पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३९०

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R कई दिन तक उसी कोठरी में कैद रही और इस बीच में जो कुछ रज और तकलीफ उठानी पड़ी उसका कहना व्यर्थ है। आखिर एक दिन भोजन में मुझ वेहाशी की दवा दी गई और बेहोश होने के बाद जब में होश में आई तो अपने को आपके कब्जे में पाया । अब न मालूम कुँअर इन्दजीतसिह आनन्दसिह किशोरी और उनके ऐयार लोगों पर क्या मुसीवत आई और वे लोग किस अवस्था में पड़े हुए है। यहा तक कह कर कमला चुप हो गई मगर उसकी आखों से आसू की बूदें वरावर जारी थी। कमलिनी भी बड़े गौर और अफसोस के साथ उसकी बातें सुनती जाती थी और जब वह चुप हो गई तो वाली - कम-कमला सत्र कर घबडा मत देख में उन लोगों को कैसा छकाती है। उ7 लोगों की क्या मजाल जो मेरे हाथ से बचकर निकल जायें। तिलिस्मी मकान के अदर जय कुअर इन्द्रजीतसिह वगैरह हसते हसते कूद गये थे तो उन लोगों - के पहिले मैंने अपने कई आदमी उस मकान के अन्दर कुदाए थे जिसका हाल थोड़ी दर हुई मैं तुमसे कह चुकी हूँ। मन उन आदमियों का सबब दुश्मनों के हाथ में नहीं फसाया कुछ समझ बूझ के ही ऐसा किया। वे लोग साधारण मनुष्वन थे आशा है कि थोडे दिन में तू सुन लेगी कि उन लोगों ने क्या कार्रवाई की। कमला-आज आपके मिलने से ओर बहुत सी बाते सुनकर मेरा जी ठिकाने हुआ। आप सरीखा मददगार पाकर में भी अपन जी का हौसला निकाला चाहती है और कम-नहीं नहीं इस समय तू और कुछ मत सोच और सीधे राहतासगढ चली जा। तरे वहाँ जाने से दो काम निकलेंगे एक तो तेरी जुवानी सब हाल सुन कर राजा वीरेन्दसिह को बहुत ढाढस होगी दूसरे तू इस यात से हाशियार रहियों और सभों को भी होशियार कर दीजियो कि वह तिलिस्मी दारोगा अर्थात बूदा साधू कहीं धोखा देकर निकल न जाय । इसमें कोई शक नहीं कि मायारानी ने उसे छुड़ाने के लिए कई आदमी रोहतासगढ भेजे होंगे। कमला-बहुत अच्छा भै रोहतासगढ जाती है और उस युडदे कम्यख्त से होशियार रहूगी मगर एक भेद बहुत दिनों से मेरे दिल में खटक रहा है यदि आप चाहे तो मेरे दिल से वह खुटका निकाल सकती है। कम-वह क्या है। कमला-( भूतनाथ की तरफ इशारा करके ) यह कौन है ? इसका असल भेद मुझको बता दीजिये। कम-(हस कर ) इसमें सन्देह नहीं कि भूतनाथ के बारे में तरह तरह की बातें तू सोचती होगी परतुलाचार हूँ कि इस समय इनका असल भेद तुझसे नहीं कह सकती थोडे ही दिन में इनका हाल तुझे बल्कि सभों का मालूम हा जायगा। हाँ इतना अवश्य कहूगी कि तुझे अपने चाचा शरसिंह की तरह इनस डरन की काई जरूरत नहीं य तुझे किसी तरह की तकलीफदंग गल्कि जहा तक हो सकेगा मदद करेंगे। कमलिनी से अपने सवाल का पूरा पूरा जमाव न पाकर कमला चुप हो रही और कमलिनी की आज्ञानुसार उसको उसी समय राहतासगढ चले जाना पड़ा। छठवां बयान दूसरे दिन कुछ रात बीता कमलिनी फिर मोरमा के मकान पर पायी। वाग के फाटक पर उसी दयान को टहलते पाया जिससे कल बातचीत कर चुकी थी। इस समय थाग का फाटक खुला हुआ था और उस दर्वान के अतिरिक्त ओर भी कई सिपाही वहा मौजूद था दो कलिली को दयत ही खुशी से आग बदा और योला आइय आइये में कब स राह देख रहा हूँ। नागरजी को आय दो घण्ट से ज्याद 17 गये और वे आपस मिलों के लिए यताब हो रही है। दान के साथ ही साथ कमलिपी वाग को अन्दर गई और उस आलीशान मकान के सहन में पहुधी जो इस बाग के चीचोबीच में बना हुआ था। इस मका के कमर्रा दालाना कोठरियों तरखानों और पेचीले रास्तों का यदि यहाँ पूरा पूरा वयान किया जाय ता पाठकों का बहुत समय नष्ट होगा क्योंकि इस हिकमती मकान के हर एक दर्जे और हर एक हिस्से कारीगरी और मतलव के साथ बनाये गये है। यदि हमारे पाठकों का तीन चार बार इस मकान के अन्दर आने और रात भर रहन का मौका मिल जायगा तो उन्हें यहाँ का बहुत भद मालूम हो जायगा । कमलिनी ने नागर को सहन में टहलते हुए पाया। वह सिर ीचा किए किसी सोच में डूबी हुई टहल रही थी कमलिनीक पर की आहट पाकर चौकी और चाली- नागर-क्या मेरी सखी मनारमा का सन्देशा लेकर तुम ही आई हो? कम-हाँ। नागर-तुम कौन और कहाँ की रहने वाली हो ? मन तुम्हें सिवाय आज से पहिले कभी नहीं देखा । कम-हाँ ठीक है परन्तु में अपना परिचय किसी तरह नहीं दे सकती। नागर-यदि एसा है तो में तुम्हारी बातों पर क्योंकर विश्वास करूगी? देवकीनन्दन खत्री समग्र