पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३९४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

8 whe चन्द्रकान्ता सन्तति सातवां भाग पहिला बयान नागर थोड़ी दूर पश्चिम जा कर घूमी और उस सड़क पर चलने लगी जा रोहतासगढ़ की तरफ गई थी। पाठक स्वयम रामझ सकत है कि नागर का दिल कितना मजबूत और कठोर था। उन दिनों जा रास्ता काशी से राहतासगढ का जाता था वह बहुत ही भयानक और खतरनाक था। कहीं कहीं तो बिल्कुल ही मेदान में जाना पड़ता था और कहीं गहन वन में होकर दरिन्द जानवरों की दिल दहलाने वाली आवाजें सुनते हुए सफर करना पड़ता था। इसके अतिरिक्त उस रास्ते में लुटेरों और डाकुओं का डर तो हरदम बना ही रहता था। मार इन सब बातों पर जरा भी ध्यान न देकर नागर न अकेल ही सफर करना पसन्द किया इसी से कहना पड़ता है कि वह बहुत ही दिलावर निडर और सगदिल औरत थी। शायद उसे अपनी एयारी का मरासा या घमण्ड होक्र्याकि ऐयार लोग यमराज से भी नहीं डरते और जिस एयार का दिल इतना मजबूत न ही उसे ऐयार कहना भी न चाहिए । नागर एक नौजवान मर्द की सूरत बना कर तज और मजबूत घोड़े पर सवार तेजी के साथ रोहतासगढ़ की तरफ जा रही थी। उसकी कमर में ऐयारी का बटुआ खजर कटार और एक पथरकला भी था। दापहर होते हात उसने लगभग पचीस कोस के रास्ता तय किया और उसके बाद एक ऐसे गहन वन में पहुंची जिसके अन्दर सूर्य की रोशनी बहुत कम पहुंचती थी कवल एक पगडी सड़क थी जिस पर बहुत सम्हल कर सवारों को सफर करना पड़ता था क्योंकि उसके दोनों तरफ कटील दरख्त और झाड़िया थीं। इस जगल के बाहर एक चौड़ी सड़क भी थी जिस पर गाडी और छकड़े वाले जाते थे मगर घुमाव और धक्कर पड़न के कारण उस रास्त को छोड़ कर घुड़सवार और पैदल लाग अक्सर इसी जगल में होकर जाया करत थे जिसमें इस समय नागर जा रही है क्योंकि इधर से कई कोस का बचाव पडता था। यकायक नागर का घोड़ा भड़का और रूक कर अपो दोनों कान आगे की तरफ करके देखने लगा। नागर शहसवारी का फन बखूबी जानती और अच्छी तरह समझती थी, इसलिए घाड़े के भड़कन और स्कन स उसे किसी तरह का रज न हुआ बल्कि वह चौकन्नी हो गई और बड़े गोर से चारों तरफ देखने लगी। अचानक सामने की तरफ पगडी के बीचोंबीच में बैठे हुए एक शेर पर उसकी निगाह पड़ी जिसका पिछला भाग नागर की तरफ था अर्थात् मुह उस तरफ था जिधर नागर जा रही थी। नागर बडे गौर से शेर को देखने और सोचने लगी कि अब क्या करना चाहिए। अभी उन्मने कोई राय पक्की नहीं की थी कि दाहिनी वगल की झाड़ी में से एक आदमी निकलकर बढा और फुर्ती के साथ घोड़े के पास जा पहुंचा जिस दखत ही वह चौक पड़ी और घबराहट के मारे बोल उठी "ओप मुझे बड़ा भारी धोखा दिया गया । साथ की इसके वह अपना हाथ पथरकले पर ले गई मगर इस आदमी ने इसे कुछ भी करने न दिया। उसने नागर का हाथ पकड़कर अपनी तरफ खींचा और एक झटका ऐसा दिया कि वह घोड़े के नीचे आरही। वह आदमी तुरत उसकी छाती पर सवार हो गया और उसके दोनों हाथ कब्जे में कर लिये। यद्यपि नागर को विश्वारा हा गया कि अब उसकी जाा किसी तरह नहीं बच सकती तो भी उसने बड़ी दिलेरी से अपने दुश्मन की तरफ देखा और कहा- नागर-वेशक उस हरामजादी ने मुझ पूरा धाखा दिया, मगर भूतनाथ तुम मुझे मार कर जरूर पछताओगे । वह कागज जिसके मिलने की उम्मीद में तुम मुझे मार रहे हो तुम्हारे हाथ कभी न लगेगा क्योंकि मैं उसे अपने साथ नहीं लाई हूँ, यदि तुम्हें विश्वास न हो तो मेरी तलाशी ले लो, और बिना वह कागज पाए मेरे या मनोरमा के साथ बुराई करना तुम्हारे हक में ठीक नहीं है इसे तुम अच्छी तरह जानते हो। भूतनाथ-अब मैं तुझे किसी तरह छोड़ नहीं सकता। मुझे विश्यास है कि ये कागजात जिनके सवय से मैं तुझे ऐसे कमीनों की तादारी करने पर मजबूर हो रहा हूँ इस समय जरूर तेरे पास है तथा इसमें भी कोई सन्देह नहीं कि

  • पथरकला उस छोटी सी बन्दूक को कहत है जिसके घोड़े में चकमक लगा होता है जो रजक पर गिर कर आग

पैदा करता है। देवकीनन्दन खत्री समग्र ३७४