पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४३४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

इन्द्रजीत-इस समय तो तुमने यह काम किया जिस करामात कहना चाहिये ! कमलिनी-मै बेचारी क्या कर सकती हूँ, इस समय तो (खजर की तरफ इशारा करक) इराने घड़ा काम किया। इन्द्रजीत-येशक यह अनूठी चीज है, इसकी चमक ने तो आखें बन्द कर दी कुछ देख भी न सके कि तुमन क्या किया। कमलिनी-यह तिलिस्मी खजर है और इसमें बहुत से गुण है। इद्रजीत सुना चाहता हूँ कि इस खजर में क्या क्या गुण है। बल्कि और कई याते पूछा चाहता हूँ मगर यकायक दुश्मन के पहुंचने से कमलिनी-खैर ईश्वर की मर्जी में सूर्य जारती हूँ कि सिवाय इस शैतान के और कोई यहा तक नहीं आ सकता तिस पर भी इस दर्वाजे को खोलने की इसे सामर्थ्य न थी इसी से चुपचाप दबका हुआ था। मगर फिर भी इसका यहा तक पहुँच जाना ताज्जुब मालूम होता है। इन्द्रजीत-क्या तुम उसे पहिचानती हो? कमलिनी-हा कुछ कुछ शक तो हाता है मगर निश्चय किये बिना कुछ नहीं कह सकती। इन्द्रजीत-जो हो मगर अब हम लोगों को यहा से निकल चलने के लिए जल्दी करना चाहिये। कमलिनी-पहिले इस दर्वाजे को चन्द कर लीजिये नहीं तो इस राइ स दुश्मन क आ पहुचने का डर रहेगा। दर्याजे के दूसरी तरफ भी उसी प्रकार के दो हाथी धने हुए थे। कमलिनी के कहे मुताधिक आनन्दसिह ने जार से सूड को दर्वाजे की तरफ हटाया जिसस उस तरफ पाले हाथियों की सूड ज्यों की त्यों सीधी हो गई और दवाजा भी बन्द हो गया। इन्द्रजीत-मालूम होता है कि इस तरफ से कोई दर्वाजा खोलना चाहे तो इन हाथियों की सूों को जो इस समय दर्वाजे के साथ लगी हुई हैं अपनी तरफ खैच कर सीधा करना पड़गा और ऐसा करने से उस तरफ के हाथियों की सूई दजि के पास आ लगेगी। कमलिनी-अपका सोचना बहुत ठीक है वास्तव में ऐसा ही है। इन्दजीत- अच्छा अब यहा से चल देना चाहिए चलन चलते इस यजर का गुण भी कहो जिसकी करामात मैं अभी देख चुका हूँ। कमलिनी-चलते चलते कहने की कोई जररत नहीं में इसी जगह अच्छी तर समझा कर एक खजर आपके हवाले करती हूँ। उस खजर में जो जा गुण था उसके विषय में ऊपर कई जगह लिखा जा चुका है कमलिनो ने कुअर इन्द्रजीतसिह को सब समझाया और इसके बाद खजर के जोड़ की अगूठी उसके हाथ में पहिना कर एक खजर उनके हवाले किया जिसे पाकर कुमार बहुत प्रसन्न हुए। लाडिली-(कमलिनी से ) एक खजर छाटे कुमार को भी देना चाहिए। कामलिनी--(मुस्करा कर) आपके सिफारिश की कोई जरत नहीं मैं खुद एक खजर छोटे कुमार को दूगी। आनन्द-कब ? कमलिनी-यह दूसरा खजर उसी तरह का मेरे पास है! इसे मैं आपकोअभी दे देती मगर इसलिए रख छोड़ा है कि आप ही के लिए इस घर में अभी कई तरह का काम करना है शायद कभी दुश्मनों के आनन्द-नहीं नहीं जो यह खजर तुम्हार पास रह गया है लेकर मै तुम्हें खतरे में नहीं डाल सकता कल परसों या दस दिन में जब मौका हो तब मुझे देना। कमलिनी-जरूर दूगी अच्छा अप यहा से चलना चाहिये। दोनों कुमार और एयारों को साथ लिए हुए कमलिनी यहा स रवाना हुई और उस ठिकाने पहुंची जहा यह शैतान बेहोश पड़ा हुआ था जिसने कन्दील बुझा कर कुमार को जख्मी किया था ! चेहरे पर से नकाब हटाते ही कमलिनी चौकी और बोली है यह ता कोई दूसरा ही है ! रामझे हुए थी कि दारोगा है किसी तरह राजा वीरेन्दसिह की कैद से छूट कर आ गया होगा मगर इसे तो मैं बिल्कुल नहीं पहिचारती (कुछ रुक कर) उसने मेरे साथ दगा तो नहीं की 'कौन ठिकाना ऐसे आदमी का विश्वास न करना चाहिए मगर मैंने तो उसके साथ ऊपर लिखी बाते कह कमलिनी चुप हो गई और थोड़ी देर तक किसी गम्भीर चिन्ता में डूबी सी दिखाई पड़ी। आखिर कुअर इन्दजीतसिह से रहा न गया. धीर से कमलिनी की उगली पकड़ कर बोले- देवकीनन्दन यत्री समग्र ४१४