पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३८०

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भूतनाथ पहिले तो कुछ घबडाया मगर उसने तुरन्त ही अपने को सभाला और कमर से खजर निकालकर उस औरत के सामने खड़ा हो गया। वह खजर वही था जो कमलिनी ने उसे दिया था। कम्जा दबाते हीखजर में से बिजली की चमक पैदा हुई जिसके सवव से उस औरत की आँखें बन्द हो गई और वह बावली सी हो गई तथा उस समय तो उसे तनोवदन की सुध न रही जब भूतनाथ ने खजर उसके बदन से छला दिया। भूतनाथ ने बडी होशियारी से उस बेहोश औरत का उसके घोडे पर लादा और आप भी उसी पर सवार हो तेजी के साथ मैदान का रास्ता लिया। थोडी दूर जा कर भूतनाथ ने यहोशी की तेज दवा उसे सुधाई जिसस वह औरत बहुत देर के लिए मुर्दे की सी हो गई। हमको इससे कोई मतलब नहीं कि दे सदार जिनके घोड़ों के टापों की आवाज भूतनाथ के कान में एडी थी कौन थे और उन्होने वहाँ पहुँचकर क्या किया जहां से भूतनाथ उस औरत कॉलेभागा था हम केवल भूतनाथ के साथ चलते है जिसमें उस औरत का और भूतनाथ का हाल मालूम हो । यद्यपि रात अधेरी और रास्ता पथरीला था तथापि भूतनाथ न चलने में कसर न की। थाडी थोड़ी दूर पर घाडा ठोकर खाता था जिससे भूतनाथ को तकलीफ होती थी और वह बड़ी मुश्किल से उस बहोश औरत को सभाले लिए जाता था मगर यह तकलीफ ज्यादे देर के लिए न थी क्योंकि पहर भर के याद आसमान पर कुदरती माहताबी जलने लगी और उसकी (चन्द्रमा की रोशनी ने चारों तरफ टढक और खूबसूरती के साथ उजाला कर दिया। ऐसी अवस्था में भूतनाथ न रुकना उचित न समझा और सवेरा हाने तक तेजी के साथ वरावर चला गया। जिस समय आसमान पर सुवह की सुफेदी फैल रही थी घोडे ने यहाँ तक हिम्मत हार दी कि दस कदम भी चलना उसके लिए कठिन हो गया। लाचार भूतनाथ घाडे स नीचे उतरा और उस औरत को भी उतार लिया। घोडा उसी समय जमीन पर गिर पडा मगर भूतनाथ न उसकी कुछ परवाह न की। कमर स चादर खोल उसने औरत की गठरी चाधी और पीठ पर लाद आगे का सस्ता लिया। पहर भर चल जाने वाद भूतनाथ एक ऐसी पहाडी क नीचे पहुंचा जिसकी ऊँचाई बहुत ज्यादे न थी मगर खुशनुमा और सायेदार दररत पहाडी के ऊपर तथा उसकी तराई में बहुत थे। पहाडी की चाटी पर सलई का एक ऊँचा पड था और उसके ऊपर लम्बी काडी में लगा हुआ एक लाल फरहरा ( ध्वजा) दूर से दिखाई दे रहा था। यह निशान कमलिनी का लगाया हुआ था। भूतनाथ तारा और नानक से मिलने के लिए कमलिनी ने एक यह जगह भी मुकर्रर की थी और निश्चय कर रक्खा था कि जब इन चारों में किसी को किसी से मिलने की आवश्यकता पड़ तो वह इसी जगह आये और यदि किसी से मुलाकात न हो तो इस झडे को झुका दे और उन चारों में से जो कोई इस झड को झुका हुआ देखे तुरत इस पहाडी के नीचे आय और नियत स्थान पर अपने साथी का दूढे । यह फरहरा बहुत दूर से दिखाई देता था और यह पहाडी रोहतासगढ ओर गयाजी के बीच में पड़ती थी। उस औरत को पीठ पर लादे हुए भूतनाथ यहाडी के ऊपर चढने लगा। लगभग दो सौ कदम जाने के बाद रास्ता छाड कर दाहिनी तरफ घूमा जिधर छोटे छोटे जगली पेडों की गुजान झाडी दूर तक चली गई थी। उस झाडी में आदमी वरवी छिप सकता था अर्थात उस झाडी के पड़ यद्यपि छोटे थे परन्तु आदमी की ऊंचाई से उन पेड़ों की ऊँचाई कुछ ज्यादे थी। भूतनाथ दोनों हाथ से पडों को हटाता हुआ कुछ दूर तक चला गया। आखिर उसे एक गुफा मिली जिसका मुह जगली लताआ न अच्छी तरह ढोंक रक्खा था। भूतनाथ उस गुफा के अन्दर चला गया और अपना वोझ अर्थात उस औरत को गुफा के अन्दर छोड वाहर निकल आया। इसके बाद पहाडी की चोटी पर चढ़ गया और सलई क पेड पर चढ कर लाल फरहरे ( झण्डे ) को झुकाने का इरादा किया परन्तु उसी समय सलई के पेड़ पर चढी हुई कमलिनी उत्त दिखाई पड़ी जो फरहरा झुकाने का उद्योग कर रही थी। इस समय भी कमलिनी उसी राक्षसी के भेष में थी जैसा कि ऊपर के बयानों में लिख आए है। भूतनाथ ने कमलिनी को पहिचाना और उसने भी भूतनाथ को देखा। कमलिनी पेड के नीच उतर आई और बोली - कम-खूब पहुंचे मैं तुमसे मिला चाहती थी इसी लिए झण्डा झुकाने का उद्योग कर रही थी। भूत-मै खुद तुमस मिला चाहता था और इसी लिए यहा तक आया हू यदि इस समय तुम न मिलती तो मै इस पेड पर चढ़ कर फरहरा झुकाता। कम-कहा क्या बात है और कौन सी जरूरत आ पड़ी? भूत-पहिले तुम कहो कि मुझस मिलने की क्या आवश्यकता थी। कम-नहीं नहीं पहिले तुम्हारा हाल सुन लूगी तब कुछ कहूँगी क्योंकि तुम्हारे चेहरे पर घबराहट और उदासी हद से ज्यादा पाई जाती है। - देवकीनन्दन खत्री समग्र