पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३८

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जसवन्तसिह ने जवाब दिया, हाय, मुझे बिल्कुल नहीं मालूम कि इस वक्त मेरे दोस्त पर क्या आफत गुजरती होगी ? उसको नहाने धोने का भी मौका मिला होगा या नहीं ? उसने क्या खाया पीया होगा? हाय मुझे विश्वास है कि उसके दिमाग से अभी तक पागलपन की बू न गई हागी, उसी तरह बकना झकना जारी होगा. अब तो उसके सामन वह सत्यानाशी मूरत भी नहीं जिसे देख वह खाना पीना भूला गया था 'अव न मालूम उसकी क्या दशा होगी, अगर तुम लाग यह जानती हो उसे फलाना आदमी ले गया है तो ईश्वर के लिये जल्दी बता दो कि मै उसके पास पहुच कर जिस तरह बने उसे कैद से छुडाऊ या अपनी भी जान उसके कदमों पर न्योछावर करु । मेरे नहाने धोने खाने पीने की फिक्र मत करो, इसका कुछ अहसान मरे ऊपर न होगा। अगर मेरे दास्त के दुश्मन का पता बता दोगे तो मै जन्म भर तुम्हारा ताबेदार बना रहूगा, बिना खरीदे गुलाम रहूगा. चाहे मुझसे एकरार लिखा लो पर यह ईश्वर के लिए जल्द बताओ कि वह फहा है और किस दुष्ट ने उस दुख दिया है ? हाय अभी तक उसके ऊपर किसी तरह की तकलीफ नहीं पड़ी थी। न मालूम वह कौन सी सत्यानाशी घड़ी थी जिसमें हम दोनों घर से बाहर निकले थे। उसके मा बाप की क्या दशा होगी? हाय, उनके एक ही यह लड़का है दूसरी कोई औलाद नहीं जिसे देख उनके जी को तसल्ली हो,! इतना कह जसवन्तसिह चुप हो गए और उनके आँखों से आसुओं की बूदें गिरने लगी। लोडियों के बहुत कुछ कहने और समझाने बुझाने पर वे वहा से उठे, स्नान किया और कुछ अन्न मुह में डाल कर, जल पिया, इसके बाद फिर हाथ जोड़ और रो रो कर लौडियों से पूछने लगे- 'परमेश्वर के लिय सच बता दो क्या तुम रनवीरसिह के दुश्मन का जानती हो? अगर जानती हो तो बताने में देरी क्यों करती हो? हाय कही तुम लोग मुझे धोखा तो नहीं दे रही हो । रनवीरसिंह की जुदाई में जसवन्तसिह को हद से ज्यादे दुयो देख लौडियों से रहा न गया. आपुस में राय करके एक लांडी ने जाकर महारानी से उनका सब हाल कहा और जवार पाने की उम्मीद में सामने खड़ी ही रहीं। बहुत देर तक सोचने के याद महारानी ने उस लौडी को हुक्म दिया, ' अच्छा जाओ, जसवन्तसिह को मेरे पास ले आओ, में उसे समझाऊँगी, अप तो पर्दा खुल ही गया और बेहयाई सिर पर सवार हो ही चुकी, तो रनवीरसिंह के दोस्त का सामना करने में ही क्या हर्ज है! हुक्म पाकर लोडी दौडी हुई गई और अपने साथ वालियों से महारानी का हुक्म कहा। वे सब जसवन्तसिह को साथ ले महारानी के पास चली। जिस दालान में पहले सार चेतसिह के साथ जसवन्तसिह बैठाये गये थे उसी के साथ पीछे की तरफ महारानी का खास महल था। लौडियॉ जसवन्तसिह को साथ लिये हुए दूसरी राह से उसके अन्दर गई। इस मकान को जसवन्तसिंह ने बहुत ही अच्छी तरह से सजा हुआ पाया और यहीं पर एक छोटे से कमरे में स्याह गद्दी के ऊपर गावतकिये के सहारे वाई हथेली पर गाल रक्खे वेठी हुई महारानी दिखाई पड़ी। महारानी को देखते ही जसवन्तसिह ने जोर से 'हाय किया और साथ ही वेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ा। छठवां बयान पाठक, जसवन्तसिह का बेहोश हो जाना कोई ताज्जुब की बात न थी बल्कि वाजिब ही था। हाय, जिस शक्ल पर उसका दोस्त आशिक हुआ, जिसकी पत्थर की मूरत ने उसके दिली दोस्त का दिनाग बिगाड़ दिया. जिस सत्यानाशी सूरत ने उसके मित्र रनवीरसिह का घर चौपट कर दिया, वही जानघातक सूरत इस समय फिर उसे अपने सामने नजर आ रही थी! उस पत्थर की मूरत ने जिसमें हाथ पैर हिलाने या चलने फिरने या योलने की ताकत न थी जब इतनी आफत मचाई तो यह मूरततो हाथ पैर हिलाने, चलने फिरने, बोलने और हंसने की ताकत रखती है। वह बेजान थी यह जानदार है, वह स्थिर थी यह चचल है, वह नकल थी यह असल है। जब उसने इतना किया तो यह क्या नहीं कर सकती है? फिर क्यों न जसवन्तसिह की यह दशा हो ! यह सब कुछ तो है ही उस पर से अफसोस की बात यह कि जमाना भी बहुत बुरा है। किसी की बात का कोई विश्वास नहीं, किसी के दिल का कोई ठिकाना नहीं, किसी की दोस्ती का कोई भरोसा नहीं-अथवा है तो क्यों नहीं, लेकिन हुस्न और इश्क का झगड़ाबुरा होता है, खूबसूरती जी का जजाल हो जाती है. और आदमी को शैतान बना देती है। यह वही जसवन्तसिह है जिसे अभी तक हम रनवीरसिह का पक्का और सच्चा दिली दोस्त लिखते चले आये मगर देखा चाहिये कि इन महापुरुष के लिए आगे अब क्या लिखना पड़ता है। देवकीनन्दन खत्री समग्र १०४६