पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४४७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

em तरफ जाने लगे जिधर पुराने जमाने की आबादी का कुछ कुछ निशान मौजूद था। यहा बहुल से टूटे फूटे मकानों के कोई कोई हिस्से बचे हुए थे जो यदमाशों तथा चोरों के काम में आते थे। यहा के निस्थत शहर के कमजोर दिमाग वालों और डरपोक आदमियों में तरह तरह की गये उडा करती थीं। कोई कहता था कि वहाँ किसी जमाने में बहुत से आदमी मारे गये हैं और वे लोग मूल होकर अभी तक मौजूद है और उधर से आने जाने वालों को सताया करते हैं कोई कहता था कि उस जमीन में जिन्नों ने अपना घर बना लिया है और जो कोई उधर से जाता है उसे मार कर अपनी जात में मिला लिया। करते है इत्यादि तरह तरह की बातें लोग करते थे मगर उन दोनों मुसाफिरों को जो इस समय उसी तरफ कदम बढ़ाये। जा रहे है इन बातों की कुछ परवाह न थी। थोड़ी ही देर में ये दोनों आदमी जिनमें से एक बहुत ही कमजोर और थका हुआ जान पड़ता था उस हिस्से में जा पहुचे और खडे होकर चारों तरफ देखने लगे। पास ही में एक पुराना मकान दिखाई दिया जो तीन हिस्से से ज्यादे टूट चुका था और उसके चारों तरफ जगली पेडों और ललाओं ने एक भयानक सादृश्य बना रक्खा था। उसी जगह एक आदमी टहलता हुआ नजर आया जो उन दोनों को देखते ही पास आया और बोला हमारे साथियों ने उस नियत जगह पर ठहरना उचित न जाना और राय पक्की हुई कि एक नाव पर सवार होकर सब लोग काशी की तरफ रवाना हो जाय और उसी जगह से कायवाई करें। वे लोग नाव पर सवार हा चुके है और कमलिनी जी यह कह कर मुझे इस जगह छोड गइ है कि तेजसिह राजा गोपालसिंह को साथ लेकर आयें तो उन्हें लिए हुए यालाघाट की तरफ जहा हम लोगों की नाव खडी होगी बहुत जल्द चले आना। पाठक समझ ही गये होंगे कि ये दोनों मुसाफिर तेजसिह और राजा गोपालसिह (मायारानी के पुराने कैदी) थे हा उस आदमी का परिचय हम दिए देते है जो उन दोनों को इस भयानक स्थान में मिला था। वह तेजसिह के प्यारे दास्त देवीसिह थे। देवीसिह की बात सुनकर तेजसिह अपने साथी राजा भोपालसिह को साथ लिए हुए वहा से रवाना हुए और थोड़ी देर में गगा के किनारे पहुच कर उस नाव पर जा सवार हुए जिस पर कमलिनी लाड़िली इन्द्रजीतसिह आनन्दसिह तारासिह भैरोसिह और शेरसिह सवार थे। वह किश्ती बहुत छोटी तो न थी मगर हल्फी व तंज जाने वाली थी। मालूम होता है कि उसको उन लोगों ने खरीद लिया था क्योंकि उस पर कोई मल्लाह न था और केवल ऐयार लोग खेकर ले जाने के लिए तैयार थे। तेजसिह को और राजा गोपालसिह को देखते ही सब उठ खड़े हुए। कुअर इन्द्रजीतसिह ने खातिर के साथ राजा गोपालसिह को अपने पास बैठा कर किश्ती किनारे से हटाने की आज्ञा दी और बात की बात में नाव किनारा छोड कर दूर दिखाई देनेलगी। इन्द्र-( राजा गापाल सिह से ) मैं इस समय आपको अपने पास देखकर बहुत ही प्रसन्न हू ईश्वर ही ने आपकी जान बचाई। गोपाल-मुझे अपने बसने की कुछ भी आशा न थी यह तो सब आपके चरणों का प्रताप है कि कमलिनी वहा गई और उसे इत्तिफाक से मेरा हाल मालूम हो गया। कमलिनी-मुझे आशा थी कि आपको साथ लिए तेजसिह सूर्य निकलने के साथ ही हम लोगों से आ मिलेंगे मगर दो दिन की देर हो गई और यह दो दिन का समय बडी मुश्किल से बीता क्योंकि हम लोगों को बड़ी चिन्ता इस बात की थी कि आपके आने में देर क्यों हुई। अब सबके पहिले इस विलम्ब का कारण हम लोग सुना चाहते है। गोपाल-तेजसिह जिस समय मुझे कैद से छुडा कर उस तिलिस्मी बाग के बाहर हुए उस समय उन्होंने राजा वीरेन्दसिह का जिक्र किया और कहा कि हरामजादी मायारानी ने राजा बीरेन्द्रसिह और रानी चन्द्रकान्ता को भी इस तिलिस्म में कहीं पर कैद कर रक्खा है जिनका पता नहीं लगता।यहसुनते ही मैं उन्हें साथ लिए हुए फिर उसी तिलिस्म बाग में चला गया। जहाँ-जहाँ मैं जा सकता था जाकर अच्छी तरह पता लगाया क्यों कि कैद से छूट जाने पर मै बिल्कुल ही लापरवाह और निडर हो गया था। इन्द -यह काम आपने बहुत ही उत्तम किया हा तो उनका कहीं पता लगा? गोपाल-(सिर हिला कर) नहीं वह खबर बिल्कुल झूठी थी। उसने आए लोगों को धोखा देने के लिए अपने ही दो आदमियों को राजा वीरेन्दसिह और रानी चन्द्रकान्ता की सूरत में रग के कैद कर रखा है। कमलिनी-यह आपको कैसे निश्चय हुआ गोपाल-हमने स्वय उन योनों को अच्छी तरह आजमा कर देख लिया। इन्द्र-यह खबर सुन कर हम लोगोंको हद से ज्यादे खुशी हुई अब हम लोग उनकी तरफ से निश्न्ति हो गये और फेवल किशोरी और कामिनी की फिक रह गई। तेज-बेशक हम लोग उनका तरफ से निश्चिन्त हो गये। (राजा गोपालसिह की तरफ इशारा करके) इनके साथ ? चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ४२७