पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४४२

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दि तरफ देखकर बोला खैर तुम जो कुछ कहती होभ वारूगा और अपनी प्यारी स्त्री के साथ तुम्हारी मुहब्बत की भी कदर करेगा। इतना सुनते ही नागर ने झट भूलनाथ के गल में हाथ डाल दिया और तब दोनों प्रेमी हसते हुए उस छाटी पहाड़ी के ऊपर चढ़ गये। पॉचवॉ बयान दिन दोपहर से ज्याद चढ़ चुका है मगर मायारानी को खाने पीने की कुछ भी सुधनहीं है। पल पल में उसकी परेशानी बढती ही जाती है। यपि विहारीसिह हरनामसिह और धनपत ये तीनो उसके पास मौजूद है परन्तु समझाने बुझाने की तरफ किसी का भी ध्यान नहीं है। उसे कोई भी नहीं दिलासा देता कोई धीरज नहीं बधाता और कोई भी या विश्वास नहीं दिलाता कि तुझ पर आई हुई बला टल जायेगी यहा तक कि किसी के मुह सया भी नहीं निकलता की सब कर हमलोग ऐयारी के फन में होशियार है कोई न कोई काम अवश्य करेंगे। ऊपर के बयानों को पढ़ कर पाठक समझ गय होंगे कि मायारानी की तरह उसकी धनपत और उसके दोनो चार विहारीसिह तथा हरनामसिह भी किसी भारी पाप के बोझ से दबे हुए है और ऊपर की घटनाओं ने तीनों को भी जान सुखा दी है। य तीनों ही यदहोस और परेशान हो रहे है इन तीनों को भी अपनी अपनी फिक्र पड़ी है और इस समय इन तीनों के अतिरिक्त कोई चौथा आदमी मायारानी के सामने नहीं है फिर उसे कौन समझा-बुझाये ? इनके सिवाय कोई चौथा आदमी उसक भेदो को जानता भी नहीं और न वह किसी का अपना भेद बताने का साहस कर सकती है। मायारानी की उदासी से चारों तरफ उदासी फैली हुई है। लौडियों नौकरों और सिपाहियों को भी चिन्ता ने आकर घेर लिया और कोई भी नहीं जानता कि क्या हुआ या क्या होने वाला है। बहुत देर तक चुप रहने वाद बिहारीसिह ने सिर उठाया ओर मायारा) की तरफ देय कर कहा- विहारी-एफ तो वीरेन्द्रसिह के ऐयार स्वय धुरधर है जिनका मुकाबला काई कर नहीं सकता दूसरे कमलिगो के मदद से उन लोगों का साहस और भी बढ़ गया है। धनपत-इसमें कोई सन्देह नहीं कि आज कल जाखराची हो रही है वह सब कमलिनी ही की बदौलत है जिसका हम लोग कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते । माया-अफसोस वह कम्बख्त इस तिलिस्मी बाग क अदर आकर अप काम कर जाये और किसी को कानों कान खबर न हो। हाय न मालूम हम लोगों की क्या दुर्दशा होने वाली है। क्या कर कहा भाग कर जाऊ अपनी जान बचाने के लिए क्या उद्याग करूं। धनपत-अभी एक दम स हताश न हो जाना चाहिए बल्कि देखना चाहिए कि इस मुनादी का क्या असर रिआया के दिल पर होता है। माया-हा मुझे जरा फिर से समझा के कह ता सही कि मुनादी वाले को क्या कह के पुकारने की आजा मेरी तरफ से दी गई है ? उस समय में आपे में बिल्कुल न थी इससे कुछ समझ मे न आया। धनपत-आपकी तरफ से मैने दीवान साहब को हुक्म दिया जिसका बन्दोपत्त उन्होंने पूरा पूरा किया। मेरे सामने ही उन्होंने चार झुग्गी वालों को तलब किया और समझा कर कह दिया कि वे लोग शहर भर में पुकार कर इस बात की मुनादी कर दे कि सरकारी ऐयारों को मालूम हुआ है कि वीरेन्दसिह का एक ऐयार राजा गोपालसिह की सूरत वन कर शहर में आया है जिहं वैकुण्ठ पधारे पाच वर्ष के लगभग हो चुके है और रिआया को भडकाया चाहता है। जो कोई उस कम्बख्त का सिर काट कर लायेगा उसे एक लाख रुपया इनाम दिया जायगा । माया-ठोक है मगर देखा चाहिए इसका नतीजा क्या निकलता है। विहारी-दो दिन के अन्दर ही अन्दर कुछ काम न चला तो समझ लेना चाहिए की इस मुनादी का असर उल्टा ही h होगा। भाया-खेर जो कुछ नसीव मै लिखा है भोगूगी इस समय बदहवास होने से तो काम नहीं चलेगा। मगर यह तो कहो कि तुम दोनों ऐयार ऐसी अवस्था में मेरी सहायता किस रीति से करोगे? विहारी-मेरे किये तो कुछ न होगा। मैं खूब समझ चुका हूं कि वीरेन्द्रसिह के ऐगारो तथा कमलिनी का भुकावला में किसी तरह नहीं कर सकता। देखो तेजसिह ने मेरा मुँह ऐसा काला किया कि अभी तक रंग साफ नहीं होता।न मालूम उसे कैसे देवकीनन्दन खत्री समग्र ४२२