पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४३७

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दि 1 है मगर कुछ कर नहीं सकते थे माया-ऊधम कसरी बिहारी-इस केदखाने के अन्दर स दीवार लोडने की अग्वाज आ रही थी मालूम होता है कि कैदियों के हथकडी वेडी किसी खोल दी। माया-मगर तुम्हारी बातों से यह जाना जाता है कि अभी कैदी लाग इसके अन्दर ही है। मैं सोच रही थी कि जब ताली लेकर लाउिला चली गई तो कही कदिनों को भी छुडा न ले गई हो। बिहारी नहीं नहीं कोदी बेशक इसके अन्दर थ और आपके जाने वाद कैदियों के बातचीत की कुछ कुछ आवाज भी आ रही थी कुछ देर बाद दीवार ताडने की आहट मालूम हान लगी मगर अब मैं नहीं कह सकता कि कैदी इसके अन्दर है या निकल गय क्योंफि थाडी दर सभीतर सन्नाटा सा जान पड़ता है न तो किसी की बातचीत की आहट मिलती हैन दीवार ताड़ने की। माया-(कुछ साच कर) दीयार तोड़ कर इस बाग के बाहर निकल जाना जरा मुश्किल है मगर मुझे ताज्जुब मालूम हाता है कि उन कैदियों की हथकडी बेडी क्सिने खाली और दीवार तोडने का सामान उन्हें क्योंकर मिला शायद तुम्ह धोखा हुआ हो। रिहारी-नहीं नहीं मुझ धोखा नहीं हुआ भै पागल नहीं हूँ। हरनाम-क्या हन लग इतना भी नहीं पहिचान सकन कि यह दीवार लाडने की आवाज है? माया-(ऊची सास लकर हाय न मालूम मेरो क्या दुर्दशा हागी खिर कैदियों के बारे में मैं पीछ सोचूगी पहिले तुम लोगों से एक दूसरे काम में मदद लिया चाहती हूँ। बिहारी-वह कौन सा काम है? माया-मैंने जिस काम के लिए उसे कैद किया था वह न हुआ और न आशा ही है कि वह कोई भेद बताएगा अस्तु अब उसे मार कर टण्टा मिटावा चाहती हू । विहारी-हां आपन उसे जिस तरह की तकलीफ द रक्खी है उससे तो उसका मर जाना ही उत्तम है। हाय वह बचार। इस योग्य नहीं था। हाय आपकी बदौलत भेरा भी लाक परलोक दोनों बिगड़ गया एसे नेक और होनहार मालिक के साथ आपक बहकाने से जो कुछ मैन किया उसका दुख जन्म भर न भूलूगा । माया-और उन नेकियों का याद न करागे जो मेरे तुम लोगों के साथ की थीं। विहारी-खैर अब इस विषय पर हुज्जत करना व्यर्थ है जब लालच में आकर बुरा कर ही चुके तो अब रोना काह का हरनाम--मुझ भी इस बात का बहुत ही दुख है देखा चाहिए क्या होता है। आज कल जो कुछ देखने सुनने में आ रहा है उसका नतीजा अवश्य ही बुरा होगा। माया-(लम्बी सास लेकर) खैर जो होगा दखा जायगा मगर इस समय यदि सुस्ती करोगे तो गरी जान तो जायगी तुम लोग भी जीते न बचोगे। बिहारी-यह ता हम लोगों को पहिले ही मालूम हो चुका है कि अब उन बुरे कर्मों का फल शीघ ही भोगना पटगा मगर खैर आप दर कहिए कि हम लोग क्या करें ? जान बचाने की क्या कोई सूरत दिखाई पड़ती है ? माया-मेरे साथ बाग के चौथे दर्जे में चल कर पहिले उस कैदी को मार कर छुट्टी करो तो दूसरा काम बताऊ । हरनाम-नहीं नहीं नहीं यह काम मुझसे न हा सकेगा। बिहारीसिह से हो सके तो इन्हें ले जाइए। मैं उनके ऊपर ही नहीं उठा सकता। नारायण नारायण इस अनर्थ का भी कोई ठिकाना है। माया-(चिट कर) हरनाम क्या तू पागल हो गया है जो मेरे सामन ऐसी बेतुकी बातें करता है? अदब और लेहाज को भी तूने एकदम चूल्हे में डाल दिया क्या तू भरी सामर्थ्य का भूल गया ? हरनाम-नहीं मैं आपकी सामर्थ्य को नहीं मूला बल्कि आपकी सामर्थ्य ने स्वय आपका साथ छोड़ दिया। विहारीसिह और हरनामसिह की बातें सुनकर मायारानी को क्रोध तो बहुआया परन्तु इस समय क्रोध करने का मौकान देख कर वह तरह दे गयी। मायारानी यड़ी ही चालबाज और दुष्ट औरत थी समय पडन पर वह एक अदाका बाप बना लेती और कामन होन से किसी को एक तिनके बराबर भी न मानती। इस समय अपने ऊपर सकट आया हुआ जान उसने दामा ऐयारों को किसी तरह राजी रखना ही उचित समझा। माया-क्यों हरनारसिह तुमने कैसे जाना कि मेरी सामर्थ्य न मेरा साथ छोड़ दिया? हरनाम--वह ता इसी से जाना जाता है कि बस कैदी की जान लेने के लिए हम लोगों को ले जाया चाहती हो। उस वेचारे का ता एक अदना लडका भी मार सकता है। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ४१७ २७