पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३९५

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कमलिनी ने अपना वादा पूरा किया और कागजों के सहित तुझे मेरे हाथ फसाया। अब तू मुझे धोखा नही दे सकती और नतलाशी लेने की नीयत से मैं तुझे कब्जे से छोड ही सकता हूँ तेरा जमीन से उठना मेरे लिए काल हो जायगा क्योंकि फिर तू हाथ नहीं आवेगी। नागर-(चौक कर और ताज्जुब से) है तो क्या वह कम्वख्त कमलिनी थी जिसने मुझे धोखा दिया अफसास शिकार घर में आफर निकल गया। खैर जो तेरेजी में आवे कर यदि भरे मारने ही में तेरी भलाई हो तो मार मगर मेरी एक बात सुन ल। भूत-अच्छा कह क्या कहती है ? थोड़ी देर तक ठहर जान में मेरा कोई भी हर्ज नहीं। नागर-इसमें तो कोई शक नहीं कि अपने कागजात जिसे तेरा जीवन चरित्र कहना चाहिए लेन के लिए ही तू मुझ मारना चाहता है। भूत-बेशक एसा ही है यदि यह मुद्रा मेरे हाथ का लिया हुआ न होता तो मुझे उसकी परवाह न होती। नागर-हा ठीक है. परन्तु इसमें भी कोई सन्देह नहीं कि मार कर तू वे कागजात न पायेगा। खैर जब में इस दुनिया स जाती ही हू तो क्या जरूरत है कि तुझे भी बर्वाद करती जाऊ? मैं तेरी लिखी चीजें खुशी से तरे हवाले करती हू. मरा दाहिना हाथ छोड मै तुझे बता दू कि मुझे मारने के बाद वे कागजात तुझे कहा से मिलेंगे। भूतनाथ इतना डरपोक और कमजार भी न था कि नागर का केवल दाहिना हाय जिसच्चे हर्ब की किस्म से एक काटा भी न था छाडने से डर जाय दूसरे उसने यह भी सोचा कि जब यह स्वय ही कागजात देने को तैयार है तो क्या न ले लिया जाय कौन ठिकाना इसे मारने के बाद कागजात हाथ न लगें। थोड़ी देर तक कुछ सोच विचार कर भूतनाथ ने नागर का दाहिना हाथ छोड दिया जिसके साथ ही उसने फुर्ती से वह हाथ भूतनाथ क माल पर दया कर फेरा। भूतनाथ को एसा मालूम हुआ कि नागर ने एक सुई उसके गाल में चुभो दी मगर वास्तव में एसान था। नागर की उगली में एक अगूठी थी जिस पर नगीने की जगह स्याह रग का कोई पत्थर जडा हुआ था वही भूतनाथ के गाल में गड़ा जिससे एक लकीर सी पड गई और जरा खून भी दिखाई देने लगा। पर मालूम होता है कि वह नोकीला स्याह पत्थर जो अगूठी में जडा हुआ था किसी प्रकार का जहर हलाहल था जो खून के साथ मिलते ही अपना काम कर गया क्योंकि उसने भूतनाथ को बात करने की मोहलत न दी। वह एक दम चक्कर खा कर जमीन पर गिर पड़ा और नागर उसके कब्ज से छूटकर अलग हो गई। नागर ने घोडे की बागडार जा चारजाम से बंधी हुई थी खोली और उसी से भूतनाथ के हाथ पैर बाधने के बाद एक पेड के साथ कस दिया इसके बाद उसने अपने ऐयारी के बटुए में से एक शीशी निकाली जिसमें किसी प्रकार का तेल था। उसन थोडा तेल उसमें से भूतनाथ के गाल में उसी जगह जहा लकीर पड़ी हुई थी मला। देखते ही देखते उस जगह एक बड़ा फफोला पड गया। नागर ने खजर की नोक से उस फफोले में छेद कर दिया जिससे उसके अन्दर का विल्कुल पानी निकल गया और भूतनाथ होश में आ गया। नागर--क्यों थे कम्बख्त अपने किये की सजा पा चुका या कुछ कसर है ? तून देखा मेर पास कैसी अद्भुत चीज है। अगर हाथी भी हो तो इस जहर को बर्दाश्त न कर सके और मर जाय तेरी क्या हकीकत है। भूतनाथ-बेशक ऐसा ही है और अब मुझे निश्चय हो गया कि मेरी किस्मत में जरा भी सुख भोगना बदा नहीं है। नागर-साथ ही इसके तुझे यह भी मालूम हो गया कि इस जहर को मैं सहज ही में उतार भी सकती हूँ। इसमें सन्देह नहीं कि तू मर चुका था मगर मैंने इसलिए तुझे जिला दिया कि अपने लिखे हुए कागजों का हाल दुनिया में फैला हुआ तू स्वयम देख और सुन ले क्योंकि उससे बढ कर कोई दुख तेरे लिए नहीं है पर यह भी देख ले कि उस कम्यस्त कमलिनी के साथ मैने क्या किया जिसने मुझे धोखे में डाला था। इस समय वह मेरे कब्जे में है क्योंकि कल वह मेरे घर में जरूर आकर टिकेगी अहा अब मै समझ गई कि रात वाले अद्भुत मामले की जड़ भी वही है। जरूर ही इस मुर्दे शेर को रास्ते में तूने ही बैठाया होगा ! भूतनाथ-(आखों में आसू भर कर )अवकी दफे मुझे माफ करा जो कुछ हुक्म दो मैं करने को नागर-मैं अभी कह चुकी हूँ कि तुझे मारूगी नहीं फिर इतना क्यों डरता है ? भूतनाथ-नहीं नहीं मैं वैसी जिन्दगी नहीं चाहता जैसी तुम देस हो हॉयदि इस बात का वादा करा कि वे कागजात किसी दूसरे को न दोगी ता में वे सब काम करने को तैयार हूँ जिनसे पहिले इनकार करता था। नागर-मैं ऐसा कर सकती हूँ क्योंकि आखिर तुझे जिन्दा छोडूंगी ही और यदि मेरे काम से तू जी न चुरावेगा ता में तेरे कागजात भी बड़ी हिफाजत से रक्यूँगी। हाँ खूब याद आया-उस चीठी को तो जरा पढना चाहिए जो उस कम्बख्त कमलिनी ने यह कह कर दी थी कि मुलाकात होने पर मनोरमा को दे देना। तैयार हूँ। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ७ ३७५