पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४३२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अपने हाथ में लटकाये सभों के पीछे पीछे आ रहे थे। कमलिनी के कहे मुतायिक तारासिह अब कन्दील लिए हुए आगे आगे चलने लगे। लगमग चीस कदम जाने बाद एक चौमुहानी मिली अर्थात् वहा से चारो तरफ सुरगें गई हुई थी। कमलिनी ने रुक कर इन्दजीतसिह की तरफ देखा और कहा अब यहा से अगर हम लोग चा तो इस तितिरमीमकाल के बाहर निकल जा सकते है। इन्द्रजीतसिह-यह सामने वाला रास्ता कहाँ गया है? कमलिनी-चाप के तीसरे और चौथे दर्जे में जाने का यही रास्ता है ओर थाई तरफ बाली सुरंग उस दूसरे दर्जे में गई है जिसमें मायारानी रहती है। आनन्द-और दाहिनी तरफ जाने से हम लोग कहाँ पहुचेंगे ? कमलिनी-इस तिलिस्मी मका या वाग के बाहर हो जान के लिए यही राह है। इन्दजीत-तो अब तुम हम लोगों को कहा ले जाना चाहती हो ? कमलिनी-जहा आप कहिये। आनन्द-अगर मायारानी के बाग में ले चलो तो हम उसे इसी समय गिरफ्तार कर लें इसके बाद सब काम सहन ही में हो जायगा। कमलिनी-यह काम सहज नहीं है और इसके सिवाय जहा तक ने समझती हूँ माधारानी इस समय अपर कमर मेन होगी या यदि होगी भी तो हर तरह से होशियार होगी। केवल इतना ही नहीं यहा जाने से और भी कई प्रकार का धाया है। एक तो उस याग की चहारदीवारी के बाहर कूद कर या कमन्द लगा कर निकल जाना असम्भव है दूसरे उत्त राग की हिफाजत के लिए पाच सौ सिपाही मुकर्रर इजा हमेशा मुस्तैद और सहज ही में मायारानी के पास पहुंच जाने के लिए तैयार रहते है मायाराणी को गिरफ्तार करके बाग के बाहर ले जाना कठिन है। मेरी समझ में तो आपका एक दफ यहा से बाहर निकल जाना चाहिए। इन्दजीत मगर मैं कुछ और ही चाहता हूँ। कमलिनी-वह क्या? इन्द्रजीत-पदि तुझर्स हो सके तो हमें किसी एसी जगह ले चलोजा इस बाग की सरहद के अन्दर हो और उहादो तीन रोज तक गुप्त रीति स हम लोग रह भी सके । कमलिनी-( कुछ सोच कर ) हा यह हो सकता है। और इस राय को में भी पसन्द करती। लाडिती-(कमलिनी से ) तुमने कौन सी ऐसी जगह सोची है। कम-ऐसी जगह बाग के तीसरे दर्ज में तो गई है बल्कि चौधे दर्ज में भी है। लाडिली-चौथे दर्जे में जाकर दो तीन दिन तक रहना उचित नही क्योकि वह बड़ी भयानक जगह है क्या तुम वहा के भेद अच्छी तरह जानली हो? कम-हरे कृष्ण गोविन्द वहा का हाल जानना क्या खिलवाड़ है? हा एक मकान के अन्दर जाने का रास्ता जरूर मालूम है जहा कोई दूसरा नहीं पहुँच सकता। इन्दजीत-तो फिर उसी जगह हम लोगों को क्यों नहीं ले चलती हो? फम-(कुछ सोचकर ) हा मुझे अब याद आया. इतनी देर से व्यर्थ भटक रही ह अच्छा आप लोग मेरे पीछे पीछे पले आइये। सभों को साथ लिए हुए कमलिनी रवाना हुई। थाड़ी दूर जाने याद एक बन्द दर्वाजा मिला। वह दवाजा लोहे का था मगर यह नहीं मालूम होता था कि वह किस तरह खुलेगा क्योंकि न तो उसमें कही ताली लगाने की जगह थी और न काई जजीर या कुडी ही दिखाई देती थी। दर्याजे के दोनों बगल दीवार में तीन तीन हाथ ऊचे दो हाथी बने हुए थे। ये हाथी चादी के थे और इनके धड़ का अगला हिस्सा कुछ आगे की तरफ बढ़ा हुआ था। एक हाथी के सूड में दूसरे हाथी की सूड गुथी थी। इन दोनों हाथियो के अगले एक एक पैर आगे पढ़े और कुछ जमीन की तरफ इस प्रकार मुड़े हुए थे जिसके देखने से मालूम होता था कि दो सुफेद हाथी क्रोध में आकर सूड मिला रहे है और लड़ने के लिए तैयार है। कम-एक ग्रन्थ के पढने से मुझे मालूम हुआ है कि यह दर्वाजा कमानी के सहारे से गुलता और बन्द होता है और इसकी कमानी इन दोनो हाथियों के पेट में है जिस पर दोनों सूडों के दमाने से दयाप पहुँचता है अस्तु यहा ताफत का काम है। इन दोनों सूडों को जोर के साथ यहा तक झुकाना और दबाना चाहिए कि दर्षाजे के साथ लग जाय। मै देखा चाहती हूं कि आपके ऐयारों में कितनी ताकत है। देवी अगर किसी आदमी के झुकाये यह झुक सकता है तो पहिले मुझे उद्योग करने दीजिए। कमलिनी-आइए आइए लीजिए मै हट जाती हूँ। देवकीनन्दन खत्री समग्र ४१२