पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४२८

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est । कैदी-बेशक पहिले मुझे अपनी जान प्यारी न थी पाँच दिन पीछे भोजन करना मुझे पसन्द न था, कभी कभी तेरी सूरत देखने की बनिस्बत मौत को हजार दर्जे अच्छा समझता था मगर अब मैं मरने के लिए तैयार नहीं हूँ। माया-(हॅस कर) तुझे मेरे हाथ से बचाने वाला कौन है? कैदी-(ढाल दिखा कर ) यह धनपत-(मायारानी के कान में ) न मालूम यह ढाल इसे क्योंकर मिल गई क्या चण्डूल यहाँ पहुँच तो नहीं गया? माया-(धनपत से ) कुछ समझ में नहीं आता। यह ढाल भविष्य बुरा बता रही है। धन-मेरा कलेजा डर के मारे कॉप रहा है। माया (कैदी से ) यह तुझे किसी तरह बचा नहीं सकती और मै तेरी जान लिए बिना नहीं जा सकती। कैदी-खैर जो कुछ तू कर सके कर ले । माया-तू बडा जिद्दी और बेहया है। कैदी-हरामजादी की बच्ची बेहया तो तू है जो घड़ी घड़ी मेरे सामने आती है। इस बात के जवाब में मायारानी ने एक तीर कैदी को मारा जिसे उसने बड़ी चालाकी से ढाल पर रोक लिया, दूसरा तीर चलाया वह भी बेकार हुआ तीसरा तीर चलाया, उससे भी कोई काम न चला। लाचार मायारानी कैदी का मुह देखने लगी। कैदी-तेरे किए कुछ भी न होगा। माया-खैर देगूंगी तू कब तक अपनी जान बचाता है। कैदी-मेरी जान कोई भी नहीं ले सकता बल्कि मुझे निश्चय हो गया कि अब तेरी मौत आ गई। इसका जवाब मायारानी कुछ दिया ही चाहती थी कि एक आवाज ने उसे चौका दिया। कैदी की बात पूरी होने के साथ ही किसी ने कहा वेशक मायारानी की मौत आ गई। दूसरा बयान 1 कैदखाने का हाल हम ऊपर लिख चुके है पुन लिखने की कोई आवश्यकता नहीं। उस कैदखाने में कई कोठरियों थीं जिनमें से आठ कोठरियों में तो हमारे यहादुर लोग कैद थे और बाकी कोठरियों खाली थी। कोई आश्चर्य नहीं यदि हमारे पाठक महाशय उन बहादुरों के नाम भूल गये हों जो इस समय मायारानी के कैदखाने में येगस पड़े हैं अस्तु एक दफे पुन याद दिला देते है। उस कैदखाने में कुँअर इन्द्रजीतसिह, कुँअर आनन्दसिह तारासिह भैरोसिह देवीसिह के अतिरिक्त एक कुमारी भी थी जिसके मुख की सुन्दर आभा ने उस कैदखाने को उजाला कर रक्या था। पाठक समझ ही गये होंगे कि हमारा इशारा कामिनी की तरफ है। यद्यपि वह ऐसी कोठरी मे चन्द थी जिसके अन्दर मर्दो की निगाह नहीं जा सकती थी तथापि कुअर अनन्दसिंह को इस बात पर दाढ़स थी कि उनकी प्यारी कामिनी उनसे दूर नहीं है, मगर कुँअर इन्द्रजीतसिह के रज का कोई ठिकाना न था। वे कुछ भी नहीं जानते थे कि उनकी प्यारी किशोरी कहाँ और किस अवस्था में है। इस कैदखाने से छत के सहारे शीशे की एक कन्दील लटक रही थी। उसी में मायारानी का एक आदमी रोज जाकर रोशनी ठीक कर देता था। ठीक कर देना हम इसलिए कहते है कि उस कैदखाने में अधेरा रहने के कारण दिन रात बत्ती जला करती थी और ठीक समय पर आदमी जाकर उसे दुरुस्त कर दिया करता था। खाने पीने का सामान आठ पहर में एक दफे कैदियों को दिया जाता था। कैदखाने की भयानक अवस्था लिखने में विशेष समय नष्ट करना हम नहीं चाहते क्योंकि हमें किस्सा बहुत लिखना है और जगह कम है। अब हम उस सध्या का हाल लिखते है जिस दिन मायारानी से और चण्डूल से बातचीत हुई थी या जव कमलिनी से लाडिली मिली थी। यों तो तहखाने के अन्दर दिन रात समान था और कैदियों को इस बात का ज्ञान विल्कुल नहीं हो सकता था कि सूर्य कब उदय और कय अस्त हुआ तथापि बाहरी हिसाब से हमें समय लिखना ही पड़ता है। सध्या होने के बाद एक आदमी कैदखाने में आया और कैदियों की तरफ देख कर बोला मायारानी की तरफ से इस समय आप लोगों के पास यह कहने के लिए मैं आया हूँ कि पहर दिन चढने के पहिले ही आप लोग इस दुनिया से उठा दिए जायगे। इसके अतिरिक्त अपनी तरफ से अफसोस के साथ आपको इत्तिला देता हूँ कि राजा वीरेन्द्रसिह और रानी चन्द्रकान्ता को भी हमारी मायारानी ने गिरफ्तार कर लिया है। उन्हीं के सामने आप लोग मारे जायगे और इसके बाद उन दोनों की भी जान ली जायगी। देवकीनन्दन खत्री समग्र ४०८