पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४३५

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६ इन्द्रजीत-तुम्हें इस अवस्था में देख कर मुझे जान पड़ता है कि शायद कोई नयी मुसीबत आने वाली है जिसके विषय में तुम कुछ सोच रही हो कमलिनी-हा ऐसा ही है मेरे कामों में विघ्न पड़ता दिखाई दता है1 अच्छा मर्जी परमेश्वर की आपके लिए कष्ट उठाना क्या जान तल देने को तैयार हू। (कुछ रुक कर) अव दर करना उचित नहीं यहा से निकलही जाना चाहिए। इन्द्र-क्या मायारानी के इस अनूठे बाग के याहर निकालने को कहती हो? कमलिनी-हा। इन्द-मैं तो सोचे हुए था कि माता पिता को छुडा कर तभी यहा से जाऊगा। कमलिनी-मैंने भी यही निश्चय किया था परन्तु क्या किया जाय सब के पहिले अपने को बचाना उचित है यदि आप ही आफत में फसे रहेंगे तो उन्हें कौन छुडायेगा । इन्द्रजीत यहा की अद्भुत बातों से मैं आजान हूइसलिए जो कुछ करने को कहोगी करना ही पड़ेगा नहीं तो मेरी राय तो यहा से मागने की न थी क्योंकि जब मेरे हाथ पैर खुले है और सचेत हू तो एक क्या पाच सौ से भी डर नहीं सकता। जिस पर तुम्हारा दिया हुआ यह अनूठा तिलिस्मी खजर पाकर एक दफे साक्षात काल का भी मुकाबला करने से वाज न आऊगा। कम--आपका कहना ठीक है मैं आपकी बहादुरी को अच्छी तरह जानती है, परन्तु इस समय नीति यही कहती है कि यहा से निकल जाआ। इन्द्रजीत-अगर ऐसा ही है ता चलो मैं चलता हू। (धीरे स कान में ) तुम्हारी बुद्धिमानी पर मुझे डाह हाता है। कमलिनी-(धीरे से ) डाह कैसा? इन्द्रजीत--( दो कदम आगे ले जाकर ) डाह इस बात का कि वह बड़ा ही भाग्यशाली होगा जिसके तुम पाले पड़ोगी। इसके जवाब में कमलिनी ने कुमार को एक हलकी चुटकी काटी और धीरे से कहा मुझे तो तुमसे बढ कार भाग्यशाली कोई दिखाई नहीं पड़ता मगर आह कमलिनी की इस बात ने ता कुमार को फडका दिया लाकेन इस मगर के शब्द ने भी बड़ा अन्धेर किया जिसका सबब हमारे मनचल पाठक स्वयं समझ जायेंगे क्योंकि व कमलिनी और कुअर इन्द्रजीतसिह की पहली बातें अभी भूले न होंगे जो तालाव के बीच वाल उस मकान में हुई थी जहा कमलिनी रहा करती थी कमलिनी-( देवीसिह से) इस आदमी को जो बेहोश पड़ा है उठा के ले चलना चाहिए। देवी-हा हा इसे मै उता कर ले चलूगा। इन्द्रजीत-शायद हमलोगों को फिर लौटना पडे क्योंकि बाहर निकलने का रास्ता पीछे छोड आये है। कमलिनी-हा सुगम रास्ता ता यही था मगर अब में उधर न जाऊगी कौन ठिकाना हाथी वाले दर्वाजे के उस तरफ दुश्मन लोग आ गये हों क्योंकि कैदखाने की दीवार आप तोड ही धुके हैं और उधर वाली सुरग का मुह खुला रहने के कारण किसी का आना कठिन नहीं है। इन्दजीत-तव दूसरी राह कौन सी है? क्या उधर चलोगी जिघर से यह दुश्मन आया है। कमलिनी नहीं उधर भी दुश्मनों का गुमान है आइये मैं एक और ही राह से ले चलती हूँ। आगे आग कमलिनी और उसके पीछे दोनों कुमार और ऐयार लोग रवाना हुए। यहा भी दोनों तरफ दीवारों में सुन्दर तस्वीरें बनी हुई थीं। दस बारह कदम आगे जाने बाद बगल की दीवार में एक छोटा सा खुला हुआ दर्वाजा था जिसे देख कर कमलिनी ने इन्दजीतसिह से कहा यह आदमी इसी राह से आया होगा क्योंकि अभी तक दर्वाजा खुला हुआ है मगर मै दूसरी ही राह से चलूगी जो जरा कठिन है।' कुमार-मै तो कहता है कि इसी राह से चला दर्वाजे पर दस बारह दुश्मन मिल ही जायगे तो क्या होगा । कमलिनी-खैर तब चलिये। सब कोई उस राह से बाहर हुए और कमलिनी न उस दर्वाज को जा एक खटके के सहारे खुलता और बन्द होता था वन्द कर दिया। उस तरफ भी थोडी दूर सुरग में ही जाना पड़ा। जब सुरग का अन्त हुआ तो छोटी छोटी सीढिया ऊपर चलने के लिए मिली। कमलिनी ने ऊपर की तरफ देखा और कहा यहा का दर्वाजा बन्द है। सबके आगे कमलिनी और फिर दोनों कुमार और ऐयार लोग ऊपर चढे। ये सीढिया घूमती हुई ऊपर गई थीं मालूम होता था कि किसी बुर्ज पर चढ़ रहे है। जब सीढियों का अन्त हुआ तो एक चक्कर महिए की तरह बना हुआ दिखाई दिया जिसे कमलिनी ने चार पाच दफे - चन्द्रकान्ता सन्तति भाग