पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४०५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

cy? भाग अथवा दों के बारे में सवाल किये जायगे। उन्होंने सोच लिया कि अब मामला बेढब हो गया काम निकालना अथवा राजकुमारों को छुडाना तो दूर रहा कोई दूसरा उद्योग करने के लिए मेरा बच कर यहाँ से निकल जाना भी मुश्किल हो गया क्योंकि मैं किसी तरह उसके सवालों का जवाब नहीं दे सकता और न उस बाग के गुप्त भेदों की मुझे खबर ही है। असली बिहारीसिह अपनी बात कह कर चुप हो गया और फिक्र में हुआ कि मेरी बात का कोई जवाब दे ले तो मै कुछ कहूँ, मगर मायारानी की आज्ञा बिना कोई भी उसकी बातों का जवाब न दे सकता था। चालाक और धूर्त मायारानी 7मालूम क्या सोच रही थी कि आधी घडी तक उसने सिर न उठाया। इसके बाद उसने एक लौंडी की तरफ देख कर कहा "हरनामसिह को यहाँ बुलाओ। हरनामसिह पर्दे के अन्दर आया और मायारानी के सामने खडा हो गया। माया--यह एयार जो अभी आया है और बड़ी तेजी से बाल कर चुप बैठा है बडा ही शैतान और धूर्त मालूम देता है। मैं इसस बहुत कुछ पूछना चाहती हूँ परन्तु इस समय मेरे सर में दर्द है बात करना या सुनना मुश्किल है। तुम इस ऐयार को ले जाओ चार नम्बर के कमरे में इसके रहने का बन्दोबस्त कर दो जब मेरी तबीयत ठीक होगी तो देखा जायगा। हर-बहुत मुनासिब है और मैं सोचता हूँ कि बिहारी सिंह का भी माया-हॉ विहारीसिह भी दो चार दिन इसी बाग में रहें तो ठीक है क्योंकि यह इस समय बहुत ही कमजोर और सुस्त हो रहे हैं यहाँ कि आबहवा से दो तीन दिन में यह ठीक हो जायगे। इनके लिए बाग के तीसरे हिस्से का दो नम्बर वाला कमरा ठीक है जिसमें तुम रहा करते हो ! हरनाम-मै सोचता हूँ कि पहल विहारीसिह का बन्दोबस्त कर लूं तब शैतान ऐयार की फिक्र करू । माया-हाँ ऐसा ही होना चाहिये। हरनाम-(नकली बिहारीसिह अर्थात तेजसिह की तरफ देख कर ) चलिए उठिए । यद्यपि तेजसिह को विश्वास हा गया कि अब बचाव की सूरत मुश्किल है तथापि उन्होंने हिम्मत न हारी और कार्रवाई सोचने से बाज न आए। इस समय चुपचाप हरनामसिह के साथ चले जाना ही उन्होंने मुनासिव जाना । तेजसिह को साथ लेकर हरनामसिह उस कोठरी में पहुँचा जिसमें सुरग का रास्ता था। इस कोठरी में दीवार के साथ लगी हुई छोटी छोटी कई आलमारियों थीं। हरनामसिह ने उनमें से एक आलमारी खोली मालूम हुआ कि यह दूसरी कोठरी में जाने का दर्वाजा है। हरनामसिह और तेजसिह दूसरी कोठरी में गये। यह कोठरी बिल्कुल अधेरी थी अस्तु तेजसिह को मालूम न हुआ कि यह कितनी लम्बी और चौड़ी है। दस बारह कदम आगे बढ़ कर हरनामसिह ने तेजसिह की कलाई पकडी और कहा, "बैठ जाइये। 'यहाँ की जमीन कुछ हिलती हुई मालूम हुई और इसके बाद इस तरह की आवाज आई जिससे तेजसिह ने समझा कि हरनामसिह ने किसी कल या पुर्जे को छेड़ा है। वह जमीन का टुकडा जिस पर दोनों ऐयार बैठेथे यकायक नीचे की तरफ धसने लगा और थोड़ी देर के बाद किसी दूसरी जमीन पर पहुंच कर ठहर गया। हरनामसिह ने हाथ पकड़ कर तेजसिह को उठाया और दस कदम आगे बढो कर हाथ छोड दिया इसके बाद फिर घडघडाहट की आवाज आई जिससे तेजसिह ने समझ लिया कि वह जमीन का टुकडा जो नीचे उतर आया था फिर ऊपर की तरफ चढ़ गया। यहाँ तेजसिह को ऊपर की तरफ कुछ उजाला मालूम हुआ ये उसी तरफ बढे मगर अपने साथ हरनामसिह के आने की आहट न पाकर उन्होंने हरनामसिह को पुकारा पर कुछ जवाब न मिला। अब तेजसिह को विश्वास हो गया कि हरनामसिह मुझे इस जगह कैद करके चलता बना लाचार वे उसी तरफ रवाना हुए जिधर कुछ उजला मालूम होता था। लगभग पचास कदम के जाने बाद दर्वाजा मिला और उसके पार होने पर तेजसिह ने अपने को एक बाग में पाया। यह बाग भी हरा भरा था, और मालूम होता था कि इसकी रविशों पर अभी छिड़काव किया गया है मगर माली या किसी दूसरे आदमी का नाम भी न था। इस बाग में बनिस्बत फूलों के मेवों के पेड बहुत ज्यादे थे और एक छोटी सा नहर भी जारी थी जिसका पानी मोती की तरह साफ था सतह की ककड़ियाँ भी साफ दिखाई देती थी। बाग के बीबीच में एक ऊँचा बुर्ज था और उसके चारों तरफ कई मकान कमरे और दालान इत्यादि थे जैसा कि हम ऊपर लिख आये है। तेजसिह सुस्त और उदास होकर नहर के किनारे बैठ गए और न मालूम क्या क्या सोचने लगे और चाहे जो कुछ भी हो मगर अब तेजसिह इस योग्य न रहे कि अपने को विहारीसिह कहें। उनकी बची बचाईकलई भी हरनामसिह के साथ इस बाग में आने से खुल गई। क्या बिहारी सिह तेजसिह की तरह चुपचाप हरनामसिह के साथ अनजान आदमियों की तरहाचला चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ७ २५