पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४१०

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लौडी-ताज्जुब में आकर और चारों तरफ देख कर ) यहाँ से तो कोई चीज चोरी नहीं गई। यह जवाब सुना में चुपचाप नीचे उतर आया और घर में चारो तरफ घूम घूम कर देखन लगा। जिस घर में खजाना रहता था उसम भी ताला बन्द पाया और कई कीमती चीजें जा मामूली तौर पर भण्डेरियों और खुली आलमारियों में पड़ी रहा करती थीं ज्यों की त्यों मौजूद पाई लाचार में अपनी चारपाई पर जाकर लेट रहा और तरह तरह की बातें सोचन लगा। उस समय रात बीत चुकी थी और सुबह की सुफेदी घर में घुस कर कह रही थी कि अब थोडी ही दर में सूर्य भगवान निकला चाहते है। इस बात का कई महीन चीत गए। मैन अपना दिल का हाल और 4 वार्तं जो देखी सुनी थी किसी से न कहीं हों छिप छिपे तहकीकात करता रहा कि असल मामला क्या है। चाल चलन बातचीत और मुहध्यत की तरफ ध्यान देने से मुझे निश्चय हा गया कि मरी मॉ जो घर में है वह असल में मेरी माँ नहीं है बल्कि कोई एयारा है 1 में छिप छिप अपनी माँ की खोज करन लगा और इस विषय पर ध्यान देने लगा कि वह एयारा घर मे मरी माँ बन कर क्यों रहती है और उसकी नीयत क्या है ? इसक अलावे मैं अपनी जान की हिफाजत भी अच्छी तरह करने लगा। इस बीच में रामभाली न मुझस मुहब्बत ज्यादा बढ़ा दी। यद्यपि उसकी चाल चलन में भी मुझ कुछ फर्क मालूम हाता था परन्तु मुहब्बत न मुझ अन्धा बना रक्खा था और में उसका पूरा आशिक यन गया था । एक पढी लिखी बुद्धिमान नौजवान औरत न जिम्मा लिया हुआ था कि यधपि रामभोली गूगी और वहरी हे परन्तु वह ..उस इशार ही में समझा युझा कर पढना लिखा सिखा देगी और वास्तव में उस औरत ने घडी चालाकी से रामभाली को पडना लिखना सिखा दिया। उसी औरत के हाथ रामभाली की लिखी थीठी मेर पास आती और में उसी के हाथ जवान भजा करला था। ऊपर कहीं वारदात के कुछ दिन बाद जो चीतियां रामनाली की मेरे पास आने लगी उनके अमरों का ढग और गढन कुछ निराल ही तोर का था परन्तु मैने उस समय उस पर कुछ विशप ध्यान न दिया। अब ऊपर वाले मामल को छ महीने स ज्याद गुजर गए। इस बीच में मेरा बाप कई दफे घर में आया और थोडे थोड दिन रह कर चला गया। घर की बाता में सिर्फ इतना फर्फ पड़ा कि मरा बाप मेरी माँ से मुहब्बत ज्यादै करन लगा मगर भरी नकली माँ तरह तरह की वेढय फरमाइशों से उसे तग करन लगी। एक दिन जब मेरा याप घर में ही था आधी रात के समय मर याप और मेरी माँ में कुछ चटपट होने लगी। उस समय मै जागता था। मेरे जी में आया कि किसी तरह इस झगडे का सवय मालूम करना चाहिए। आखिर ऐसा ही किया मै चुपक स उठा और धीर धीरे उस कमर के पास गया जिसको अन्दर व दोनों जली कटी बाते कर रह थे। उस कमरे में तीन दर्वाज थे जिनमें से एक खुला हुआ मगर उसके आगे पर्दा गिरा हुआ था और दो दाजे बन्द था में एक बन्द दर्वाजे क आगे जाकर (जो खुले दर्वाज के ठीक दूसरी तरफ था ) लट रहा और उन दोनों की बातें सुनने लगा। जा कुछ मैने सुना उसे ठीक ठीक वयान करता हूँ- मॉ-जव तुम्हें मेरी विश्वास नहीं ता किस मुंह स कहते हा कि मैन तेर लिए यह किया और वह किया ? वाप-वेशक मेन तेरे लिए अपनी जान खत्तर मे डाली और जनम भर के लिए अपने नाम पर धव्या लगाया और अय तू चाहती है कि मैं न मरन लायक रहूँ और न जीत रह कर किसी को मुँह दिया सकें। मॉ-अपने मुंह से तुम जा चार कहो मगर में एसा नहीं चाहती जा तुम कहते हो। क्या मै वह किताव खा जाऊँगी या किसी दूसरे को दे दूंगी? जाआ अपनी किताब ले जाओ और अपनी चहेता बेगम को नजर कर दी। याप-मेरी वह जोस जिसे तुम ताना देकर क्गम कहती हो तुम्हार ऐसी जिद्दी नहीं। उसो मुझे राजा वीरेन्दसिह के यहाँ चोरी करने के लिए नहीं कहा और न वह तिलिस्म का तमाशा ही देखा चाहती है। मॉ-उसको इतना दिमाग ही नहीं कगाल की लड़की का हौसला ही कितना । वाप-हॉ बेशक उसका इतना बडा हौसला नहीं कि मेरी जान की ग्राहक बन बैठे । इसके बाद थोडी सी बाते बहुत ही धीरे धीरे हुइ जिन्हें में अच्छी तरह सुन न सका। अन्त में मेरा बाप इतना कह कर चुप हो रहा- खैर फिर जो कुछ भाग्य में लिखा है वह भोगूंगा। ला यह खूनी किताब तुम्हारे हवाले करता हूँ, पाँध रांज में लौट के आऊँगा ता तिलिस्म का तमाशा दिखा दूंगा और फिर यह किताब राजा वीरेन्द्रसिह के यहां किसी ढग से पहुंचा दूंगा। मैं यह साच कर कि अब मेरा बाप बाहर निकलना ही चाहता है उठ खड़ा हुआ और चुपचाप नीचे उतर अपने कमरे में चला आया। मगर मेरे दिल की अजब हालत थी में खूब जानता था कि वह मरी मॉ नहीं है और अब तो मालूम हो गया कि उस कम्बख्त के फर में पड़कर मेरा बाप अपने ऊपर कोई आफत लाया चाहता है इसलिए यह सोचने लगा कि ! देवकीनन्दन स्त्री समग्र