पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३८३

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? हा गया कि अब किसी तरह जान नहीं बचती क्योंकि इसी तरह का खजर भूतनाथ के हाथ में वह देख चुकी थी और उसके प्रबल प्रताप का नमूना उसे मालूम हो चुका था साथ ही उसे इस बात का भी विश्वास हो गया कि राक्षसी (कमलिनी) जिभन उसे भूतनाथ के हाथ से छुडाया सच्ची और उसकी यैरखाह है। कमलिनी ने तारा को फिर इशारा किया जिसे मनारमान नहीं जाना पर तारा ने वह खजर मनोरमा के बदन से लगा दिया और वह बात की बात में बेहोश होकर जमीन पर गिर गई। झाडी में छिपा हुआ भूतनाथ भी निकल आया और कमलिनी स बोला- भूत जो हो मगर मरा काम कुछ भी न हुआ। कम इसमें काई शक नहीं कि तुम बडे बुद्धिमान हा परन्तु कभी कभी तुम्हारी अक्ल भी हवा खाने चली जाती है। तुम इस बात का नहीं जानते कि तुम्हारा काम पूरा हो गया है। यकायक तारा के पहुंच जाने से मालूम हुआ कि तुम्हारी किस्मत तज हे नहीं तो मुझे बहुत कुछ बखेडा करना पडता । भूत-सा क्या मुझे साफ समझा दाला जी ठिकाने हो। कम-भरे पास बैठ जाओ मैं अच्छी तरह समझा देती हूँ। (तारा की तरफ देख कर) कहो तुम्हारा आना क्योकर हुआ तारा-मुझ एक एसा काम आ पड़ा कि विना तुमस मिल कठिनता दूर होने की आशा न रही लाचार झण्डी टेढी करके मिलने की उम्मीद में यहाँ आई थी। कम-अच्छा हुआ कि तुम आई इस समय तुम्हारे आने से बडा ही काम चला अच्छा बैठ जाआ और जो कुछ में कहती हू उसे सुनो। इसके बाद मलिनी तारा और भूतनाथ में दर तक बातचीत होती रही जिसे यहा पर लिखना हम मुनासिब नहीं समझत क्योंकि इन लोगों ने जो कुछ करना विचारा है वह आग के बयान में स्वय खुल जायेगा। जब बातचीत से छुट्टी मिली तो मनारमा का उठा तीनों आदमी पहाडी के नीचे उतरे मनारमा एक पेड के साथ याध दी गई और इसके बाद कमलिनी भी कोदियों की तरह एक पड़ के साथ बाध दी गई। इस काम से छुट्टी पाकर तारा और भूतनाथ वहा से अलग हो गए और किसी झाडी में छिप कर दूर से इन दानों का देखते रहे। योडी देर के बाद मनारमा होश में आई और अपने को वेवश पाकर चारों तरफ देखने लगी। पास ही में पेड से बंधी हुई कमलिनी पर भी उसकी निगाह पड़ी और वह अफसोस के साथ कमलिनी की तरफ देख कर बोली- मनो-वशक नुम सच्ची हो मरी भूल थी जो तुम पर शक करती थीं। कम-खैर इस समय तो तुम्हारे ही सवव से मुझे भी कष्ट भागना पड़ा। मनो-इसमें कोई सन्दह नहीं। कम-तुम्हारा छूटना तो मुश्किल है मगर मै किसी न किसी तरह घोखा देकर छूट ही जाऊँगी और तब कमलिनी से समझूगी अब बिना उसकी जान लिए चैन कहाँ? मनो-तुम्हारी भी तो वह दुश्मन है फिर तुम्हें क्योंकर छोड़ देगी? कम मेरी उसकी दुश्मनी भीतर ही भीतर की है इसके अतिरिक्त एक और सरब ऐसा है कि जिससे मैं अवश्य छूट जाऊगी तब तुम्हारे छुडाने का उद्योग करूंगी। कम-तुम्हारा छूटना तो मुश्किल है मगर मै किसी न किसी तरह धोखा देकर छूट ही जाऊँगी और तब कमलिनी से समझूगी अब चिना उसकी जान लिए चैन कहाँ? मनो तुम्हारी भी तो वह दुश्मन है फिर तुम्हें क्योंकर छोड देगी? कम-मेरी उसकी दुश्मनी भीतर ही भीतर की है इसके अतिरिक्त एक और सवय ऐसा है कि जिससे मैं अवश्य छूट जाऊगी तब तुम्हारे छुडाने का उद्योग करूँगी। मनो-वह कौन सा सक्य है ? कम-सो मै अभी नहीं कह सकती तुम्हें स्वय मालूम हो जायगा। (चारो तरफ देख कर ) न मालूम वह कम्बख्त कहाँ गई। मनो-क्या तुम्हें भी नहीं मालूम ? कम-नहीं मुझे जब होश आया मैंने अपने को इसी तरह वेवस पाया। मनो-खैर कही भी हो आदेहीगी हाँ तुम्हें यदि अपने छूटने की उम्मीद है तो कब तक? कम-उसके आने पर दो चार बातें करने से ही मुझे छुट्टी मिल जायगी और मै तुम्हें भी अवश्य छुडाऊगी हाँ अकली होन के कारण विलम्ब जो कुछ हो । यदि तुम्हारा कोई मददगार हो तो बताओ ताकि छुट्टी मिलने पर में तुम्हारे हाल की उसे खबर दूं। मनो-(कुछ सोच कर) यदि कष्ट उठा कर तुम मेरे घर तक जाओ और मेरी सखी को मेरा हाल कह सको तो वह सहज ही में मुझे छुड़ा लेगी। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ६ ३५९ .