पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४२१

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Gott भूत-बेशक मैं वही चीज तुम्हें दूगा, और तुम आजमाने के बाद मुझे छोड सकती हो। नागर-मगर ताज्जुब नहीं कि आजमाते आजमाते मैं फिर बेहोश हजाऊँ क्योंकि तू धोखा देने में मुझसे किसी तरह कम नहीं हो। भूत-इसका जवाब तुम खुद समझ सकती हो । नागर-हॉ ठीक है यदि मैं थोड़ी देर के लिए बहोश भी हो जाऊँगी तू मेरा कुछ कर नहीं सकता क्योंकि पेड के साथ बधा हुआ है और तेरे हाथ पैर भी खुले नहीं है। भूत-और मेरे चिल्लाने से मी यहाँ कोई मददगार न पहुंचेगा। नागर-हॉ इसका प्रमाण भी कहते कहते नागर रुक गई क्योकि पत्तों के खडखडाने की आवाज उसने सुनी और किसी के आने का उसे शक हुआ। नागर ने पीछे धूम कर देखा तो कमलिनी पर नजर पडी जो नागर के दिए घोडे पर सवार इसी तरफ आ रही थी। कमलिनी इस समय भी उसी सूरत में थी जिस सूरत में नागर के यहाँ गई थी और उसका पहिचानना मुश्किल था मगर भूतनाथ की जुबानी नागर को पता लग चुका था इसलिए उसने कमलिनी को तुरत पहिचान लिया और भूतनाथ को उसी तरह छोड फुर्ती से घोड़े पर सवार हो गई। कमलिनी भी पास पहुंची और नागर की तरफ देख कर बोली- कम-तुझे तो विश्वास हो गया होगा कि मैं मिर्जापुर चली गई। नागर-बेशक तुमने मुझे धोखा दिया खैर अब मेरे हाथ से बचकर कहाँ जा सकती हो? यद्यपि तुम मायारानी की बहिन हो और इस सबब से मुझे तुम्हारा अदव करना चाहिए मगर तुम्हारी बुराइयों पर ध्यान देकर मायारानी ने हुक्म दे रक्खा है कि जो कोई तुम्हारा सिर काट कर उनके पास ले जायेगा वह मुँहभागा इनाम पाएगा अस्तु अब मैं तुम्हें किसी तरह छोड नहीं सकती. हॉ अगर तुम खुशी से मायारानी के पास चली चलो तो अच्छी बात है । कम-(मुस्कुरा कर) ठीक है मालूम होता है कि तू अभी तक अपने को अपने मकान में मौजूद समझती है और चारों तरफ अपने नौकरों को देख रही है। नागर-(कुछ शर्मा कर }मै खूब जानती हूँ कि इस मैदान में मै अकेली हूँ लेकिन यह भी देख रही हूँ कि तुम्हारे साथ भी कोई दूसरा नहीं है। अगर तुम अपने को हर्या चलाने और ताकत में मुझसे चढ कर समझती हो तो यह तुम्हारी भूल है और इसका फैसला हाथ मिलाने ही स हो सकता है ( हाथ बढाकर ) आइए । कम-(हॅस कर) वाह तू समझती है कि मुझे उस अगूठी की खबर नहीं जो तेरे इस बढ़े हुए हाथ में देख रही हूँ, अच्छा ले. अच्छा ले कह कर कमलिनी ने दिखा दिया कि उसमें कितनी तेजी और फुर्ती है। घोडा आगे बढाया और तिलिस्मी खजर निकाल कर इतनी तेजी के साथ नागर के हाथ पर रख दिया कि वह अपना हाथ हटा भी न सकी और खजर के तासीर से बदहवास हाकर जमीन पर गिर पड़ी। कमलिनी ने घोडे से उतर कर भूतनाथ को कैद से छुटटी दी और कहा 'वाह तुम इतने बड़े चालाक होकर भी इसके फन्दे में आ गये । भूत-मै इसके फदे में न आत्ता यदि इस अगूवी का गुण जानता जो इसकी उगली में चमक रही है वास्तव में यह अनमोल वस्तु है और कठिन समय पर काम दे सकती है। कम-इस कम्बख्त के पास यही तो एक चीज है जिसके सबब से मायारानी की आँखों में इसकी इज्जत है। इसके जहर से कोई बच नहीं सकता, हा यदि यह चाहे तो जहर उतार भी सकती है। नमालूम यह अगूठी और इसका जहर उतारने की तीय मनोरमा ने कहाँ से पाई। भूत-मायारानी से और उससे क्या सम्बन्ध? कम-मनोरमा उसकी सखियों में सब से बड़ा दर्जा रखती है और वह इस कम्बख्त को अपनी बहिन से बढ़ के मानती है। यह अगूठी भी मनोरमा ही की है। भूत--तो मायारानी ने यह अगूठी क्यों न ले ली ? उसके तो बड़े काम की चीज थी। कम-उसको भी मनोरमा ने ऐसी ही अगूठी बना दी है और जहर उतारने की दवा भी तैयार कर दी है मगर इसके बनाने की तीव नहीं बताती । भूत-खैर अब यह अगूठी आप ले लीजिए। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ७ ४०१