पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४४३

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कैसे मशाल याद है। इसके अतिरिक्त तुम्हे अपने लिए शायद कुछ उम्मीद हो मगर मैता बिल्कुल ही नाउम्मीद हा चुका हू और अब एक घण्टे के लिए भी यहा ठहरना बुरा समझता हूँ। माया-क्या तुम वास्तव में वैसा ही करोगे जैसा कह चुके हो ? बिहारी-हा शिकमैं अपनी राय पक्की कर चुका टू मै इसी समय यहा से चला जाऊगा और फिर मेरा पता कोई भी न लगा सकेगा। माया (एरनामासह की तरफ देख क) और तुम्हारी क्या राय है ? हर-मेरी भी वही राय है जा विहारीसिह की है। भाया-श्व समझ रझकर मेरी यादों का जवाब दो। हरनाम-जो कुछ समझना था समझ चुका । माया-(कुछ साच कर) अच्छा मै एक तर्फीव बताती है अगर उसस कुछ काम न चले तो फिर जो कुछ तुम्हारी समझ में आवे करना या जहा जी चाहे जाना। विहारी-अब उद्योग करा वृथा हे मरे किये कुछ भी न होगा ! माया-नहीं नहीं घबराओ मत तुम जानते हो कि मै इस तिलिस्मा की रानी हू और इस तिलिस्म में बहुत सी अद्भुत चीजे है मै तुम दोनों को एक चीज देती हूँ जिसे देख कर और जिसका मतलय समझ कर तुम दानों स्वय कहोंगे कि कोई हर्ज नहीं अब हम लोग यात पात में लाखों आदिमयों की जान ले सकते हैं। हरनाम-पशक तुम इस तिलिस्म की रानी हो और तुम्हार अधिकार में बहुत सी चीजें हैं परन्तु जब तक हम लाग उस वस्तु का देख नहीं ले जिसके विषय में तुम कह रही हो तब तक किसी तरह का वादा नहीं कर सकत । माया मै भी ता यही कह रही हूतुन दानों मेरे साथ चलो और उस चीज का दस ला फिर अगर मन भरे ता मरा सासदो नहीं तो जहा जी चाहे चले जाओ। हरनाम-खर पहल देख ला सहो वह कौन सी अनूठी धीज है जिसपर तुम्ह इतना मरासा है। माया-हा मेरे साथ चलो मैं अभी वह चीज तुम दोनों के हवाल करती है। मायारानी उठ खडी हुइ और धनपत तथा दोगों ऐयारों को साथ लिए हुए वहा से रवाना हुइ। याग मे धूमती हुई यह उस बुर्ज क पास गई जा वाग के पिछले कान में था और जिसमें लाडिली आर कमलिनी की मुलाकात हुई थी। उस युज क बगल ही में एक और कोठरी स्याह पत्थर स बनीहुई थी मगर यह मालूम न होता था कि उसका दवाओ किधर स ह क्याकि पिछली तरफ ता बाग की दीवार थी और तीनो तरफ वाली काठरी की रगाह दीवारी मे दवाज का कोई निशान न था। मायारानी न विहारी स कहा कान्द लगाओ क्योंकि हम लोगों को इस कोठरी की छत पर चलना होगा। बिहारी सिंह ने वैसा ही किया। सबके पहिले मायारानी कमन्द के सहारे उस कोटरी पर चढ़ गई आर उसके बाद धनपत और दानो एयार भी उसी छत पर जा पहुच । ऊपर जाकर दोनों ऐयारो न देखा कि छत के बीचों बीच में एक दर्वाजा ठीक वैसा ही है जैसा प्राय तहखानों के मुह पर रहता है। वह दवाजा लकडी का था मगर उस पर लोहे की चादर मढी हुइ थी और उसमें एक साधारण ताला लगा हुआ था ! मायारानी न हरनामसिह से कहा यह ताला मामूली है इसे किसी तरह खोलना चाहिए। बिहारीसिह अपने ऐयारी के बटुए में स लोहे की एक टेढी सलाई निकाली और उसे ताले के मुहँ में डाल कर ताला खोल डाला इसक बाद दर्वाजे का पल्ला हटा कर किनारे किया। मायारानी ने दोनों ऐयारों को अन्दर जाने के लिए कहा मगर विहारी ने इनकार किया और कहा पहले आप इसके अन्दर उतरिये तब हम लोग इसके अन्दर जायेगे क्योंकि यहा की अद्भुत बातों से हम लागअब बहुतडर गये है लाचार होकर मायारानी कमन्द के सहारे उस कोठरी के अन्दर उतर गई और इसके बाद धनपत और दोनों ऐयार भी नीचे उतर गये। ऊपर का दर्याजा खुला रहने उस से कोटरी के अन्दर चादनी पहुच रही थी। यह कोठरी लगभग बीस हाथ चौडी और इससे कुछ ज्यादे लम्बी थी यहा की जमीन लकड़ी की थी और उस पर किसी तरह का मसालाचदा हुआ था कोठरी के बीचों बीच में एक छोटा सा सन्दुक पड़ा हुआ था। धापत का हाथ पकड़ मायारानी एक किनारे खड़ी हो गई और एयारो की तरफ देख कर बोली 'तुम दानों मिलक इस सदूक को मेरे पास लाओ। हुक्म के मुताधिक दांगों ऐगार उस सन्दूक के पास गए मगर सन्दूक का कुण्डा पकडके उठाने का इरादा किया ही था की उस जमीन का एक गोल हिस्सा जिस पर दानों ऐयार खडे थे किवाड के पले की तरह एक तरफ से अन्दर की तरफ यकायफ धस गया और वेदोनों ऐयार जमीन के अन्दर जा रहे साथ ही एक आवाज ऐसी आई जिससुनने से धनपत कोमालूम होगया कि दोनों ऐयार नीचे जल की तह तक पहुच गये। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ४२३