पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४२

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६ दिलावर जगी सिपाहियों को आते देख वह कुछ अटका मगर फिर आग यदा इसी तरह घड़ी घड़ी पीछ देखता अटकता आगे बढ़ता चला जा रहा था। पीछे पीछे जाने वाले दोनों सिपाती भी उसी की चाल चलते थे अर्थात् जय वह अटकता ता वह भी रुक जात और उसके चलने के साथ ही पीछे पीछ चलने लगते। यह कैफियत देव जसवन्तसिंह के जी में खुटका पैदा हुआ बल्कि उसे खोफ मालूम हाने लगा और एक चौमुहानी पर पहुध वह एक किनारे हट कर खड़ा हो गया। दोनों सिपाही भी कुछ दूर पीछ ही खडे हो गए। जसवन्त आधी घडी तक खडा रहा, जब उन दोना सिपाहियों को भी शके हुए दसा तो पीछे की तरफ लौटा, मगर जब वहाँ पहुचा जहा वे दोना सिपाही खडे थे तब रोक लिया गया। दोना सिपाहिया ने पूछा, ' लोटे कहा जाते हा ?" जसवन्त ने कहा "जहा से आये थे वहा जाते है।" दानों सिपाहियों ने कहा 'तुम अब लौट कर नहीं जा सकन इस चारदीवारी क अन्दर जानी चाहे जाआ घूमो फिरो हम दोनों तुम्हारे साथ रहेंगे, मगर लौट कर नहीं जाने देंगे। जसवन्त-क्यों? एक सिपाही-मालिक का हुक्म ही ऐसा है। जसवन्त-यह हुक्म किसके लिये है ? दूसरा सिपाही-खास तुम्हार लिये। जसवन्त-क्या तुम लोग मुझ जानते हो? दोनों-खूब जानते हैं कि तुम जसवन्तसिह हो । जसवन्त-यह तुमने कैसे जाना ? दाना-इसका जवाब देने की जरूरत नहीं 1 तुम यहाँ क्यों आये हो? जसवन्त-तुम्हारे मालिक बालेसिह से मुलाकात करने आया था। एक-ता लोट क्यों जाते हो? चलो हम लोग तुम्हे अपने मालिक के पास ल चलत है। जसवन्त-(कुछ सोच कर) खैर चलो, इसीलिये तो मैं आया ही है। दोनों सिपाही जसवन्त को साथ लिये अपने सार बालेसिह के पास पहुंच। उस वक्त बालेसिह एक सुन्दर मकान क बड़े कमरे में अपन साथी दसयारह आदमियों के साथ बैठा गप्पे उड़ा रहा था। अपने दा सिपाहियों के साथ जसवन्त को आते देख खिलखिला कर हस पड़ा और सपन्त के हाथ पैर खुले देख बोला क्या यह खुद आया है? जिसके जवाब में दोनों सिपाहियों ने कहा "जी सरि गालेसिह-क्यों जसवन्तसिह साहद वहादुर, क्या इरादा है ? कैसी नीयत है जो मघडक चल आये हो? जसवन्त-बहुत अच्छी नीयत है, मैं आपसे मित्रभाव रखकर आपक मतलब की कुछ कहने आया हू । वाले-मैं तो तुम्हारा दुश्मन है मेरी भलाई की बात तुम क्यों कहन लग? जसवन्त-आप मेरे दुश्मन क्यों होंगे मिने आपका क्या बिगाड़ा है ? या आप ही ने मेरा क्या नुक्सान किया है ? बाले-(जोश में आकर) तुम्हारे दोस्त रनबीरसिह को मैने गिरफ्तार कर लिया है और कल उनका सिर अपने हाथ से काढूँगा। जसवन्त-(जी में खुश होकर) क्या हुआ जो रनवीरसिह को आपने गिरफ्तार कर लिया ? शौक से उसका मर काटिये, इसके बाद एक तर्कीब ऐसी वताऊगा कि महारानी बडी खुशी से आपके साथ शादी करने पर राजी हो जायगी। बाले-(जोर से हस कर) वाह धेशैतान के बच्चे, क्या उल्लू बनाने आया है !अब तेरे ऐसे पचासों को मैं चुटकियों पर नचाऊ, तू क्या मुझे भुलावा देने आया है दिईमान हरामजादा कहीं का पढाने आया है जन्मभर जिसका नमक खाया, जिसके घर में पला, जिसके साथ पढ़ लिख कर होशियार हुआ और जिसके साथ दिली दोस्ती रखने का दावा करता है आज उसी के लिए कहता है कि शौक से उसका सर काट डालो !जकर तेरे नुत्फे में फर्क है. इसमें कोई शक नहीं !तरा मुह देखने से पाप है। रनबीर ने तेरे साथ क्या बुराई की थी जो तू उसके बारे में ऐसा कहता है ? उल्लू के पट्टे. जब तू उसके साथ यह सलूक कर रहा है तो मेरे सग क्या दोस्ती अदा करेगा !(इधर उधर देख कर) कोई है? पकडो इस बेईमान को अपने हाथ से कल इसका भी सर काट कर कलेजा ठटा करूगा। हुक्म पाने हो वारो तरफ से जसवन्त के ऊपर आदमी टूट पडे और दखते देखते उसे पकड़ रस्सिया से कस के बाध लिया। यालेसिह ने अपने हाथ से वे विल्कुल वाते कागज पर लिखी जो उस वक्त जसवन्तसिह से और उससे हुई थी और

  • वीर्य ।

देवकीनन्दन खत्री समग्र १०५०