पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४४१

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art - . भूत-(खजर की तरफ इशारा करके ) यह तिलिस्मी खजर छोड कर जा मागे सो तझ दू। नागर-म तेरा खजर नहीं चाहती में कवल इतना ही चाहती हूं कि तू वीरेद्रसिह की तरफदारी छाडदै और हम लोगों का साथी बन जा। फिर तुझे हर तरह की खुशी मिल सकती है। तू करोड़ों रुपये का धनी हो जायगा और दुनिया में बड़ी खुशी से अपनी जिन्दगी वितावेगा। भूत-यह मुश्किल बात है ऐसा करने से मेरी सख्त बदनामी ही नहीं हागी बल्कि में बडी दुर्दशा क साथ मारा जाऊगा। नागर-तुम्हारा कुछ न विगडेगा मैं खूब जानती हू कि इस समय जिस सूरत में तुम हो वह तुम्हारी असली सूरत नहीं है और कमलिनी से तुम्हारी नइ जान पहिचान है जरूर कमलिनी तुम्हारी असली सूरत से वाकिफन होगी इसलिए तुम सूरत बदल कर दुनिया में घूम सकते हो और कमलिनी तुम्हारा कुछ भी नहीं कर सकती। भूत-(हस कर ) कमलिनी को मेरा सव भेद मालूम है और कमलिनी के साथ दमा करना अपनी जान के साथ दुश्मनी करना है क्योंकि वह साधारण औरत नहीं। वह जितनी ही खूबसूरत है उतनी ही बडी चालाक धूर्त विद्वान और एयार भी है और साथ ही इसके नक और दयावान भी। ऐसे के साथ दगा करना बुरा ह। ऐसा करने से दूसरों की क्या कहूँ खास मेरा लडका नानक ही मुझ पर घृणा करेगा। नागर-मानक जिस समय अपनी माँ का हाल सुनेगा बहुत ही प्रसन्न होगा बल्कि मंरा अहसान मानेगा रहा तुम्हारा कमलिनी से डरना तो वह बहुत बड़ी भूल है महीने दो महीने के अन्दर ही तुम सुन लार्ग कि कमलिनी इस दुनिया से उठ गई और यदि तुम हम लोगों की मदद करागे तो आठ ही दस दिन में कमलिनी का नाम निशान मिट जायगा। फिर तुम्हें किसी तरह का डर नहा रहेगा। और तुम्हारे इस खजर का मुकाविला करने वाला भी इस दुनियों में कोई न रहेगा। तुम विश्वास करो कि कमलिनी बहुत जल्द मारी जायगी और तब उसका साथ देने से तुम सूखे ही रह जाओगे। मैं तुम्हें फिर समझा कर कहती हूँ कि हमलोगों की मदद करो। तुम्हारी मदद से हम लोग थोडे ही दिनों में कमलिनी राजा वीरेन्द्रसिह और उनके दोनों कुभारों का मौत की चारपाई पर सुला देंगे। तुम्हारी खूबसूरत प्यारी जोरूँ तुम्हारे बगल में होगी करोडों रुपये की सम्पति के तुम मालिक होग और मै भी तुम्हारी रडी बनकर तुम्हारी बगल गर्म करेंगी क्योंकि मैं तुम्हें दिल से चाहती हूँ, और ताज्जुब नहीं कि तुम्हें विजयगढ का राज्य दिला दूं। मैं समझती हूँ कि तुम्हें मायारानी की ताकत का हाल मालुम होगा। भूत-हा हा मैं मशहूर मायारानी को अच्छी तरह जानता हू, परन्तु उसके गुप्त भेदों का हाल कुछ कुछ सिर्फ कमलिनी की जुबानी सुना है अच्छी तरह नहीं मालूम ! नागर-उसका हाल मै तुमसे कहूँगी वह लाखों आदमियों को इस तरह मार डालने की कुदरत रखती है कि किसी को कानों कान मालूम न हो। उसक एक जरा से इशारे पर तुम दीन दुनिया से बेकार कर दिये गये तुम्हारी जोर छीन ली गई ओर तुम किसी को मुहुँ दिखाने लयाक न रहे । कहो जो मैं कहती हूँ वह ठीक है या नहीं? भूत-हा ठीक है मगर इस यात को मैं नहीं मान सकता कि वह गुप्त रीति से लाखों आदमियों को मार डालने की कुदरत रखती है अगर ऐसा ही होता तो मीरेन्द्रसिह इत्यादि तथा मुझे मारने में कठिनता ही काहे की थी ? नागर-यह कौन कहता है कि चीरेन्दसिह इत्यादि के मारने में उस कठिनता है ।इस समय बीरेन्दसिह उनके दोनों कुमार किशोरी कामिनी और तेजसिह इत्यादि कई ऐयारों को उसने कैद कर रक्खा है जब चाहे तब मार डाले और । तुम्हें तो वह एसा समझती है जैसे तुम एक खटमल हा हा कभी कभी उसके ऐयार धोखा खा जाय तो यह बात दूसरी है। यही सबब था रिक्तगथ हम लोगों के हाथ में आकर इत्तिफाक से निकल गया परन्तु क्या हर्ज है आज ही कल में वह किताब फिर मायारानी क हाथ में दिखाई देगी।यदि तुम हमारी बाल न मानोगें तो कमलिनी तथा बीरेन्द्रसिह इत्यादि के पहिल ही मारे जाओगे हम तुम से कुछ काम निकालना चाहते है इसलिए तुम्हें छोडे जा रहे है। फिर जरा सी मदद के बदले में क्या तुम्हें दिया जाता है इस पर भी ध्यान दो और यह मत सोचो की कमलिनी ने मुझे और मानोरमा को कैद कर लिया तो कोई बड़ा काम किया इससे भायारानी का कुछ भी न बिगड़ेगा और हम लोग भी ज्यादे दिन तक कैद में न रहेगें। जा कुछ मैं कह चुकी है उस पर अच्छी तरह विचार करो और कमलिनी का साथ छोडो नहीं पछताओगे और तुम्हारी जोरु भी बिलख बिलख के मर जायगी) दुनिया में ऐश व आराम से बढकर कोई चीज नहीं है सो सब कुछ तुम्हें' दिया जाता है और यदि यह कहां कि तेरी बातों का मुझे विश्वास क्योंकर हो तो इसका जवाब अभी से यह देती हूं कि मैं तुम्हारी दिलजमई ऐसी अच्छी तरह से कर दूंगी कि तुम स्यय कहा कि हाँ मुझे विश्वास हो गया। (मुस्करा कर और नखरे के साथ भूतनाथ की अगुली दया कर ) मैं तुम्हें चाहती है इसलिए इतना कहती हू नहीं तो मायारानी को तुम्हारी परवाह न थी तुम्हारे साथ रह कर मैं भी दुनिया का कुछ आनन्द ले लूगी। नागर की बातें सुन कर भूतनाथ चिन्ता में पड़ गया और देर तक कुछ सोचता रह गया। इसके बाद वह नागर की चन्द्रकान्ता सन्तलि भाग ८ ४२१