पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४४५

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Qey यह सुनकर कि भूतनाथ अब हर लोगों का पक्षपाती हो गया और नागर के साथ आया है मायारानी बहुत ही खुश हुइ और उसे एक प्रकार की आशा वध गई। उसने धनपत की तरफ देखकर कहा ताज्जुब नहीं कि अब वह चला भेरे मिर से टल जाए जिसके टलने की अशा न थी। नागर-आपन अपना हाल तो कुछ कहा ही नहीं यह जानन के लिए मरा जी येथैन हा रहा है कि आप क्यों उदास हो रही है और आप पर क्या वला आई है ? माया-थोड़ी देर में तुझे सर कुछ मालूम हो जाएगा पहिले भूतनाथ को मरे पास बुला ला मैं स्वय उससे कुछ यात किया चाहती है। नागर-नहीं नहीं पहिले आप अपना कुल हाल मुझस कहिये क्योंकि मेरी तबीयत घबडा रही है। मायारानी ने अपना चिल्फाल हाल अर्थात तेजसिह का पागल बन के जाना उन्हें बाग के तीसरे दर्जे में कैद करना चण्डूल का यकायक पहुचना और उसकी बातें तथा लाडली का दगा दे जाना आदि नागर से कहा मगर अपने पुराने कैदी के छूटन का और दोनों ऐयारों के मार डालने का हाल छिपा रक्खा हाउसके बदले में इतना कहा कि चीरेन्द्रसिह का एक ऐयार मेर पति की सूरत बन कर आया है जिन्हें मरे पाच वर्ष के लगभग हुए उसी को गिरफ्तार करने के लिए बिहारीसिह और हरनामसिह गये हैं। नागर-नगर यह तो कहिए कि चण्डूल ने आपके तथा बिहारीसिह और हरनामसिह के कान में क्या कहा । माया-बहुत पूछने पर भी विहारीसिह और हरनामसिह ने नहीं बताया कि घण्डूल ने उनके कान में क्या कहा था नागर-और आपके कान में उसन क्या कहा? माया-मर कान में तो उसन कवल इतना ही कहा था कि आठ दिन के अन्दर ही यह राज्य इन्द्रजीतसिह का हो जाएगा और तू मारी जाएगी। खैर जो हागा दखा जाएगा अब भूतनाथ को यहा ले आ उससे मिलने की बहुत जरूरत मागर-बहुत अच्छा ता क्या इसी जगह बुला लाऊ? माया-हा हा इसी जगह बुला ला। यह ता ऐयार है उससे पदा काहेका। नागर कुछ सोचती विचारती वहा से रवाना हुई और भूतनाथ का जिसे बाग के फाटक पर छोड़ गई थी साथ लकर बाग के रन्दर घुती । पहर वालों ने किसी तरह का उजन किया और भूतनाथ इस वाग की हर एक चीज को अच्छी तरह दखता और ताज्जुब करता हुआ मायारानी के पास पहुचा। नागर न मायारानी की तरफ इशारा करके कहा यही हम लोगों की मायारानी है। और भूलनाथ न यह कह कर कि में बखूधी पहचानता हू । मायारानी को सलाम किया। मायारानी न भूतनाथ को उतनी ही खातिरदारी और चापलूसी की जितनी कोई खुदगर्ज आदमी उसकी खातिरदारी करता है जिससे कुछ मतलब निकलने की आवश्यकता हावी है। माया-तुम्हारी स्त्री तुम्ह मिल गई? भूत-जी हा मिल गई और यह उस इनाम का पहिला नमूना है जो आपकी ताबेदारी करने पर मुझे मिलन की आशा है। माया-नागर न जा कुछ प्रतिज्ञा तुमसे की है में अवश्य पूरी करूगी बल्कि उससे बहुत ज्याद इनाम हर एक काम के चदल में दिया करूमी। भूत-में दिलाजान स आपके काम में उद्योग करूँगा और कमलिनी को युरा धोखा दूगा। वह जितना मुझ पर विश्वास रखती है उतना ही पछताएगी परन्तु आप को भी कई वाला का ख्याल रखना चाहिए। माया-वह क्या? भूत-एक तो जाहिर मेकमलिनी का दोस्त बना रहूगा जिसमें उसे मुझ पर किसी तरह का शक न हो यदि आपका कोइ जासूस मरे विषय में आपका इस बात का सबूत द कि मै कमलिनी स मिला हुआ हूतो आप किसी तरह की चिन्ता न कीजिएगा। माया नहीं नहीं ऐसी छोटी छोटी बातें मुझ समझाने की जरूरत नहीं है में खूब जानती हूं कि चिना उससे मिल किसी तरह पर काम न चलेगा ! भूत-प्रेशक यशफ और इसी वजह से मे बहुत छिपकर आपके पास आया करूँगा। माया-ऐसा होना ही चाहिए, और दूसरी बात कौन सी है? भूत-दूसरे यह कि मुझस आप अपन भेद न छिपाया कीजिए क्योंकि एयारों का काम बिना ठीक ठीक भेद जाने नहीं चल सकता। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ४२५