पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३९७

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Cerit चदौलत हम लाग टुख भाग रह है अस्तु इन लोगों में से किसी को फसा कर अपना काम निकालना चाहिए। तजसिह के दखत ही देखते व दोनों आदमी वहाँ पहुँच कर उस शिवालय के अन्दर घुस गय और लगभग दाघडी के चीत जान पर भी बाहर न निकल। तेजसिह ने छिप कर राह दयना उचित न जाना। वह झाड़ी मे से निकल कर शिवालय में आय मगर झाक कर देखा ता शिवालय के अन्दर किसी आदमी की आहट न मिली। ताज्जुब करते हुए शिवलिग के पास तक चले गये मगर किसी आदमी की सूरत दिखाई न पड़ी। तेजसिह तिलिस्मी कारखान और अद्भुत मकानों तथा तहखानों की हालत से बहुत कुछ वाकिफ हो चुके थे इसलिए समझ गए कि इस शिवालय के अन्दर कोई गुप्त राह सुरग या तहखाना अवश्य है और इसी सवय से ये दोनों आदमी गायब हो गये है। शिवालय के सामने की तरफ देल का एक पड था। उसी के नीचे तेजसिह यह निश्चय करके बैठ गए कि जब तक । ये लोग अथवा उनमें से कोई बाहर न आयेगा तब तक यहा से न टलेंगे। आखिर घण्टे भर बाद उन्हीं में से एक आदमी शिवालय के अन्दर से बाहर आता हुआ दिखाई पड़ा। उसे देखते ही तेजसिह उठ खड़े हुए निगाह मिलत ही झुक कर सलाम किया और तब कहा ईश्वर आपका भला कर मर भाई की जान बचाइए आदमी-तू कौन है और तेरा भाई कहाँ है? तेज-मे जमींदार हूँ, { हाथ का इशारा करके) उस झाड़ी के दूसरी ओर मेरा माई है बेचारे को एक युढिगा व्यर्थ मार रही है। आप पुजारीजी है धर्मात्मा है किसी तरह मेरे भाई को बचाइए। इसीलिए मैं यहाँ आया हूँ। ( गिडगिड़ा कर) बस अब देर न कीजिए ईश्वर आपका भला करे । तजसिह की बातें सुन कर उस आदमी को बडा ही ताज्जुब हुआ और वेशक ताज्जुब की बात भी थी क्योंकि तेजसिह बदन के मजबूत और निराग मालूम होते थे, देखने वाला कह सकता था कि बेशक इसका भाई भी वैसा ही होगा फिर ऐस दो आदमियों के मुकाबले में एक बूढी ओरत का जर्बदस्त पडना ताज्जुब नहीं तो क्या है । आखिर बहुत सोच विचार कर उस आदमी ने तेजसिह से कहा 'खैर चलो देखें वह बुढिया फैसी पहलवान है। उस आदमी को साथ लिए हुए तेजसिह शिवालय से कुछ दूर चले गये और एक गुजान झाडी के पास पहुच कर इधर उधर घूमने लगे। आदमी-तुम्हारा भाई कहाँ है? तेजसिह-उसी का तो ढूँढ रहा हूँ। आदमी--क्या तुम्हें मालूम नहीं कि उसे किस जगह छोड गए थे? तेजसिह-राम राम कैसे बेवकूफ से पाला पड़ा है | अरे कम्बख्त जर जगह याद नहीं तो यहाँ तक कैसे आए आदमी-पाजी कहीं का । हम तो तेरी मदद को आए और तू हमें ही कम्बख्त कहता है ।" तेज-बेशक तू कम्बख्त बल्कि कमीना है, तू मेरी मदद क्या करेगा जब तू अपने ही को नहीं बचा सकता? इतना सुनते ही वह आदमी चौकन्ना हो गया और बड़े गौर से तेजसिह की तरफ देखन लगा! जब उसे निश्चय हो गया कि यह कोई ऐयार है तब उसने खजर निकाल कर तेजसिह पर वार किया। तेजसिह ने एक बार बचा कर उसकी कलाई पकड़ ली और एक झटका ऐसा दिया कि खजर उसके हाथ से छूट कर दूर जा गिरा। वह और कुछ चोट करने की फिक्र ही में था कि तेजसिह ने उसकी गर्दन में हाथ डाल दिया और बात की बात में जमीन पर दे मारा विह घबडा कर चिल्लाने लगा मगर इससे भी कुछ काम न चला क्योंकि उसके नाक में बेहोशी की दवा जर्वदस्ती तूंस दी गई और एक छीक मार कर वह बेहोश हो गया। उस बेहोश आदमी को उठाकर तजसिह एक ऐसी झाडी में घुस गए जहाँ से आते जाते मुसाफिरों को वे बखुची देख सकते मगर उन पर किसी की निगाहन पड़ती। उस बेहोश आदमी को जमीन पर लेटा देने के बाद तेजसिह चारों तरफ देखने लगे और किसी को न पाया ता धीर से योल अफसोस इस समय मैं अकेला हूँ यदि मेरा कोई साथी होता तो इसे रोहतासगढ़ मिजवा कर बेखौफ हो जाता और बेफिक्री के साथ काम करता यैर कोई चिन्ता नहीं अब किसी तरह काम तो निकालना ही पड़ेगा। तेजसिह न ऐयारी का बटुआ खोला और आईना निकाल कर सामने रक्खा अपनी सूरत ठीक वैसी ही बनाई जैसा कि वह आदमी था इसके बाद अपने कपड़े उतार कर रख दिए और उसके बदन स कपड़े उतार कर पहिन लने के बाद उसकी सूरत बदलने लगे। किसी तेज दवा से उसके चेहरे पर कई जख्म के दाग ऐसे बनाए कि सिवाय तेजसिह के दूसरा कोई छुडा ही नहीं सकता था और मालूम ऐसा होता था कि ये जख्म के दाम कई वर्षों से उसके चेहरे पर मौजूद है। इसके बाद उसका तमाम बदन एक स्याह मसाले से रग दिया। इसमें यह गुण था कि जिस जगह लगाया जाय वह चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ७ ३७७