पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४३

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इसे एक आदमी के हाथ में देकर कहा "यह पुर्जा रनबीरसिह को दो और इस नालायक को ले जाकर जिस मकान में रनबीरसिह है उसी में लोहे के जगले वाली कोठरी में बन्द कर दो।" बालेसिह ने पहाडी के ऊपर से रनबीरसिह को गिरफ्तार तो जरूर किया था मगर अपने घर लाकर उनको बड़े आराम के साथ रक्खा था। एक छोटा सा खूबसूरत मकान उनके रहने के लिये मुकर्रर करके कई नौकर भी काम करने के लिये रख दिये थे और मकान के चारो तरफ पहरा बैठा दिया था 1 मिजाज उनका अभी तक वैसा ही था। उस पत्थर की मूरत का इश्क सिर पर सवार था, घड़ी घडी ठढी सास लेना रोना और बकना उनका बन्द न हुआ था, खाने पीने की सुध अभी तक न थी बल्कि उस पत्थर की तस्वीर से अलहदे होकर उनको और भी सदमा हुआ था। बालेसिह से हरदम लड़ने को मुस्तैद रहते थे मगर उनके सामने जव बालेसिह आता था और उनको गुस्से में देखता था तो हाथ जोड़ के यही कहता था 'मैं तो तुम्हारा तावेदार हू!' इतना सुनने ही से रनवीरसिह का गुस्सा ठढा हो जाता था और अपना क्षत्रिय धर्भ याद कर उसे कुछ नहीं कहते थे. वल्कि किसी न किसी तर्कीब से कह सुन कर बालेसिह उनको कुछ खिला पिला भी आता था। जब ये खाने से इन्कार करते तो बालेसिह कहता कि आप अगर कुछ न खॉयगे तो मैं उस पहाडी पर जाकर उस मनमोहिनी मूरत के टुकड़े टुकडे कर डालूंगा. और अगर आप इस वक्त कुछ खा लेंगे तो मै वह भूरत आपके पास ले आऊगा ! यह सुन रनबीरसिह लाचार हो जाते और कुछ न कुछ खाकर पानी पी ही लेते कभी कभी जक्तबीयत ठिकाने होती तो वे ये बातें भी सोचने लगते कि पहाड़ी पर मुझे अकेला छोड कर मेरा दोस्त जसवन्त कहाँ चला गया? इस बालेसिह ने धोखा देकर मुझे क्यों गिरफ्तार किया? मैंने इसका क्या बिगाड़ा था? तिस पर न तो यह मेरा दोस्त मालूम होता है न दुश्मन क्यों कि कैद भी किये है और खुशामद ओर खातिरदारी भी करता है। जो हो इस बात का तो अफसोस रह ही गया कि मै किसी तरह की लडाई न कर सका और एकाएक धोखे में गिरफ्तार हो गया। आज भी इन्हीं सब बातों को वैठे बैठे रनबीरसिह सोच रहे थे कि आठ दस आदमियों के साथ हथकडी वेडी से जकडे हुए जसवन्तसिह आते दिखाई पडे और उन सभों में से एक आदमी ने बढकर वह पुर्जा रनबीरसिह के हाथ में दिया जा बालेसिह ने अपनी और जसवन्त की बातचीत होने के बारे में लिखा था । रनबीरसिह जत्तवन्त को देखकर बहुत खुश हुए, वह पुर्जा हाथ से जमीन पर रख दिया और जल्दी से उठ कर जसवन्त के साथ लपट गए. बाद इसके उन सिपाहियों से जो इसे कैदी की तरह से लाये थे पूछा, "इसे हथकडी बेडी क्यों डाल रक्खी है ? जब तुम्हारा सर्दार मेरे साथ इतनी नेकी करता है तो उसने मेरे इस दोस्त को इतनी तकलीफ क्यों दे रक्खी है। जिस सिपाही ने रनवीरसिह के हाथ में पुर्जा दिया था उसने जवाब में कहा, "उस पुर्जे को पढने से इसका सवय आपको मालूम हो जायगा जिसे हमारे राजा साहब ने लिख कर आपके पास भेजा है।" रनवीरसिह ने उस पुर्जे को उठा कर पढ़ा और ताज्जुब में आकर सोचने लगे है। यह क्या मामला है ? जसवन्त मेरा दुश्मन क्यों हो गया और यह सब क्या लिखा है । जसवन्त ने कहा है- क्या हुआ जो रनवीरसिह को आपने गिरफ्तार कर लिया शिौक से उसका सर काटिये इसके बाद एक तर्कीब ऐसी बताऊंगा कि मायारानी बड़ी खुशी के साथ आप से शादी करने पर राजी हो जायगी यह सब क्या बात है? कौन महारानी बालेसिह के साथ शादी करने पर राजी हो जायगी, जो मेरे मरने की राह देख रही हैं ? मालूम होता है कि वह पत्थर की मूरत जरूर किसी ऐसी औरत की है जो महारानी वाली जाती है और मुझसे मुहब्बत रखती है। बालेसिह भी उस पर आशिक है और शायद इसी सवय से उसने मुझ गिरफ्तार भी कर लिया हो तो ताज्जुब नहीं। मगर यह ता कभी हो नहीं सकता कि जसवन्त मेरे साथ दुश्मनी करन पर कमर बाधे हा इस पुर्जे के नीचे यह भी तो लिखा है कि मैं खुद आकर आपको समझा दूंगा कि जसवन्त की नीयत खराब हो गई और अब वह आपका पूरा दुश्मन हो रहा है। खैर बालेसिह भी आता ही होगा देखें क्योकर सावित करता है कि मेरी तरफ से जसवन्त की नीयत खराब हो गई। उन सिपाहियों ने अपने सार बालेसिह के हुक्म के मुताबिक जसवन्त को उसी मकान की एक लोहे के जगले वाली कोठरी में कैद कर के ताला लगा दिया और वहाँ से चले गए। रनबीरसिह ने किसी कोन टोका कि जसवन्त को क्यों कैद करते होमगर जब वे लोग उसे कैद करके चले गये तब उठ कर जसवन्त की काठरी के पास जगले के बाहर जा बैठे और बातचीत करने लगे- रनवीर-क्यों जसवन्त तुमने क्यों खुदवखुद आकर इस बालेसिह के हाथ में अपने को फसाया? जसवन्त-मै तो आपको छुडाने की नीयत से आया था, मगर कुछ कर न सका और इसने मुझे गिरफ्तार कर लिया। रनवीर-तो छिप कर क्यों न आये? कुसुम कुमारी १०५१