पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३९९

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Tara साथी विहारीसिह पागल हो गया इसमें कोई सन्देह नहीं उसने सोचा कि अब इससे कुछ कहना सुनना उचित नहीं इसे इस समय किसी तरह फुसला कर घर ले चलना चाहिए । हरनाम-अच्छा यार अब देर हा गई चलो घर चले। विहारी-क्या हम औरत है कि घर चलें | चलो जगल में चलें शेर का शिकार खेलें रडी का नाच देखे तुम्हारा गाना सुनें और सब के अन्त में तुम्हारे सिरहान बैठ कर रोएँ। ही ही ही ही हरनाम-खैर जगल ही में चलो। विहारी-हम क्या साधू वैरागी या उदासी है कि जगल में जाय 1बस इसी जगह रहेंगे भग पीएगे चैट करेंगे यह भी जगल ही है। तुम्हार जैसे गदहों का शिकार करेंगे गदह नी कैसे कि बस अन्धे (इधर उधर दख कर) सात पाँच बारह पाँच तीन तीन घण्टे बीत गए अभी तक भग लेकर नहीं आया पूरा झूठा निकला मगर मुझसे बढ के नहीं 1 बदमाश है लुच्चा है अब उसकी राह या सडक नहीं देखूगा चिलो भाई साहब चलें घर ही की तरफ मुंह करना उत्तम हे मगर मेरा हाथ पकड लो मुझे कुछ सूझता नहीं। हरनामसिह ने गनीमत समझा और बिहारीसिह का हाथ पकड घर की तरफ अर्थात् मायारानी के महल की तरफ ले चला। मगर वाह रे तेजसिह पागल बन के क्या काम निकाला है । अब ये चाहे दो सौ दफे चूकें मगर किसी की मजाल नहीं कि शक करे । बिहारीसिह को मायारानी बहुत चाहती थी क्योंकि इसकी ऐयारो खूब चढी बढी थी इसलिए हरनामसिह उस एसो अवस्था में छाड कर अकेला जा भी नहीं सकता था। मजा तो उस समय होगा जप नकली बिहारीसिह मायारानी के सामने होंगे ओर भूत की सूरत बन असली बिहारीसिह भी पहुंचेंगे। विहारीसिह को साथ लिए हुए हरनागसिह जमानिया *की तरफ रवाना हुआ। मायारानी वास्तव म जमानिया की रानी थी इसके बाप दाद भी इस जगह हुकूमत कर गए थे। जमानिया के सामने गगा के किनारे से कुछ दूर हट कर एक बहुत ही खुशनुमा और लम्बा चौड़ा नाग था जिस वहा वाल खास बाग के नाम से पुकारते थे। इस बात में राजा अथवा राज्य कर्मचारियों के सिवाय कोई दूसरा आदमी जाने नहीं पाता था। इस बाग के बार में तरह तरह की गप्पें लोग उडाया करते थे मगर असल भेद यहाँ का किसी को मालूम न था । इस बाग के गुप्त भेदों को राजखानदान ओर दीवान तथा एयारों क सिवाय कोई गैर आदमी नहीं जानता था और न कोई जानने की कोशिश कर सकता था यदि कोइ गैर आदमी इस काम मे पाया जाता तो तुरन्त मार डाला जाता था और यह कायदा बहुत पुराने जमान से चला आता था। जमानिया में जिस छोटे किले के अन्दर मायारानी रहती थी उसमें से गगा के नीचे एक सुरग भी इस बाग तक गई थी और इसी राह से मायारानी वहाँ आती जाती थी इस सबब से मायारानी का इस बार में आना या यहाँ से जाना खास आदमिया के सिवाय किसी गैर को न मालूम होता था। किले और इस बाग का खुलासा हाल पाठकों को स्वय मालूम हो जायगा इस जगह-विशेष लिखने की कोई आवश्यकता नहीं हाँ इस जगह इतना लिख देना मुनासिब मालूम होता है कि रामभोली के आशिक नानक तथा कमला ने इसी बाग में मायारानी का दरबार देखा था। जमानिया पहुँचने तक बिहारीसिह ने अपने पागलपन से हरनामसिह को बहुत ही तग किया और साबित कर दिया कि पढ़ा लिखा आदमी किस ढग का पागल होता है। यदि मायारानी का डर न होता तो हरनामसिह अपने साथी को दशक छोड़ देता और हजार खराबी के साथ घर ले जाने की तकलीफ न उठाता । कई दिन के बाद बिहारीसिह को साथ लिए हुए हरनामसिह जमानिया के किले में पहुंच गया। उस समय पहर भर रात जा चुकी थी। किल के अन्दर पहुंचने पर मालूम हुआ कि इस समय मायारानी वाग में है लाचार बिहारीसिह को साथ लिए हुए हरनामसिह की उस बाग में जाना पड़ा और इसलिए विहारीसिह ( तेजसिह ) ने किले और सुरग का रास्ता भी बखूबी देख लिया। सुरग के अन्दर दस पन्द्रह कदम जाने के बाद विहारीसिह ने हरनामसिह से कहा- विहारी-सुनो जी इस सुरंग के अन्दर सैकड़ों दर्फ हम आ चुके और आज भी तुम्हारे मुलाहिजे से चले आए मगर आज के याद फिर कभी यहाँ लाओगे तो में तुम्हें कच्या ही खा जाऊँगा और सुरग को भी बर्बाद कर दूंगा अच्छा यह बताओ कि मुझे लिए कहाँ जात हो? 'जमानिया-इसे लोग जमनिया भी कहते हैं। काशी के पूरव गगा के दाहिन किनार पर आबाद है। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ७