पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४३३

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देवीसिह ने दोनों सूडों पर हाथ रख और छाती से अडा कर जोर किया मगर एक बित्ते से ज्यादे न दबा सके और दाजा दो हाथ की दूरी पर था इसलिए दो हाथ दबा कर ले जाने की आवश्यकता थी। आखिर देवीसिह यह कहते हुए पीछे हटे 'यह राक्षसी काम है। इसके बाद और ऐयारों ने भी जोर किया मगर देवीसिह से ज्यादे काम न कर सके। तब कमलिनी कुमारों की तरफ देख कर हसी और बोली सिवाय आप दोनों के यह काम किसी तीसरे से न हो सकेगा। आनन्द-(इन्द्रजीतसिह की तरफ देख कर ) यदि आज्ञा हो तो मैं भी जोर करे? इन्दजीत-क्या हर्ज है तुम यह काम बखूबी कर सकते हो । आज्ञा पाते ही कुअर आनन्दसिह ने दोनों सूडों पर हाथ रख के जोर किया और पहिले ही जोर में दर्वाजे के साथ लगा दिया। यह हाल देखते ही लाडिली ने जोश में आकर कहा 'वाह वाह कैद की मुसीबत उठा कर कमजोर होने पर भी यह हाल है। दर्वाजे के साथ सूडों का लगना था कि हाथियों के चिग्घाडने की हलकी आवाज आई और दर्वाजा जो एक ही पल्ले का था सरसर करता जमीन के अन्दर घुस गया। कमलिनी ने आनन्दसिह से कहा अब सूड को पीछे की तरफ हटाइए मगर पहिले सूड के नीचे से या उसक ऊपर से लाध कर दूसरी तरफ निकला चलिए । हाथ में कदील लिए हुए पहिले तारासिह टप गये और दर्वाजे के उस पार जाखडे हुए तब इन्द्रजीतसिह दर्वाजे के उस पार पहुचे उसके बाद कुअर आनन्दसिह जाया ही चाहते थे कि एक नई घटना ने सब खेल ही विगाड दिया। दर्वाजे के उस पार एक आदमी न मालूम कब से छिपा बैठा था। उसने फुर्ती से आगे बढ़ कर एक लात उस कदील में मारी जो तारासिह के हाथ में थी। कंदील हाथ से छूट कर जमीन पर तो न गिरी मगर बुझ गई और एक दम अधफार हो गया। यद्यपि यह काम उसने बड़ी फुती से किया तथापि इन लोगों की निगाह उस पर पड ही गई लेकिन उसकी असली सूरत नजर न पडी क्योंकि वह काला कपड़ा पहिने और अपने चेहरे को नकाब से छिपाए हुए था। अधेरा होते ही उसने दूसरा काम किया । भुजाली उसके पास थी जिसका एक भरपूर हाथ उसने कुअर इन्द्रजीतसिह के सर पर जमाया। अधेरे के सबब से निशाने में फर्क पड गया। तो भी कुमार के यायें मोढे पर गहरी चोट बैठी। चोट खात ही कुमार ने पुकार कर कहा सब कोई होशियार रहना 'दुश्मन के हाथ में हर्या है और वह मुझे जख्मी भी कर चुका है। यह हाल देख और सुन कर कमलिनी ने झट अपने तिलिस्मी खजर से काम लिया। हम ऊपर लिख आये है कि उसके कमर में दो तिलिस्मीखजर है। उसने एक खजर हाथ में लेकर उसका कब्जा दबाया और उसमें से बिजली की तरह चमक पैदा हुई जिससे कमलिनी के सिवाय जो आदमी वहा थे कोई भी उस चमक को न सह सका और समों ने अपनी अपनी आखें बन्द कर ली। दर्वाजे के उस पार भी उसी तरह की सुरग थी। कमलिनी ने देखा कि दुश्मन अपना काम करके सामने की तरफ भागा जा रहा है मगर खजर की चमक ने उसे भी चौधिया दिया था जिसका नतीजा यह हुआ कि कमलिनी बहुत जल्द ही उसके पास पहुंची और खजर उसके बदन से लगा दिया जिसके साथ ही वह बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ा। खजर कमर में रख कर कमलिनी लौटी और उसने अपने बटुए में से सामान निकाल कर एक मोमबत्ती जलाई तथा इतने में हमारे ऐयार लोग भी दाजे के दूसरी तरफ जा पहुँचे । कुअर इन्दजीतसिह के मोढे से खून निकल रहा था। यद्यपि कुमार को उसकी कुछ परवाह न थी और उनके चेहरे पर मी किसी प्रकार का रजन मालूम होता था तथापि देवीसिह ने जख्म बाधने का इरादा किया मगर कमलिनी ने रोक कर अपने बटुए में से किसी प्रकार के तेल की एक शीशी निकाली और अपने नाजुक हाथों से घाव पर तेल लगाया जिससे तुरन्त ही खून बन्द हो गया। इसके बाद अपने आचल में से थोडा कपडा फाड कर जख्म पर बाधा। उसके एहसान ने कुअर इन्द्रजीतसिह को पहिले ही अपना कर लिया था अब उसकी मुहब्बत और हमदर्दी ने उन्हें अच्छी तरह अपने काबू में कर लिया। इन्द्रजीत । कमलिनी से) तुम्हारे अहसानों के बोझ से मैं दबा ही जाता हूँ। (मुस्करा कर और धीरे से ) देखना चाहिये। सिर उठाने का दिन भी कभी आता है या नहीं। कमलिनी (मुस्करा कर ) बस रहने दीजिये बहुत बातें न बनाइये। आनन्द-मालूम होता है वह शैतान भाग गया? कमलिनी-नही नहीं मेरे सामने से भाग कर निकल जाना जरा मुश्किल है आगे चल कर आप उसे जमीन पर बेहोश पड़ा हुआ देखेंगे। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ४१३