पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४०२

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ort छिछि, मुझे आप इन कम्बख्तों के सामने क्यों लाई ? इस लोगों की सूरत नहीं देखा पाहता। मै तो के दर्गा कै यस केवल कै देखूगा और कुछ नहीं आप जय तक चाहें यहाँ रहे मगर मैं दम भर नही रह सकता अब कै दयूगा के बस के देखूमा चस के केवल कै! कै के वकता हुआ विहारीसिह वहा से भागा और उस जगह आफर बैठ गया जहा मायारानी से पहिल पहल मुलाकात हुई थी। बिहारीसिंह की बदहवासी देखकर मामाराती घबराई और जल्दी जल्दी सीदिया चढ कदखाने का ताला बन्द करने बाद अपनी जगह पर आई जहा लम्बी लम्बी सासेलेते विहारीसिड को पैठ हुए पाया ! मायारानी की वे सहेलिया भी उसी जगह बैठी थीं जिन्हें छाड़ कर मायारानी कैदखाने की तरफ गई थी! मायारानी ने बिहारी सिह से भागने का समय पूछा मगर उसने कुछ जवाब न दिया। मायारानी न कई तरह के प्रश्न किए मगर विहारीसिह ने ऐसी चुप्पी साधी कि जिसका कोई हिसाथ ही नहीं। मालूम होता था कि यह जन्म का गूगा और बहिरा है न सुनता है न कुछ बोल सकता है। मायारानी की सहलियों में भी बहुत कुछ जार मारा मगर विनिहन मुँह नखाला। इस परेशानी में मायारानी का बिहारी सिर की हालत पर अफसोस करते हुए घटा भर बीत गया और तब तक वैद्यजी को जिनकी उम्र लगभग अस्सी बप के होगी अपने साथ लिए हुए हरनाममिह भी आ पाया। वैद्यराज ने इस अनोखे पागल की जाच की और अन्त में यह निश्चय किया कि घेराक इस काई एनी दया सिलाई गई है जिसक असर से यह पागल हो गया है और यदि इसी समय इसका इलाज किया जायक ही दो दिन में आराम हो सकता है। मायारानी ने इलाज करने की आज्ञा दी और मैद्यराज ने अप7 पास से एक पाडाजनिचिया निकाली जो कई तरह की दवाओं से भरी हुई हभशा उनके पास रहा करती थी। वैद्यराज को उस अनोखे पागल की जॉच में कुछ भी तकलीफ न हुई। विडारीसिंहन नाड़ी दियाने में उजाकिया और अन्त में दया की वह गाली भी या गया जो पंधराज ने अपन हायस उसके मुह में रख दी थी। बिहारीतिए ने अपने को ऐस बनाया जिससे देखने वालों का विश्वास हा कि यह दवाया गया परन्तु उस बालाक पागल गालो दातो क नीचे छिपा ला और थोड़ी देर बाद मौका पा इस ग स थूक दी कि किसी की गुमाकन हुआ। आधी घडी तक उछल कूद करने बाद बिहारीसिह जगीर पर गिर पड़ा और सदेरा होने तक उसी तरह पड़ा रहा। वैद्यराज ने नब्ज देख कर कहा कि यह दवा की तासोर से यहोश हो गया है इस कोई छडे नहीं आशा है कि जब इसकी आख मुलगी तो अच्छी तरह बातचीत करगा। बिहारीसिह चुपचाप पड़ा ये बातें सुन रहा था। मायारानी बिहारीसिंह को रिफाजत के लिए कई लोडिया छाड दूसर कमरे में चली गई और एक गाजुफ पलग पर जो वहामिछा हुआ था सो रही। सूर्योदय से पहिले ही मायाराशी उठी और हाथ मुंह धो कर उस जगह पहुची जहाँ विहारीसिह का छोड़ गई थी। हरनामसिह पहिले ही वहाँ जा चुका था। बिहारीति को जय मालूम हो गया कि मायारानी उसके पास आकर बैठ गई है तो वह भी दा तीन करवटे लेकर उठ बैठा और ताज्जुब से चारों तरफ चने लगा। - माया-अब तुम्हारा क्या जाल है? विहारी-हाल क्या कहू मुझ ताज्जुब मालूम हाल है कि मैं या वाकर आया मरी आधार क्यों बैठ गई और इरानी कमजारी क्यों मालूम होती है कि मैं उठ कर चल फिर नहीं सकता । माया- ईश्वर ने बड़ी कृपा की जा तुम्हारो सान मच ग तुम तो पूर पागल हो गये य वैद्यराज ने भी ऐसी दवा दी कि एक ही पूराक में फायदा हो गया। बराफ उन्होनहान पान का काम किया। तुम अपना झाल तो कहो तुम्हें क्या हो गया था? विहारी-(हरनामसिह की तरणा देख कर मैं एक ऐयार के फेर में पड़ गया था मगर पहिले आप कहिए कि मुझे इस अवस्था में कहाँ पाया? हरनाम-आप मुझसे कह कर कि तुम थोड़ा सा काम जो बच रहा है उसे पूरा करके जमानिया चले जाना में कमलिनी से मुलाकात करके और जिस तरह होगा उसे राजी करके जमानिया आऊँगा-खडहर वाले तहखाने से बाहर चले गए परन्तु काम पूरा करने के बाद में सुरग के बाहर निकला तो आपको शिवालय के सामने एक पेड़ के नीचे लिषित्र दशा में पाया । ( पागलपने की बातचीत और मायारानी के पास तक आने का खुलासा हाल कहने के बाद) मालूम होता है आप कमलिनी के पास नहीं गए? विहारी-(मायारानी से ) जैसा धोखा मैने अबकी खाया आज तक नही खाया था। हरामसिह का कहना सही है। जब मै सुरग से निकल कर शिवालय से बाहर हुआ तो एक आदमी पर नजर पड़ी जो मामूली जमीपार की सूरत में था। वह मुझे देखते ही मेर पैरों पर गिर पड़ा और गिडगिडा कर कहने लगा कि पुजारीला महाराज, किसी तरह मेरे माई की देवकीनन्दन खत्री समग्र ३८२