पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३७६

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उसकी समाधि है परन्तु मुझ विश्वास है कि योगिराज सजीव हैं और मेरी रक्षा का ध्यान उन्हें सदैव बना रहता है। (हाथ जोड़ कर ) योगीराज स में प्रार्थना करती हूँ कि मरी प्रतिज्ञा को निचाहे। ( समाधि पर हाथ रख कर ) यदि नानक मुझ वह ताली द दगा तो में उस के साथ कभी दगान करूँगी उसे अपने भाई क समान मानूगी और उसी काम में उद्याग करेगी जिसमें उसकी खुशी हो। में उस आदमी के लिय भी कसम खाती हूँ जिसने अपना नाम भृताथ रक्खा हुआ है। उसे में अपन सहादर भाई के समान मानूगी और जब तक वह मर साथ बुराई न करेगा में उसकी भलाई करती रहूगी । इतना कह कर कमलिनी समाधि से अलग हो गई। नानक ने एक छोटी सी डिबिया कमलिनी के हाथ में दी और उसक परी पर गिर पड़ा। कमलिनी ने पीठ टोंक कर उसे उठाया और उस डिविया को इज्जत के साथ सिर से लगाया। इसके बाद चारों आदमी फिर उस पत्थर की चट्टान पर आ कर बैठ गये और यातचीत होने लगी। भूत--(कमलिनी स ) जय आपने मुझ और नानक को अपने भाई के समान मान लिया तो मुझे जा कुछ आपसे कहना हो दिल खाल कर कह सकता हू और जो कुछ मागना हो माग सकता हूँ चाहे आप दं अथवा न दें। कम-(मुस्कुरा कर) हा हा जा कुछ कहना हो कहो और मागना हा मागा। कम-इसके कहने की तो कोई जरूरत न थी मैं स्वय चाहती थी कि तुम दोनों को कोई अनमोल वस्तुहूँ, और ठहरो मैं अभी ला देती हूँ। भूत-इसमें कोई सदेह नहीं कि आप के पास एक स एक बढकर अनमाल चीजें होंगी अस्तु मुझे और नानक को कोई ऐसी चीज दीजिए जो समय पर काम आय और दुश्मनों को धमकाने और उन पर फतह पाने के लिए वनजीर हो! इतना कह कर कमलिनी उठी और चश्म के जल में कूद पड़ी। उस जगह जल बहुत गहरा था इसलिए मालूमन हुआ कि वह कहाँ चली गई। कमलिनी के इस कामन सभों को ताज्जुब में डाल दिया और तीनों आदमी टकटकी बाध कर उसी तरफ दखने लग। आध घण्टे बाद कमलिनी जल के बाहर निकली। उसके एक हाथ में छोटी सी कपडे की गठरी और दूसरे हाथ में लाह की जजीर थी। यद्यपि कमलिनी जल में स निकली थी और उसके कपडे गील हो रहे थे तथापि उस कपड़ की गठरी पर जल न कुछ भी असर न किया था जिस कमलिनी लाई थी 1 कमलिनी न कपड़ की गठरी पत्थर की चट्टान पर रख दी और लाह की जजीर भूतनाथ के हाथ में दकर माली इसे तुम दा आदमी मिल कर खींचा। उस जजीर के साथ एक छोटा सा लोह का मगर हलका सन्दूक बघा था जिस मृतनाथ और नानक न खेंच कर बाहर निकाला। कमलिनी ने एक खटका दवा कर सदूक खाला। इसके अन्दर चार खजर एक नेजा और पाच अगूटिया थीं। कमलिनी ने पहिले एक अगूठी निकाली और अपनी अगुली में पहिर लिया, इसके बाद एक खजर निकाला और उसे म्यान से बाहर कर तारा भूतनाथ और नानक को दिखा कर बोली "देखो इस खजर का लोहा कितना उम्दा है ! भूत-घशक बहुत उम्दा लाहा है । कन-अव इसके गुण सुना। यह खजर जिस चीज पर पड़ेगा उसे दो टुकड़े कर देगा चाहे वह चीज लोहा पत्थर अष्टधातु या फौलादी हर्या क्यों न हो। इसके अतिरिक्त जब इसका कब्जा दबाओगे तो इसमें बिजली की तरह चमक पैदा होगी उस समय यदि सौ आदमी भी तुम्हें घेरे हुए होंगे तो चमक से समी की आखें बन्द हो जायगो। यद्यपि इस समय दिन है और किसी तरह की चमक सूर्य का मुकाबला नहीं कर सकती तथापि इसका मन्ना नै तु दिखाती हूँ। इतना कह कर कमलिनी ने खजर का कञ्ज्ञा दयाया, यकायक इतनी ज्याद चमक उसमें से पैदा हुई कि दिन का समय हाने पर भी उन तीनों की आखें बन्द हो गई मालूम हुआ कि एक बिजली सी आँख के सामने चमक गई। कम-सिवाय इसके इस खजर का जो मी कोई छूएगा या जिसके बदन से यह खजर छुआ दोग उसक खून में एक प्रकार की बिजली दौड़ जायगी और वह तुरन्त बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ेगा: लो इसे तुम लोग छू कर देखो यही अद्भुत खजर तुम लोगों को दूगी ! कमलिनी ने खजर भूतनाथ के आगे रख दिया भूतनाथ ने उसे उठाना चाहा मगर हाथ लगने के साथ ही वह कापा और बदहवास हाकर जमीन पर गिर पड़ा। कमलिनी ने अपना दूसरा हाथ जिसमें अगूठी थी उसके बदन पर फेरा तय उसे होश आया। भूत-चीज ता बहुत अच्छी है मगर इसका छूना गजब है। कम (सन्दूक मे से कई अगृठिया निकाल कर) पहले इन अगूठियों को तुम लोग पहिरी तब इस खजर को हाथ में ले सकाग और तब इसकी तज चमक भी तुम्हारी आखों पर अपना पूरा असर न कर सकेगी अर्थात् जो कोई मुकाबले में देवकीनन्दन खत्री समग्र ३५२