता से खुल गए जिसमें समां को खुशी हुइ और केवल बीरेन्द्रसिह आनन्दसिह तेजसिंह कमला और तारासिह मशाल लेकर उस तहखाने के अन्दर उतर आए। इस समय तारासिह की अजब हालत थी। उसका कलेजा कापता और उछलता था। वह सोचता था कि देखें कुंअर इन्द्रजीतसिंह भैरोसिह और कामिनी को फित्त अवस्था में पाते हैं। ताज्जुब नहीं कि हमारे पाठकों की भी इस समय वही अवस्था हा और वे भी इसी सोच विचार में हो मगर वहाँ तहखाने में तो मामला ही दूसरे ढग का था। तहखाने में उतर जाने के बाद राजा वीरेन्दसिह आनन्दसिह और एयाों ने चारों तरफ देखना शुरू किया मगर काई आदमी दिखाई न पडा और न कोई एसी चीज नजर पड़ी जिससे उन लोगों का पता लगता जिनकी खोज में वे लोग तहखाने के अन्दर गए थे। न तो वह सन्दूक था जिसमें इन्द्रजीतसिह की लाश थी और न भैरोसिह कामिनी या उस सिपाही की सूरत नजर आई जो उस सदूक के साथ तहखाने में आया था जिसमें कुंअर इन्द्रजीतसिह की लाश थी। वीरेन्द्र-(तारासिंह की तरफ देख कर ) यहा तो काई भी नहीं है क्या तुमने उन लोगों का किसी दूसरे तहखाने में छोडा था। तारा-जी नहीं मैन उन सभों को इसी जगह छोडा। (हाथ स इशारा करके) इसी कोठरी में कामिनी ने अपने को बन्द कर रक्खा था। वीरेन्द-कोठरी का दवाजा खुला हुआ है उसके अन्दर जाकर देखो तो शायद कोई हो। कमला ने कोटरी का दर्वाजा खोला और अन्दर झाक कर देखा इसके बाद कोठरी के अन्दर घुस कर उसने आनन्दसिह और तारासिह को पुकारा और उन दोनों ने भी कोठी के अन्दर पैर रक्खा । कमला तारासिंह और आनन्दसिह को कोठरी के अन्दर घुसे आधी घडी से ज्यादे गुजर गई मगर उन तीनों में स एक भी बाहर न निकला। आखिर तेजसिह ने पुकारा परन्तु जवाब न मिलने पर लाचार हो हाथ में मशाल लेकर तेजसिह खुद कोठरी के अन्दर गए और इधर उधर ढूढने लगे। वह कोठरी बहुत छोटी और सगीन थी। चारों तरफ पत्थर की दीवारों पर खूब ध्यान देने से कोई खिडकी या दर्वाजे का निशान नहीं पाया जाता था हा ऊपर की तरफ एक छोटा सा छेद दीवार में था मगर वह भी इतना छोटा था कि आदमी का सिर किसी तरह उसके अन्दर नहीं जा सकता था ओर दीवार में कोई ऐसी रुकावट भी न थी जिस पर चढ के या पैर रख कर कोई आदमी अपना हाथ उस मोखे (छेद) तक पहुचा सके। ऐसी कोठरी में से यकायक कमला तारासिह और आनन्दसिह का गायब हो जाना बडे ही आश्चर्य की बात थी। तजसिह ने इसका समय बहुत कुछ सोचा मगर अक्ल ने कुछ मदद न की। वीरेन्द्रसिह भी कोठरी के अन्दर गये और तलवार के कब्जे से हर एक दीवार को ठोंक टोंक कर देखने लगे जिससे मालूम हो जाय कि किसी जगह से दीवार पोली तो नहीं है मगर इसस भी कोई काम न चला। थोडी देर तक दानों आदमी हैरान हो चारो तरफ देखते रहे। आखिर किसी आवाज ने उन्हें चौकन्ना कर दिया और वे दोनों ध्यान देकर उस छेद की तरफ देखने लगे जो उस कोठरी के अन्दर ऊची दीवार में था और जिसमें से आवाज आ रही थी। वह आवाज यह थी यस जहा तक जल्द हो सके तुम दोनों आदमी इस तहखाने से बाहर निकल जाओ नहीं तो व्यर्थ तुम दोनों की जान चली जायगी अगर बचे रहोगे तो दोनों कुमारों को छुडाने का उद्योग करोगे और पता लगा ही लागा मै वही बिजली की तरह चमकन वाला नेजा हाथ में रखने वाली औरत हू, पर लाचार इस समय किसी तरह तुम्हारी मदद नहीं कर सकती। अम तुम लोग बहुत जल्द रोहतासगढ चले जाओ उसी जगह आकर मैं तुमसे मिलूगी और सब हाल खुलासा कहूगी। अव में जाती हू क्योंकि इस समय मुझे भी अपनी जान की पड़ी है। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ६