पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४१५

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7 1 चण्डूल-चाह न हो। तेज-खैर यह भी कह सकत हो कि तुम्हारा आना यहा क्यों चण्डूल-इसलिए कि तुम दानों का होशियार कर दूं कि कल शाम के वक्त आट आदमियों के खून से इस बग की क्यारियों रंगी जायगी जो फंस कर यहाँ आ चुक है। तेज-क्या उनके नाम भी बता सकते हो? चण्डूल-हाँ सुना-राजा वीरन्दसिह एक रानी चन्दकान्ता दो इन्द्रजीतसिह तीन आनन्दसिह चार किशोरी पाँच कामिनी छ तेजसिह सात नानक आठ । तेजसिह-(घयडा कर) यह ता में भी जानता हूँ कि दोनों कुमार और उनके एयार मायारानी के फंदे में फंसकर यहाँ आ चुक है मगर राजा बीरेन्द्रसिंह और रानी चन्द्रकान्ता तो चण्डूल-हाँ हाँ वे दोनों भी फंस कर यहाँ आ चुक है पूछ। नानक से। नानक-(तेजसिंह की तरफ दख कर ) हाँ ठीक है अपना किस्सा कहन के बाद राजा वीरेन्द्रसिंह और रानी चन्द्रकान्ता का हाल मैं आपसे कहने ही वाला था मगर मुझ यह बात अच्छी तरह मालूम नहीं है कि वे लोग क्योंकर मायारानी क फन्द म फेंस ! चण्डूल-(नानक से ) अव विशप बातों का मौका नहीं है तेजसिंह से जो कुछ करते वनेगा कर लेंग मै इस समय तुम्हार लिए आया हूँ आआ और मर साथ चलो। नानक-मै तुम पर विश्वास करके तुम्हार साथ क्योंकर चल सकता हूँ चण्डूल-(कड़ी निगाह से नानक की तरफ देख के और हुकुमत के साथ) लुच्चा कहीं का अच्छा सुन एक बात मैं तर कान में कहा चाहता हूँ। इतना कह कर चण्डूल चार पॉच कदम पीछ हट गया। उसकी डपट ओर यात ने नानक के दिल पर कुछ ऐसा असर लिया कि वह अपने को उसके पास जाने से राक न सका। नानक चण्डूल के पास गया मगर सपने को हर तरह सम्हाल और अपना दाहिना हाथ यजर के कब्जे पर रक्खे हुए था। चण्डूल ने झुक कर नानक के कान में कुछ कहा जिसे सुनते ही नानक दो कदम पीछे हट गया और बडे गौर से उसकी सूरत देखने लगा। थोड़ी देर तक यही अवस्था रही इसके बाद नानक ने तेजसिह की तरफ देखा और कहा 'माफ कीजिएगा लाचार होकर झे इनके साथ जाना ही पडा अब मैं बिल्कुल इनके कब्जे में हूँ यहाँ तक कि मेरी जान भी इनके हाथ में है। इसके बाद नानक ने कुछ न कहा। वह चण्डूल के साथ चला गया और पेड़ों की आड में घूम फिर कर देखते देखते नजरों से गायब हो गया। M अब तेजसिह फिर अकेले पड़ गए। तरह तरह के खयालों ने चारों तरफ से आकर उन्हें घेर लिया। नानक की जुबानी जा कुछ उन्होंने सुना था उससे बहुत सी भेद की याते मालूम हुई थी और अभी बहुत कुछ मालूम होने की आशा थी परन्तु नानक अपना किस्सा पूरा कहने भी न पाया था कि इस चण्डूल ने आ कर दूसरा ही रग मचा दिया जिससे तरददुद और घबराहट सौ गुनी ज्यादे बढ गई । बिछावन पर पड़े पड़े वे तरह तरह की बातें सोचने लगे। नानक की बातों से विश्वास होता है कि उसने अपना हाल जो कुछ कहा सही सही कहा मगर उसके किस्से में कोई ऐसा पात्र नहीं आया जिसके बारे में चण्डूल होने का अनुमान किया जाय। फिर यह चण्डूल कौन है जिसकी थोडी सी बात से जो उसने झुक कर नानक क कान में कही नानक घबडा गया और उसके साथ जाने पर मजबूर हो गया । हाय यह कैसी भयानक खवर सुनने में आई कि अब शीघ ही राजा वीरेन्दसिह रानी चन्द्रकान्ता तथा दोनों राजकुमार और ऐयार लोग इस बाग में मारे जायगे। बेचारे राजा बीरेन्द्रसिह और रानी चन्द्रकान्ता के बारे में भी अब ऐसी बातें। ओफ न मालूम अव ईश्वर क्या किया चाहता है । मगर हिम्मत न हारनी चाहिए आदमी की हिम्मत और बुद्धि की जोंच ऐसी ही अवस्था में होती है। ऐयारी का बटुआ और खजर अभी मेरे पास मौजूद है कोई न कोई उद्योग करना चाहिए और वह भी जहाँ तक हो सके शीघता के साथ। इन्हीं सब विचारों और गम्भीर चिन्ताओं में तेजसिह डूबे हुए थे और सोच रहे थे कि अब क्या करना उचित है कि इतने में सामने से आती हुई मायारानी दिखाई पड़ी। इस समय वह असली बिहारीसिह (जिसकी सूरत तेजसिह ने चदल दी थी और अभी तक खुद जिसकी सूरत में थे) और हरनामसिह तथा और भी कई ऐयारों और लौडियों से घिरी हुई थी। इस समय सवेरा अच्छी तरह हो चुका था और सूर्य की लालिमा ऊँचे ऊँचे पेड़ों की डालियों पर फैल चुकी थी। मायारानी तेजसिह के पास आई और असली विहारीसिह ने आगे बढ़ कर तेजसिह से कहा धर्मावतार बिहारीसिह जी मिजाज दुरुस्त है या अभी तक आप पागल ही है, चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ७