पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४४

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जसवन्त-(कुछ सोच कर) भुल हो गई, मैन सोचा था कि जाहिर होकर चलूगा और तुम्हारा दुश्मन और उसका दोस्त बनके काम निकाल लूंगा मगर उस शेतान के बच्चे से कारीगरी न चली। पर आपको तो उसने इस तौर पर रक्या है कि कैदी मालूम ही नहीं पड़ते । रनबीर-भला यह तो बताओ कि तुम्हें कुछ मालूम हुआ कि वह पत्थर की मूरत किसकी है? जसवन्त-हाँ घूम फिर कर दरियाफ्त करने से मुझ मालूम हो गया कि उसी पहाडी से थोड़ी दूर पर एक रानी रहती है और उसी ने अपनी और आपकी मूरत उस पहाडी पर बनवाई है। यह सुन कर मुझे यकीन हो गया कि वह जरूर आपसे मुहब्बत रखती है तभी ता फँसान के लिए वे दोनों मूरतें उसन यावाइ है। यह साच कर मैं उसक पास गया। मुझे उम्मीद थी कि जब आपके गिरफ्तार होने का हाल उससे कहगा तो वह आप के छुडाने की जरूर कोशिश करेगी और मुझे भी मदद देगी, नगर कुछ नहीं वह ता निरी बमुरोवन निकली !सब बातें सुन साफ जवाब दे दिया और बोली कि मैं क्या कर सकती हू, मुझसे लवीरसिह से क्या पासा जो उसको छुडाऊ ऐसे ऐसे सैमारतवीरसिह पारे गारे फिरते है । रनवीर-(ऊची सॉस लेकर) तीफा ही है, भला इतना तो पता लगा कि वह पत्थर की मूरत झूठी न श्री खैर जो भी हो मैं तो उसके दर्वाज को खाक ही बटारा करूगा, इसी में मेरी इज्जत है। रनबीरसिह और जसवन्तसिह में बातें हो ही रही थीं कि कई आदमियों को साथ लिये बालेसिह उसी जगह अप पहुचा और रनबीरसिह को जसवन्त से बातें करते देख बोला-- “पहाराजकुमार आप इस नमकहराम से क्या बातें कर रहे हैं यह पूरा घेईमान और पाजी है, इसका तो मुह न देखना चाहिये। रनवीर-यह मेरा पुराना दोस्त है मुझे बिल्कुल उम्मीद नहीं कि यह मेरे साथ बुराई करेगा। वाल-आप भूलते हैं जो ऐसा सोचते हैं, आज ही इसने मेरे सामने आकर कैमी कैसी बातें कहीं आपको ता मेने लिख ही दिया था। क्या पढ़ा नहीं ! रनबीर-मैने पढा मगर यह कहता है कि मैं अकेला या इसलिए आपके छुडाने की सिवाय इसक और काई तीव न देखी कि जाहिर में तुम्हारा दुश्मन और बालेतिह का दोस्त बनूँ ! बाले-कभी नहीं यह झूठा है मैं खूल समझ गया कि जिस पर आए आशिक है यह खुद भी उत्ती पर आशिक ह) गया है और चाहता है कि आपकी जान । रनबीर-होगा मगर मुझे विश्वास नहीं होता । बाले- अच्छा एक काम कीजिये, आप अपने हाथ से एक चीठी महारानी को लिख कर पूछिये कि जसवन्त तुम्हारे पास गयाथा या नहीं और तुमने इसकी नीयत कैसी पाई ? उस खत को मैं अपने आदमी के हाथ भज कर उसका जवाब मगा देता हू रनबीर-अहा, अगर ऐसा करो तो में जन्मभर तुम्हारा ताबेदार बना रहू भला मेरी ऐसी किरमत कहाँ कि मैं उनके पास धीठी भेजूं और जवाब आ जाय हाय जिसकी सूरत देखने को उम्मीद नहीं, उसके पास मेरी चीठी जाय और जवाब आवे तो मरे लिये इससे बढके और क्या खुशी की बात होगी ।। बाले-जरूर जवाब आवेगा मगर एक बात है---आप उस चीठी में यह भी लिख दीजियेगा कि बालेसिह ने मुझे किसी तरह की तकलीफ नहीं दी है बड़े आराम के साथ रक्खा है, और भाई की तरफ मुझको मानता है। रनबीर-हॉ हॉ.जरूर मैं ऐसा लिख दूंगा जब तुम मेरे साथ इतनी नेकी करोगे कि मेरी चीठी का जवाब भगा दोगे तो क्या मैं तुमको अपने भाई के बराबर न समझूगा 7 जसवन्त-(चिल्ला कर) मगर यह कैसे मालूम होगा कि महारानी ही इस पत्र का जवाब दिया है ? 'क्या जाल बना कर किसी गैर से चीती का जवाब लिखवा के ला दो, तब? बाले-(गुस्से में आकर) बेइमानों को ऐसी ही सूझती है हमलोग क्षत्रिय वश में पैदा होकर जाल करने का नाम भी नहीं जानते। जरूर इस पत्र का उत्तर महारानी अपने हाथ से लिखेंगी और अपनी खास लौडी के हाथ भेजगी क्योंकि इनके लिये वह अपनी जान भी देने को तैयार है। क्या तुमने महारानी की सूरत देखी है ? जसवन्त-हा, मैं उन्हें देख चुका है, वह इतनी मुरौक्त वाली नहीं . बाले-(हस कर) बस बस अब मुझे पूरा विश्वास हो गया। ऐसा तो कोई दुनिया में है ही नहीं जो उसे देखे और अपनो नीयत साफ बनाये रहे । जाने तुम देवकीनन्दन खत्री समग्र १०५२