पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४२३

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हल्की सी आवाज के साथ कोन की तरफ जमीन का एक चौखूटा पत्थर किवाड के पल्ले की तरह खुल कर अलग हो गया और नीचे से अपनी असली सुरत में कमलिनी निकल कर लाडिली के सामने खडी हो गई। कमलिनी को देखते ही लाडिली उठ खड़ी हुई और बड़ी मुहय्यत से उसके साथ लिपट कर रोन लगी तथा कमलिनी की आँखें भी आसू की बूंदें गिराने लगीं कुछ देर बाद दोनों अलग हुई और जमीन पर बैठ कर बातचीत करने लगी। लाडिली--मेरी प्यारी बहिन इस समय मेरी खुशी का अन्दाजा कोई भी नहीं कर सकता। मुझे तो इस यात का बडा ही रज था कि तुमने मुझे अपने दिल से भुला दिया जिसकी आशा कदापि न थी मगर आज शाम को तुम्हारे हाथ की लिखी हुई उस चीटी ने मुझमें जान डाल दीप्तो तेजसिह के हाथ मुझ तक पहुंचाई गई थी। कम-नहीं नहीं अभी तक मैं तुझे उतना ही प्यार करती हूँ जितना यहाँ रहने पर करती थी परन्तु इस समय आशा कम थी कि मेरे लिखे अनुसार यहाँ आकर तू मुझसे मिलेगी क्योंकि बडी वहिन मायारानी मेरी जान की ग्राहक हो रही है और तू पूरी तरह उसके कब्जे में है। लाडिली--प्यारी बहिन चाहे मायारानी का दिल तुम्हारी दुश्मनी से भरा हुआ क्यों न हो मगर मरा दिल तुम्हारी मुहब्बत से किसी तरह खाली नहीं हो सकता। तुम्हारी चीठी पाते ही में बेचैन हो गई और हजारों आफतों की तरफ ध्यान न देकर बेखटके यहाँ चली आई। क्या अब भी तुम्हे कम-हॉहॉ मुझे विश्वास है और मै खूब जानती हूँ कि अगर तेरे दिल में मेरी मुहब्बत न होती तो तू मेरे लिखने पर यकायक यहाँ न आती। लाडिली-मुझे इस बात की शिकायत करने का मौका आज मिला कि तुमने इस घर को तिलाजुली देते समय अपने इरादे से मुझे बेखबर रक्खा। कम-तो क्या मेरा इरादा जानन पर तू मेरा साथ देती? लाडिली-(जोर दकर) जघर साथ देती हाय यहाँ रह कर जैसी तकलीफ में दिन काट रही हूँ वह मेरा ही जी जान रहा है। ऐसे ऐसे भयानक काम मुझसे लिए जाते है कि जिसे मै मुख्तसर में कह नहीं सकती लाचार हो कर और झख मार कर सब कुछ करना पडता है क्योंकि इस बात को मैं अच्छी तरह जानती हूं कि मायारानी के गुस्से में पड़ कर मैं अपनी जान भारतवर्ष के किसी घने जगल में छिप कर भी नहीं बचा सकती। . कम-इसका सबब यही है कि तू तिलिस्मी हाल से बिल्कुल बेखबर और भोली है बल्कि वास्तव में रामभाली है। लाडिली-(चौक कर ) क्या तुम जानती हो कि मै राममोली बनने पर लाचार की गई थी? कम-मुझे अच्छी तरह मालूम है अभी तक नानक मेरे साथ रह कर मेरा काम कर रहा है। लाडिली-हाय जब वह तुम्हारे साथ है तो जर एक दिन सामना होगा। उस समय शर्म से मेरी आँखें ऊँची न होंगी उस बेचारे के साथ मैने बडी बुराई की। कम-लेकिन मै खूब अच्छी तरह जानती हूँ कि इसमें तेरा कोई कसूर नहीं। खैर इस बात को जाने दे मुझे तेरी मुहव्यत यहाँ तक इंच लाई है मैं इस समय यह पूछने आई हूँ कि अब तेरा क्या इरादा है क्योंकि इस तिलिस्म की उम्र अब तमाम हो गई और मायारानी अपने बुरे कर्मों का फल भोगा ही चाहती है। लाडिली-(हाथ जोड कर ) मैं यही चाहती हूँ कि तुम मुझे अपने साथ रक्खों जिसमें मायारानी का मुंह देखना नसीब न हो। मैं जानती हूँ कि यह तिलिस्म अब टूटा ही चाहता है क्योंकि इधर थोडे दिनों से बड़ी बड़ी अद्भुत बातें देखने में आ रही है जिनसे खुद मायारानी की अक्ल चक्कर में है, मगर शक है तो इतना ही कि तिलिस्म तोड़ने वाले कुँअर इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिंह इस समय मायारानी के कैदी हो रहे है और कल उन दोनों का सिर जरूर काटा जायगा। कम-यह बात मुझे भी मालूम है मगर सर्वरा होने के पहिले ही मैं उन दोनों को छुडा कर ले जाऊँगी। लाडिली-यदि ऐसा हो तो क्या बात है। वे दोनों कैसे नेक और खूबसूरत हैं। जिस समय मैंने आनन्दसिह को देखा। इतना कह कर लाडिली चुप हो रही उसकी आँखें नीची हो गई और उसके गालों पर शर्म की सुर्सी दौड़ गई। कमलिनी समझ गई कि यह आनन्दसिह को चाहती है। कम-मगर उन दोनों को छुडान के लिए कुछ तुझसे भी मदद चाहती हूँ। लाडिली-तुम्हारी आज्ञा मानने के लिए मैं हर तरह से तैयार हूँ। कम-तू उस कैदखाने की ताली मुझे ला दे जिसमें दोनों कुमार कैद है। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ७ ४०३