पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भूमिका 1 1 श्री देवकीनंदन खत्री हिंदी के क्रांतिकारी लेखक हैं । क्रांतिकारी का अर्थ सामाजिक क्रांति नहीं बल्कि साहित्यिक क्रांति से है.। इनके उपन्यासों ने साहित्य की सृष्टि में तहलका मचा दिया । सारी विधाओं के चूल हिल गये। स्थापितों ने चौंक कर देखा 'अरे यह क्या हो गया ? कैसा तूफान आ गया? प्रत्येक क्रांति के पीछे क्रोध, प्रेम, आकर्षण और आश्चर्य मिले रहते हैं। खत्री जी के उपन्यासों की क्रांति के पीछे भी ऐसा ही होना चाहिए। किंतु आश्चर्य है कि खत्री जी के आसपास क्रोधविल्कुल नहीं है। कहीं एकाध झटका था भी तो वह शीघ्र ही समाप्त हो गया । और क्रांति के इस बुनियादी आधार के बिना भी हम उन्हें क्रान्तिकारी लेखक कहकर क्रोध ही तो जगाना चाहते हैं । खत्री जी की रचनाओं में क्रोध के अवसर बहुत हैं। इसलिए कि उनमें द्वन्द्र ही तो है। किंतु वे क्रोध को किंचित् स्थानों पर व्यक्त करते हैं। तलवारें चलती हैं। बर्खे चमकते हैं। घायल होते हैं । किंतु मौतें कम से कम होती हैं । जीवन संकटों से भरा है । फंसना, घिरना, पकड़े जाना, कैद की जिंदगी बिताना आम हैं । शायद कोई प्रमुख पात्र अपनी क्रियाशीलता में धोखा न खाता हो । गिरफ्तार न हुआ हो । किंतु बिना क्रोध और घबड़ाहट के प्रयत्न करता है । ऐयारी का उद्देश्य है दूसरों को फाँसना । इस फाँसने के चक्कर में हर ऐयार या ऐयारा फंसे विना नहीं रहता है। किंतु ऐयारों पर किसी को क्रोध नहीं आता। उन्हें दंडित नहीं किया जाता। उनका दंड मात्र जेल है। यातना नहीं। ऐयारों के साथ क्रोध और क्रूरता दिखाने वालों को अच्छा नहीं माना जाता। इसलिए कि ऐयारों की स्थिति राजदूतों सी प्रतिष्ठित और सुरक्षित है। दंड भी कर्मों का फल है। नरेन्द्र मोहिनी के अंत में 'मोहिनी चिल्लाई और बोली' हाय हाय ! बेशक धोखा हुआ ।......अफसोस मेरी बिल्कुल कार्रवाई मिट्टी हो गई और जीते जी मुझे अपने कर्मों का फल भोगना पड़ा।' खत्री के सारे उपन्यासों का यही निष्कर्ष है। पापी की पराजय । धर्मात्मा की विजय । सत् पक्ष कभी हारता नहीं । सत्यमेव जयते। इसे सिद्ध करने के लिए लेखक ने अनेक क्रूर पात्रों की सृष्टि की । क्रूरता, नीचता और हत्याओं के लिए छटपटाने वाले असत्पक्षी पात्रों की कमी नहीं । बीरेन्द्रवीर का सुजान सिंह अपने हाथों अपनी लड़की का खून करना चाहता है किंतु यह उसकी लाचारी है। उसकी हर हत्या में हिचक है । लेखक प्रायः क्रूरता को बचाता है। किंतु यह भी सच है कि क्रूरता और हत्याएं समाज में हैं। उनकी सामाजिक गति और उपयोगिता भी है। दया की शक्ति क्रूरता की शक्ति के विरोध में ही प्रगट होती है। लेखक क्रूरता को कैसे बचाता है इसका एक उदाहरण 'बीरेन्द्रवीर' में दिखाई पड़ता है 'इत्तिफाक से हरीसिंह का सिर पत्थर की चौखट पर इस जोर से जाकर लगा कि फट कर खून का तरारा बहने लगा। साथ ही इसके एक लौंडी ने लपक कर हरीसिंह के हाथ की गिरी हुई तलवार उठा ली और एक ही वार में हरीसिंह का सिर काट कलेजा ठंडा किया । बाबू साहब-हाय तुमने यह क्या किया ?' क्रूरतम को मारने में 'इत्तिफाक' और लौंडी का प्रयोग इस बात को प्रमाणित करता है कि लेखक हत्याओं से कितना दूर रहना चाहता है। हर समय षड्यंत्रों, अपराधों और (v)