पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३७८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

Got चौथा बयान अवता मौसम में फर्क पड़ गया। ठडी ठडी हवा जा कलेजे को दहला देती थी और सदन में कपकपी पैदा करती थी अब भली मालूम पड़ती है। वह धूप जिसे देख चित्त प्रसन्न होता था और जो बदन में लग कर ग रग से सर्दी निकाल देली थी अब बुरी मालूम हाती है। यद्यपि अभी आसमान पर बादल के टुकडे दिखाई नहीं देते तथापि मध्या के समय मैदान याग और तराई की ठण्डी टण्डी ओर शीतल तथा मन्द मन्द वायु सेवन करने का जी चाहता है। यहाँ से हिलत हुए पड़ों की कोमल कोमल पत्तियों की बहार ऑयों की राह घुस कर अन्दर से दिल को अपनी तरफ खेंच लेती है तथा टकटकी बंधी हुई आँखों को दूसरी तरफ दखने का यकायक मौका नहीं मिलता। यद्यपि सूर्य अस्त हुआ ही चाहता है और आसमान पर उड़ने वाल परिन्दों के उतार और जमीन तरफ झुक हुए एक ही तरफ उडे जाने से मालूम होता है कि बात की बात में चारों तरफ अधेरा छा जायगा तथापि हम अपने पाठकों को किसी पहाड की तराई में ले चल कर एक अनूठा रहस्य दिखाया चाहते है। तीन तरफ ऊंचे ऊँचे पहाड और बीच म कासों तक का मैदान रमणीक ता है परन्तु रात की अवाई और सन्नाटे ने उसे भयानक बना दिया है। सूर्य अस्त होने में अभी विलम्ब है परन्तु ऊँचे ऊँचे पहाड सूर्य की आखिरी लालिमा को इस मैदान में पहुंचने नहीं देते। चारों तरफ सन्नाटा हे जहाँ तक निगाह काम करती है इस मैदान में आदमी की सूरत दिखाई नहीं पडती हॉ पश्चिम तरफ वाले पहाड़ के नीचे एक छोटा चमडे का खेमा दिखाई पड़ता है। इस समय हमें इसी खमे से मतलब है ओर हम इसी के दरवाज पर पहुच कर अपना काम निकाला चाहते हैं। इस खेमे क दर्वाजे पर केवल एक आदमी कमर में खजर लगाए टहल रहा है। यद्यपि इसकी जवानी ने इसका साथ छोड दिया है और फिक्र ने इसे दुबल कर दिया है मगर फुर्ती मजबूती और दिलेरी ने अभी तक इसक साथ दुश्मनी नहीं की ओर वे इस गई गुजरी हालत में भी इसका साथ दिए जाती है। इस आदमी की सूरत शक्ल के बारे में हमें कुछ विशेष लिखने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि हमारे पाठक इसे पहिचानते हैं और जानत है कि इसका नाम भूतनाथ भूतनाथ का खेम के दर्वाजे पर टहलते हुए दर हो गई। वह न मालूम किस सोच में डूबा हुआ था कि सिर नीचा किए हुए सिवाय टहलन के इधर उधर दखने की उसे बिल्कुल फुरसत न थी हाँ कभी कभी वह सिर उठाता और एक लम्बी सॉस लेकर केवल उत्तर की तरफ देखता और सिर नीचा कर उसी तरह टहलने लगता अब सूर्य ने अपना मुह अच्छी तरह जमीन क पर्दे में छिपा लिया और भूतनाथ ने कुछ बेचैन हाकर उत्तर की तरफ देख धीरे से कहा, अब ता बहुत ही विलम्य हा गया क्या वेमौके जान आफत में फंसी है। यकायक तेजी के साथ घोडा दौडता हुआ एक सवार उत्तर की तरफ स आता हुआ दिखाई पड़ा। कुछ और पास आने से मालूम हो गया कि वह औरत है मगर सिपाहियाना ठाठ में ढाल तलवार के सिवाय उसके पास कोई हर्वा न था। इस औरत की उम्र लगभग चालीस वर्ष की होगी। सूरत शक्ल से मालूम होता था कि किसी समय में यह बहुत ही हसीन और दिल लुभाने वाली रही होगी। बात की यात में यह औरत खेमे के पास आ पहुंची और घोडे से उतर कर उसकी लगाम खेमे की एक डोरी से अटका देने के बाद भूतनाथ के पास आकर बोली 'शायास भूतनाथ बेशक तुन वादे के सब्ध हो। भूत-मगर अभी तक मरी समझ में यह न आया कि तुम मुझसे दुश्मनी रखती हो या दोस्ती ? औरत-(हँस कर ) अगर तुम एसे ही समझदार होते तो जीते जागते और निराग रहने पर भी मुर्दो में क्यों गिन जाते? भूत-(कुछ सोच कर ) खेर जो हुआ सो हुआ अब मुझसे क्या चाहती हो ? औरत-तुमसे एक काम कराया चाहती हूँ। भूत-वह कौन काम है जिस तुम स्वय नहीं कर सकती? औरत-कोवल यही एक काम भूत-( आश्चर्य की रीति स गर्दन हिला कर ) खैर कहो तो सही यदि करने लायक होगा तो करूँगा। औरत-में बखूबी जानती हूँ कि तुम उस काम को सहज ही में कर सकते हो। भूत-तब कहन में दर क्यों करती हो? आरत-अच्छा सुनो यह ता जानते ही हा कि कमलिनी को ईश्वर ने अद्भुत वल दे रक्खा है। देवकीनन्दन खत्री समग्र ३५४