पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३७९

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ori भूत-हॉ घेशक उसमें कोई दैवी शक्ति है वह जो कुछ चाहे सो कर सकती है। जो कोई उसे जानता है वह कहेगा कि कमलिनी का कोई जीत नहीं सकता। औरत-हॉ ठीक है परन्तु मैं खूब जानती हूँ कि तुम कमलिनी से ज्याद ताकत रखते हो। भूत-(चौक और काप कर ) इसका क्या मतलब? औरत-यही मतलब कि तुम अगर चाहो तो उसे मार सकते हो। भूत-मगर मै एसा क्यों करने लगा। औरत-केवल मेरी आज्ञा स। इतना सुनत ही भुतनाथ के चेहरे पर मुर्दनी छा गई उसका कलजा कापने लगा और सिर कमजोर होकर चक्कर खाने लगा यहाँ तक कि वह अपने को सभाल न सका और जमीन पर बैठ गया। मालूम होता था कि उस औरत की आखिरी बात न उसका खून निचाडं लिया है। न मालूम क्या सवव था कि निडर होकर भी एक साधारण और अकेली औरत की बातों का जवाब नहीं दे सकता और उसकी सूरत से मजबूरी और लाचारी झलक रही है। भूतन्गय की ऐसी अवस्था देख कर उस औरत को किसी तरह का रज नहीं हुआ बल्कि वह मुस्कुराई और उसी जगह घास पर बैठ कर न मालूम क्या सोचने लगी। थोडी दर बाद जब भूतनाथ का जी ठिकाने हुआ ता उसने उस औरत की तरफ देखा और हाथ जोड कर कहा क्या सचमुच मुझे एसा हुक्म लगाया जाता है ? औरत-हाँ कमलिनी का सिर लेकर मेरे पास हाजिर होना पड़ेगा और यह काम सिवाय तेरे और काई भी नहीं कर सकता क्योंकि वह तुझ पर विश्वास रखती है। भूत-(कुछ साच कर) नहीं नहीं मेरे किए यह काम न होगा। जो कुछ कर चुका हूँ उसी के प्रायश्चित से आज तक छुट्टी नहीं मिलती। ओरत-क्या तू मरा हुक्म टाल सकता है ? क्या तुझमें इतनी ताकत है ? यह सुन भूतनाथ बहुत ही बेचन हुआ। वह उठ खड़ा हुआ और सिर नीचा किए इधर उधर टहलने और नीचे लिखी बातें धीर धीरे चोलन लगा - आह मुझ सा बदनसीव भी दुनिया में कोई न होगा। मुदत तक मुदों में अपनी गिनती कराई, अब ऐसा सयोग हो गया कि अपन को जीता जागता साबिता करूंमगर अफसोस करी कराई मेहनत मिट्टी हुआ चाहती है। झय उस आदमी के साथ जिसमें नकी कूट झूट कर भरी है मै बदी करने के लिए मजबूर किया जा रहाहूँ। क्या उसके साथ बदी करने वाला कभी सुख भाग सकता है? नहीं नहीं कभी नहीं फिर मैं ऐसा क्यों करूं? मगर मेरी जान क्योकर बच सकती है। इसका हुक्म न मानना मेरी कुदरत के बाहर है। हाय एक दफे की भूल जन्म भर के लिए दुखदाई हो जाती है। शेरसिह सच कहता था इन्हीं बातों का साच कर उसने मरा नाम 'काल रख दिया था और उसे मेरी सूरत से घृणा हो गई थी। (कुछ देर तक चुप रह कर) ओफ मै भी व्यर्थ के विधार में पड़ा हूँ, आखिर जान तो जायेगी ही इसका हुक्म भानूगा तो भी मारा जाऊँगा और यदि न मानूगा तो भी मौत की तकलीफ उठाऊँगा और तमाम दुनिया में मेरी बुराई फैलेगी। ( चौंक कर ) राम राम मुझे क्या हो गया जो भूत-( उस औरत की तरफ देख के ) अच्छा में कमलिनी को मारने के लिय तैयार हूँ, मगर इसके बदले में मुझे इनाम क्या मिलेगा? औरत-( हस कर ) तू इस लायक नहीं कि तुझे इनाम दिया जाय । भूत-क्या मैं इस दर्जे को पहुंच गया। औरत-बेशक। भूत-नहीं कभी नहीं। जा मैं तेरा हुक्म नहीं मानता देखू तू मेरा क्या कर लेती है। औरत-भूतनाथ देख खूब सोच कर कोई बात मुह से निकाल ऐग न हो कि अन्त में पछताना पडे। भूत-जा जा जो करते चने कर ले। भूतनाथ की आखिरी बात सुन कर वह औरत क्रोध में आकर कापने लगी। उसके होठ काप रहे थे मगर कुछ कहना मुश्किल हो रहा था। इस समय चारो तरफ अधेरा छा चुका था अर्थात रात बखूबी हो चुकी थी। थोड़ी देर के लिए दोनों आदमी चुप हो गये यकायक घोड़ों के टापों की आवाज (जो बहुत दूर से आ रही थी) भूतनाथ के कान में पडी और साथ ही इसके वह औरत भी बोल उठी अच्छा देख मै तेरी ढिठाई का मजा चखाती हूँ। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ६ ३५५