पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४२२

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कम-यद्यपि यह मेरे काम की चीज नहीं है बल्कि इसका अपने पास रखने में मैं पाप समझती हूँ तथापि जब तक मायारानी से खटपट चली जाती है तब तक यह अगूठी अपने पास जरूर रक्खूगी ( तिलिस्मी खजर की तरफ इशारा कर के ) इसके सामने यह अगूठी कोई चीज नहीं है। भूत-वेशक वेशक जिसक पास यह खजर है उसे दुनिया में किसी चीज की परवाह नहीं और वह अपने दुश्मन से चाहे वह कैसा जबरदस्त क्यों न हो कभी नहीं डर सकता। आपने मुझ पर बडी कृपा की जो ऐसा खजर थोड़े दिन के लिए मुझे दिया। आह वह दिन भी कैसा होगा जिस दिन यह खजर हमेशा अपने पास रखने की आज्ञा आप मुझे देंगी। कम-(मुस्करा कर ) खैर वह दिन आज ही समझ लो मैं हमेशे के लिए यह खजर तुम्हें देती हूँ, मगर नानक के लिए ऐसा करने की सिफारिश मत करना। भूतनाथ ने खुश होकर कमलिनी को सलाम किया। कमलिनी ने नागर की उँगली से जहरीली अगूठी उतार ली और उसके बटूए में से खोज कर उस दवा की शीशी भी निकाल ली जो उस अगूठी के भयानक जहर को यात की बात में दूर कर सकती थीं। इसके बाद कमलिनी ने भूतनाथ से कहा 'नागर को हमारे अद्भुत मकान में ले जाकर तारा के सुपुर्द करो और फिर मुझसे आकर मिलो। मैं फिर वहीं अर्थात् मनोरमा के मकान पर जाती हूँ। अपने कागजात भी उसके बटुए में से निकाल लो और इसी समय उन्हे जला कर सदैव के लिए निश्चिन्त हो छठवॉ बयान मायारानी का डेरा अभी तक खास बाग ( तिलिस्मी बाग ) में है। रात आधी से ज्यादे जा चुकी है चारो तरफ सन्नाटा छाया हुआ है पहरे वालों के सिवाय सभी को निद्रादेवी ने बेहोश करके डाल रक्खा है मगर उस बाग में दो औरतों की आँखों में नींद का नाम निशान भी नहीं। एक तो मायारानी की छोटी बहिन लाडिली जो अपने सोने वाले कमरे में मसहरी पर पडी कुछ सोच रही है और थोडी थोडीदर पर उठ कर बाहर निकलती और सन्नाटे की तरफ ध्यान देकर लौट जाती है मालूम होता है कि यह मकान या बाग के बाहर जाकर किसी से मिलने का मौका ढूँढ रही है और दूसरी मायारानी जो निद्रा न आने के कारण अपने कमरे में टहल रही है। उसे भी तरह तरह के ख्यालों ने सता रक्खा है। कभी कभी उसका सिर हिला जाता हे जो उसके दिल की परेशानी को पूरी तरह से छिपा रहने नहीं देता उसके होठ भी कभी कभी अलग होकर दिल का दर्वाजा खोल देते हैं जिससे दिल के अन्दर कैद रहने वाले कई भेद शब्द रुप होकर धीरे से बाहर निकल पड़ते हैं। जय चारों तरफ अच्छी तरह सन्नाटा हो गया तो लाडिली ने काले कपडे पहिरे और ऐयारी का बटुआ कमर से लगाने बाद कमरे के बाहर निकल कर इधर उधर टहलना शुभ किया। वह उस कमरे के पास आई जिसके अन्दर मायारानी तरदुद और घबराहट से निदान आने के कारण टहल रही थी। लाडिली छिप कर देखने लगी कि मायारानी क्या कर रही है। थोड़ी देर के बाद मायारानी के मुंह से निकले हुए शब्द लाडिली ने सुने और वे शब्द ये थे- वह इस रास्ते को जानता है वह भेद जिसे लाडिली नहीं जानी आह धनपत की मुहब्बत ने इन शब्दों को सुन कर लाडिली घबडा गई और बेचैनी से अपने कमरे में लौट आने के लिए तैयार हुई मगर उसके दिल ने उसे वहाँ से लौटने न दिया इच्छा हुई कि मायारानी के मुँह से और भी कोई शब्द निकले तो सुने परन्तु इसके बाद मायारानी कुछ ज्यादे बेचैन मालूम हुई और अपनी महसरी पर जाकर लेट रही। आधी घडी से ज्याद न बीती थी कि मायारानी की सास ने लाडिली को उसके सो जाने की खबर दी और लाडिली वहाँ से लौट कर घाग में टहलने लगी। घूमती फिरती और अपने को पेडों की आड में बचाती हुई वह बाग के पिछले कोने में पहुंची जहाँ एक छोटा सा मगर मजबूत बुर्ज बना था। इसके अन्दर जाने के लिए छोटा सा लोहे का दर्वाजा था जिसे उसने धीरे से खोला और अन्दर जाने के बाद फिर चन्द कर लिया। भीतर बिल्कुल अँधेरा था। बटुए में से सामान निकाल कर मोमबती जलाई और उस कोठरी की हालत अच्छी तरह देखने लगी। यह बुर्ज वाली कोठरी वर्षों से ही चन्द थी और इस सबब से इसके अन्दर मकड़ों ने अच्छी तरह अपना घर बना लिया था मगर लाडिली ने इस कोठरी को गन्दी हालत पर कुछ ध्यान न दिया। इस कोठरी की जमीन चौखूटे पत्थरों से बनी हुई थी और छत में छोटे छोटे दो तीन सूराख थे जिनमें से आसमान में जड़े हुए तारे दिखाई दे रहे थे। पहिले तो लाडिली इस विचार में पड़ी कि बहुत दिनों से बन्द रहने के कारण इस कोठरी की हवा खराव होकर जहरीली हो गई होगी शायद किसी तरह का नुकसान पहुंचे मगर छत के सूराखों को देख निश्चिन्त हो गई और मोमबत्ती एक किनारे जमा कर जमीन पर बैठ गई। आधी घडी तक वह सोच विचार में पडीरही इसके बाद देवकीनन्दन खत्री समग्र ४०२