पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४१

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aget इतन में एक लौडी ने आकर खबर दी कि ड्योढ़ी पर सदार धतसिह जासूसों का लेकर हाजिर हुए है क्या तुम होता है ? इसके जवाब में महारानी ने कहा, 'कह दो इस वक्त हमारी तबीयत अच्छी नहीं है और जासूसों की भी काई जरूरत नहीं, फिर देखा जायगा। इसके बाद एक लौडी की जुबानी जसवन्तसिह को कहला भेजा कि रनवीरतिइक दुश्मन का पता हमने आपको बतला दिया अप अगर आपका उनकी मुहब्बत है ता वहाँ जाकर उनको पचान की तकीब कीजिये,क्योंकि औरत हू भरे किये कुछ नहीं हो सकता और बालेसिह रडा नारी शैतान है, मैं किसी तरह उसका मुकाबला नहीं कर सकटी। हुक्म पाकर लौडी जसवन्तसिह के पास गई और महारानी का सन्देश दिया। जिसे सुन बड़ो देर तक जसवन्ततिह चुप रह इसके बाद जवाब दिया- अच्छा आज ता नहीं मगर कल में जरूर रनवीरसिंह के छुड़ाने की फिर्म जाऊगा।' जसवन्तसिह ने वह कह तो दिया कि रनवीरसिह को छुड़ाने के लिये मै कल आऊँगा मगर कल तक राह देखना और बकार बैठे रहना भी उसने मुनासिब न समझा क्योंकि वह दुष्ट वही सोच रहा था कि जहाँ तक जल्द हो सक बालेतिहस नल करके रनवीरसिह को मरवा देना चाहिये। आखिर उससन रहा गया और शाम हाते हो महारानी से हुक्म ले बालेसिह की तरफ रवाना हुआ। महारानी ने अपन लायक और ईमानदार दीवान को बुला कर कहा.' आज कल मेरी तबीयत ठीक नहीं रहती, कुछ न कुछ बीमार रहा करती हू, मरा इरादा है कि महीने पन्द्रह दिन तक बाग में जाकर रह और हवा पानी बदलू तब तक राज का कोई काम न करूंगी। लीजिये यह मोहर अपनी आपको देती हूँ जब तक मेरी तबीयत बस्यो दुरुस्त न हो जाय तब तक आप राज का काम ईमानदारी के साथ कीजिये। दीवान ने पर्दे की तरफ हाथ जोड़ कर अर्ज किया अगर सरकार की तबीयत दुरुस्त नहीं है तो जरूर कुछ दिन दाग में रहना चाहिए तावदार सजहाँ तक होगा ईमानदारीस काम करेगा। ईश्वर चाहेगा ता किसी कान में हर्ज न होगा। ऐसा ही काई मुश्किल काम आ पडगा ता सर्कारी हुक्म लेकर कलगा। महारानी ने कहा नहीं, जब तक मै बाग से वापत्त न आऊ तब तक मुझे किसी काम के लिए मत टाफना जो मुनातिब मालूम हो करना। दीवान साहब बहुत अच्छा जो हुक्म सकार का कह और सलाम कर रवाना हुए। आठवां बयान शेतार क बच्च जसवन्तसिह ने वचारे रनबीरसिह के साथ बदी करने पर कमर बाँध ली। उस पहिलो मुइयत की। उसके दिल से बिल्कुल जाती रही। अब तो यह फिक्र हुई कि जहाँ तक जल्द हो सक रनवीरसिह की जान लेनी चाहिये बल्कि इत खयाल ने उसके दिमाग में इतना जोर पैदा किया कि नक और बद का कुछ भी खयाल नरहा और वह देधड़क बालेसिह की तरफ रगना हुआ ' हा चलती समय उसने इतना जरूर सोचा कि महारानी ने पहले तो मरी सूब हो खातिरदारी की भी मगर पीछे से इतनी घेतखी क्यों करन लगी यहाँ तक कि सवारी के लिय एक घोड़ा तक भी न दिया और मुझे पैदल वालसिंह के पास जाना पड़ा साथ ही इसक यह खयाल भी उत्तक दित में पैदा हुआ कि पहिल मुझ लोर का दोस्त समझ हुए थी इसलिय खातिरदारी के साथ पेश आई मगर जब से भैरा सामना हुआतर से वह मुझको मुरब्बत की निगाह से देखने लगी इसी से इस नई मुहब्बत को छिपान के लिए उसन मेरी खातिरदारी छोड़ दी। इन्ही सब बतुकी बातों का सोचता विचारता पेघडक बालेमिह की तरफ पैदल रवाना हुआ।दोदिन रास्ते में लगा कर तोत्तरे दिन पूछता हुआ उस गाँव में पहुचा जिसमे बालत्तिह थोड से शैतानों को लेकर हुकूमत करता था। यह बालसिह का गाव देखन में एक छोटा सा शहर ही मालूम होता था जिसके चारों तरफ मजबूत दीवार पनी हुई थो और अन्दर जान के लिये पूरब और पश्चिम की तरफ दो बडबड फाटक लगे हुए था दीवार इत अन्दाज की बनी हुई थी कि अगर काई गनीम चट आवेता फाटक बन्द करके अन्दर बालदरी अपनी हिफाजत कर सकते थे और दीदार के मटे छाट सूराखों में से बाहर अपने दुश्मनों पर गोली और तीर इत्यादि परसा सकते थे। जसवन्तसिह जर पूरव के दर्वाशे से उस छोटे से किलनुमा शहर के अन्दर घुग तो दाज ही पर कई पहरेबालास मुलाकात हुन पहिले तो वह फाटक के दानों नरफ पहरेवालो को देखकर अटका मगर फिर साय विचार कर आगेा। पहर वालों ने भी उसको तरफ गौर से देखा और आपुस में कुछ इशारा कर हतन लगाउपजसपन्न कुछ पदा पउन पहारे वालों में से दो आदनी उतके पीछे पीछे रवाना हुए। जसवन्त भी योका हुआ था और इसीलिए इधर उधर आगे पीछे देखता मालता रहा या अपने पीछ दो कुसुम कुमारी १०४९