पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४१६

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तेज-अब मुझे बिहारीसिह कह कर पुकारने की आवश्यकता नहीं क्योंकि आप जान गए है कि यह पागल असल में राजा बीरेन्दसिह का कोई ऐयार है और अब आपको यह जान कर हद्द दर्जे की खुशी होगी कि यह पागल बिहारीसिह वास्तव में ऐयारों के गुरुघटाल तेजसिह है जिनकी बढी हुई हिम्मतों का मुकाबला करने वाला इस दुनिया में कोई नहीं है और जो इस कैद की अवस्था में भी अपनी हिम्मत और बहादुरी का दावा करके कुछ कर गुजरने की नीयत रखता है। विहारी-ठीक है मगर अब आप ऐयारों के गुरुघटाल की पदवी नहीं रख सकते क्योंकि आपकी अनमोल ऐयारी यहाँ मिट्टी में मिल गई और अब शीघ्र ही हथकडी येडी भी आपके नजर की जायगी। तेज-अगर तुम मेरी एयारी चौपट कर चुक थे तो ऐयारी का बटुआ और खजर भी ले लिए होते यह गुरुपटाल ही का काम था कि पागल होने पर भी ऐयारी का बटुआ और खजर किसी के हाथ में जाने न दिया। बाकी रही बेडी सो मेरा वरण काई छू नहीं सकता जब तक हाथ में खजर मौजूद हैहाथ में खजर लेकर और दिखा कर वह कौन सा हाथ है जो हथकडी लेकर इसके सामने आने की हिम्मत रखता है। विहारी-मालूम होता है कि इस समय तुम्हारी आँखें केवल मुझी को देख रही है उन लोगों को नहीं देखती जो मेरे साथ है अतएव सिद्ध हो गया कि तुम पागल होने के साथ साथ अन्धे भी हो गए नहीं तो बिहारीसिह की बात पूरी न हुई थी कि बगल की एक काठरी का दर्वाजा खुला और वही चण्डूल फुर्त के साथ निकल कर सभों के बीच में आ खडा हुआ जिसे देखतेही मायारानी और उसके साथियों की हैरानी का कोई ठिकाना ने रहा। केवल इतना ही नहीं बल्कि यह भी मालूम हुआ कि उस कोठरी में और भी कई आदमी है जिसके अन्दर से चण्डूल निकला था क्योंकि उस कोठरी का दर्वाजा चण्डूल ने खुला छोड दिया था और उसके अन्दर के आदमी कुछ कुछ दिखाई पड़ रहे थे। चण्डूल-(मायारानी और उसक साथियों की तरफ देख कर) यह कहने की काई जरूरत नहीं कि मैकौन हूँ, हाँ अपन आने का सबब जरूर कहूँगा। मुझे एक लौडी और एक गुलाम की जरूरत है कहो तुम लोगों में से किसे चुनें? (मायारानी की तरफ इशारा करके) मै समझता हूँ कि इसी को अपनी लौडी वनाऊँ और (बिहारीसिह की तरफ इशारा करके ) इसे गुलाम की पदवी दूं। बिहारी-तू कौन है जो इस बअदबी के साथ बातें कर रहा है ? (मायारानी की तरफ इशारा करके) तू जनता नहीं कि ये कौन हैं? चण्डूल-(हँस कर ) मेरी शान में चाहे कोई कैसी ही कडी बात कहे मगर मुझे क्रोध नहीं आता क्योंकि मैं जानता हूँ कि सिवा ईश्वर के कोई दूसरा मुझसे बड़ा नहीं है और मेरे सामने खड़ा होकर जो बातें कर रहा है यह तो गुलाम के घरावर भी हैसियत नहीं रखता मैं क्या जानें कि (मायारानी की तरफ इशारा करके ) यह कौन है? हाँ यदि मेरा हाल जानना चाहते हो तो मेरे पास आओ और कान में सुनो कि मैं क्या कहता हूँ। बिहारी-हम ऐसे बेवकूफ नहीं है कि तुम्हारे चकमे में आ जायें। चण्डूल-क्या तू समझता है कि मैं उस समय तुझ पर वार करूँगा जब तू कान झुकाए हुए मेरे पास आ कर खड़ा होगा? विहारी-बेशक ऐसा ही है। चण्डूल-नहीं नहीं यह काम हमारे एसे बहादुरों का नहीं है अगर डरता है तो किनारे चल मैं दूर ही से जो कुछ कहना है कह दूं जिसमें कोई दूसरा न सुने । विहारी-( कुछ सोच कर ) ओफ मैं तुझ ऐसे कमजोर से डरने वाला नहीं कह क्या कहता है। यह कह कर बिहारीसिंह उसके पास गया और झुक कर सुनने लगा कि वह क्या कहता है। न मालूम चण्डूल ने बिहारीसिह के कान में क्या कहा न मालूम उन शब्दों में कितना असर था न मालूम वह बात कैसे कैसे भेदों से भरी हुई थी जिसने विहारीसिंह को अपने आपे से बाहर कर दिया। वह घबड़ा कर चण्डूल को देखने लगा उसके चेहरे का रग जर्द हो गया और बदन में थरथराहट पैदा हो गई। चण्डूल-क्यो अगर अच्छी तरह न सुन सका हो तो जोर से पुकार के कहूँ जिसमें और लोग भी सुन लें। विहारी-(हाथ जोड कर) बस बस क्षमा कीजिए मै आशा करता हूँ कि आप अब दोहरा कर उन शब्दोको श्रीमुख से न निकालेंगे मुझे यह जानने की भी आवश्यकता नहीं कि आप कौन है, चाहे जो भी हो। माया- (बिहारी से)। उसने तुम्हारे कान में क्या कहा जिससे तुम घबडा गए । विहारी-(हाथ जोड़ कर) माफ कीजिए मैं इस विषय में कुछ भी नहीं कह सकता। माया-(कडी आवाज में ) क्या मै वह बात सुनने योग्य नहीं हूँ? बिहारी-कह तो चुका कि उन शब्दों को अपने मुंह से नहीं निकाल सकता । 1 1 देवकीनन्दन खत्री समग्र