पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४१९

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हसमुख और नेक चाल चलन वाले पति को कुछ भी नहीं चाहती थी। इस समय लाडिली के दिल में एक तरह का खुटका प्दा हुआ और शक की निगाह से मायारानी की तरफ देखने लगी मगर मायारानी कुछ भी नहीं जानती थी कि उसकी छोटी बहिन उसे किस निगाह से देख रही है। लगभग दो सौ कदम चल जाने बाद वह चौकी और लाडिली की तरफ जा सा मुह फेर कर बाली हॉ तो वह उन रास्तों का हाल जानता था। लडिली के दिल में और भी खुटका हुआ बल्कि इस बात का रज हुआ कि मायारानी ने अपने पति या लाडिली के प्यारे चहलोई की तरफ ऐसे शब्दों में इशारा किया जो किसी नीच या खिदमतगार तथा नौकर के लिए बर्ता जाता है। लाडिली का ध्यान धनपति की तरफ गया जिसके चेहरे पर उदासी और रज की निशानी मामूली से कुछ ज्यादे पाई जाती थी और जसकी घोडी भी पाँच सात कदम पीछे रह गई थी। मगर मायारानी और धनपति की ऐसी अवस्था ज्यादे देर तक न री उन दानों ने बहुत जल्द अपने को सम्हाला और फिर मामूली तौर पर बातचीत करने लगी। धन अब वह टीला भी आ पहुंचा देखा चाहिए यावा जी से मुलाकात होती है या नहीं। मायरानी-मुलाकात अवश्य होगी क्योंकि वे कहीं जाते नहीं मगर अब मेरा जी नहीं चाहता कि वहाँ तक जाऊँ या उनस मिनूं। लाडिली-सो क्यों तुम तो बड़े उत्साह से उनसे मिलने के लिए आई हो । माय-ठीक है मगर अब जो में सोचती हूँ तो वही जान पडता है कि येचारे बाबाजी इन सब बातों का जवाब कुछ भी न दे सकगे। लाडिली-खैर जब इतनी दूर आ चुकी हो तो अब लौट चलना भी उचित नहीं। माया-नहीं अब मैं वहाँ न जाऊँगी। इतना कह कर मायारानी ने घोडा फेरी लाचार होकर लाडिली और धनपति को भी घूमना पड़ा मार इस कार्रवाई से वडिली के दिल का शक और भी ज्यादा हुआ और उसे निश्चय हो गया कि मेरी बात से मागा रानी के दिल पर गहरी चोर बैठी है मगर इसका सबब क्या है सो कुछ भी नहीं मालूम होता । मयारानी ने जैसे ही घाडी की चाग फेरी वेस ही उसकी निगाह तेजसिह पर पडो जो तीर और कमान हाथ में लिए वहा दूर से कदम बढाए इन तीनों के पीछे पीछे आ रहे थे। मायारानी तेजसिह को अच्छी तरह जानती थी। यद्यपि इस साय कुछ अन्धेरा हो गया था परन्तु मायारानी की त-निगाहों ने तेजसिह को तुरन्त ही पहिचान लिया और इसके साथ हीवह तलवार खैच कर तेजसिह पर झप । मायारानी को नगी तलवार लिए झपटते देख तेजसिह ने ललकार के कहा खबरदार आगे न बढ़ना नहीं तो एक है तीर में काम तमाम कर दूगा । तेजसिह के ललकारने से मायारानी रुक गई मगर धनपति से न रहा गया। वह तलवार खैच कर यह कहती हुई आगे, बढी मैं तेरे तीर से डरने वाली नहीं । तेजसिह-मालूम होता है तुझे अपनी जान प्यारी नहीं है इसे खूब समझ लीजियो कि तेजसिह के हाथ से छूटा हुआ तीर खाली न जायगा। धन-मालूम होता है कि तू कंवल एक तीर ही से हम तीनों को डरा कर अपना काम निकालना चाहता है। अफसोस इस समय मेरे पास तीर कमान नहीं है यदि होता तो तुझे जान पड़ता कि तीर चलाना किसे कहते है ? तेज-(हेस कर) न मालूम तूने औरत होने पर भी अपने को क्या समझरक्खा है खैर अब मै एक कमसिन औरत पर तीर नहीं चलाऊँगा। इतना कह कर तेजसिंह ने तीर तरकस में रख लिया तथा कमान बगल में लटकाने बाद ऐयारी को बटुए में से एक छोटा सा लोहे का गोला निकाल कर सामने खडे हो गये और धनपति को वह गोला दिखा कर बोले तुम लोगों के लिए यही बहुत है मगर मैं फिर कहे देता हूँ कि मुझ पर तलवार चला कर मलाई की आशा मत रखियो ।" धन-(मायारानी की तरफ इशारा करके) क्या तू जानता नहीं कि यह कौन है ? तेज-मैं तुम तीनों को खूब जानती हूँ और यह भी जानता हूँ कि मायारानी सैंतालीस नम्बर की कोठरी को पवित्र करके येवा हो गई और इस बात को पाँच वर्ष का जमाना हो गया। इतना कह कर मुस्कराते हुए तेजसिह ने एक भेद की निगाह मायारानी पर डाली और देखा कि मायारानी का चेहरा पीला पड़ गया और शर्म से उसकी आँखें नीचे की तरफ झुकने लगी मगर यह अवस्था उसकी बहुत देर तक न रही, . , चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ७